1948 ओलंपिक में भारत की जीत की दास्तां सुनने से पहले आपको उस दौर की परिस्थिति को समझना होगा। 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी तो मिली, लेकिन एक विनाशकारी विभाजन के साथ। भारत से अलग होकर नया देश बना पाकिस्तान।
यूपी के ओलंपियन : केडी सिंह ने दो बार दिलाया गोल्ड, बंटवारे के बाद पहली बार ओलंपिक खेलने पहुंचा था भारत
Jul 26, 2024 17:11
Jul 26, 2024 17:11
- आजादी के बाद बिखर गई थी टीम
- केडी सिंह बाबू बनाए गए थे उपकप्तान
- फाइनल में हुआ था दिलचस्प मुकाबला
आजादी के बाद बिखर गई थी टीम
1948 ओलंपिक में भारत की जीत की दास्तां सुनने से पहले आपको उस दौर की परिस्थिति को समझना होगा। 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी तो मिली, लेकिन एक विनाशकारी विभाजन के साथ। भारत से अलग होकर नया देश बना पाकिस्तान। कई एंग्लो-इंडियन देश छोड़कर चले गए और कई मुसलमान पाकिस्तान चले गए। ये विभाजन भारत की हॉकी टीम पर भी पहाड़ बनकर टूटा। भारत के कई बेहतरीन खिलाड़ी बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए। 1936 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एआईएस दारा अब पाकिस्तान हॉकी टीम के कप्तान बन चुके थे। दारा के अलावा नियाज़ खान, शाहरुख मुहम्मद, अज़ीज़ मलिक भी पाकिस्तान चले गए थे।
केडी सिंह बाबू बनाए गए उपकप्तान
1948 में जब ओलंपिक की तारीख नजदीक आई, तो भारत के पास एक भी अनुभवी खिलाड़ी नहीं था। जैसे-तैसे करके टीम बनाई गई, लेकिन इसमें से एक भी ऐसा खिलाड़ी नहीं था, जिसने पहले कभी ओलंपिक खेला हो। देश के अलग-अलग हिस्सों से चुनी गई इस टीम में एकता की कमी तो थी ही, अनुभव की कमी भी साफ झलकती थी। देश में क्षेत्रवाद हावी था, लिहाजा टीम पर भी इसका असर देखने को मिला। 15 के स्क्वाड में 8 खिलाड़ी बॉम्बे के थे जिनमें कप्तान किशन लाल भी शामिल थे। बाराबंकी में जन्मे केडी सिंह बाबू इस टीम के उपकप्तान बनाए गए। इंडियन हॉकी फेडरेशन के चीफ नवल टाटा ने टीम को बहुत से प्रैक्टिस मैच में खेलने की सलाह दी। इस वजह से बाकी टीमों के मुकाबले भारतीय टीम लंदन देर से पहुंची।
भारत ने किया शानदार प्रदर्शन
लंदन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को पूल ए में रखा गया था। इसमें ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, अर्जेंटीना और ऑस्ट्रिया जैसी मज़बूत टीमें थी। लेकिन भारतीय टीम की परफॉर्मेंस ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। भारत ने अपना पहला मुकाबला 8-0 से जीत लिया। दूसरे मुकाबले में भारत ने अर्जेंटीना को 9-1 से और तीसरे मुकाबले में स्पेन को 3-0 से हराया। इसी के साथ भारत ने सेमीफाइनल में जगह पक्की कर ली, जहां उसे नीदरलैंड से भिड़ना था। सेमीफाइनल का मुकाबला भी भारत ने 2-1 से जीत लिया।
बारिश के कारण गीली हो गया था फील्ड
अब तक अजेय रही भारतीय टीम को फाइनल में उसी टीम से भिड़ना था, जिससे उसने पिछले ही साल आजादी पाई थी। जी हां, हम ब्रिटेन की बात कर रहे हैं। उस समय तक ब्रिटेन को ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता था। 25,000 दर्शकों से वेम्बली स्टेडियम भरा हुआ था। भारत और ग्रेट ब्रिटेन के बीच का मुकाबला देखने आए भारतीय दर्शकों को अपने देश से काफी उम्मीदें थीं। बारिश ने फिल्ड को न सिर्फ चिकना कर दिया था, बल्कि इससे पिच भारतीय खिलाड़ियों के लिए कठिन और ब्रिटेन के लिए आसान हो गई थी।
फाइनल में हुआ दिलचस्प मुकाबला
मुश्किल फील्ड के बावजूद भारतीयों ने इस मुकाबले में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। बलबीर सिंह ने 2 गोल अपने नाम किए, तो पैट जेनसन और त्रिलोचन सिंह ने भी एक-एक लोग जड़कर मुकाबला भारत के नाम किया। भारत ने इस ऐतिहासिक मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। मैच में केडी सिंह बाबू का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। उनके इसी जज्बे और जोश को देखते हुए केडी सिंह बाबू को 1952 में हेलसिंकी ओलिम्पिक में टीम की कप्तानी दी गई और इस ओलंपिक में भी भारत ने स्वर्ण पदक जीता था।
खेल भी परे केडी बाबू की थी पहचान
केडी बाबू ने 14 साल की उम्र से ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन खेल से परे भी उनकी एक दुनिया थी, जिसने उत्तर प्रदेश में हॉकी को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। केडी बाबू भारत के एकलौते ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें हेम्स ट्रॉफी से सम्मानित किया गया था। हेम्स ट्रॉफी को खेलों का नोबेल कहा जाता है। 1959 में उन्होंने देश की टीम से खेलना छोड़ दिया। वह भारतीय हॉकी टीम के प्रशिक्षक बने और देश में हॉकी खिलाड़ियों की नई पौध तैयार की। उत्तर प्रदेश में हॉकी के स्पोर्ट्स हॉस्टल और स्पोर्ट्स कॉलेज के साथ-साथ खेल निदेशालय की भी स्थापना कर केडी सिंह ने यूपी में खेल की प्रगति के लिए नई राह तैयार की। केडी सिंह ने सिर्फ हॉकी, बल्कि क्रिकेट और अन्य दूसरे खेलों में भी उतने ही पारंगत थे। 27 मार्च 1978 को, अपनी ही बंदूक की सफाई करते समय गोली लगने से उनकी मृत्यु हो गई।
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