बुलडोजर जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी : कहा- महज आरोपी होने पर घर नहीं गिराया जा सकता, इसे बताया कानून का उल्लंघन

कहा- महज आरोपी होने पर घर नहीं गिराया जा सकता, इसे बताया कानून का उल्लंघन
UPT | सुप्रीम कोर्ट

Sep 12, 2024 21:09

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध विध्वंस को लेकर एक अहम टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति के घर को महज इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में आरोपी है।

Sep 12, 2024 21:09

New Delhi : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध विध्वंस को लेकर एक अहम टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति के घर को महज इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में आरोपी है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी का दोष सिद्ध होना या न होना, यह तय करना न्यायालय का काम है, न कि राज्य का। इस प्रकार बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए हुए किसी का घर गिराना कानून के खिलाफ है।

यह है पूरा मामला
यह टिप्पणी न्यायालय ने गुजरात के खेड़ा जिले से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जहां जावेदाली महेबूबमिया सईद नामक व्यक्ति ने अपने परिवार के घर को बुलडोजर से गिराने की धमकी के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया कि एक पारिवारिक सदस्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर के चलते, पूरे परिवार के घर को अवैध तरीके से गिराने की धमकी दी गई थी। न्यायालय ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि किसी के अपराध में कथित संलिप्तता, संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं हो सकती।

बताया कानून का उल्लंघन
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां कानून का शासन सर्वोपरि है, और राज्य की हर कार्रवाई कानून द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए। किसी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी मात्र से उसके परिवार के घर को गिराना कानून का उल्लंघन है।" 



राजस्व रिकॉर्ड की जांच का आदेश
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील इकबाल सैयद ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के घर को गिराने की धमकी अवैध और अनुचित है। न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए खेड़ा जिले के कथलाल गांव के राजस्व रिकॉर्ड की जांच का आदेश दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि याचिकाकर्ता उस विवादित भूमि का सह-मालिक है, जिस पर उसका घर बना हुआ है। साथ ही, न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि 21 अगस्त 2004 को ग्राम पंचायत ने याचिकाकर्ता को आवासीय घर बनाने की अनुमति दी थी और वह पिछले दो दशकों से अपने परिवार के साथ इस संपत्ति में रह रहा है।

विध्वंस की धमकी स्वीकार्य नहीं
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में चार सप्ताह बाद अगली सुनवाई का आदेश दिया और यह भी स्पष्ट किया कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी भी तरह की विध्वंस की धमकी स्वीकार्य नहीं है। न्यायालय का यह आदेश न केवल जावेदाली सईद के मामले में राहत प्रदान करेगा, बल्कि यह देशभर में चल रहे अवैध विध्वंस की कार्रवाइयों के खिलाफ भी एक महत्वपूर्ण मिसाल साबित हो सकता है।

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