मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद संजीव बालियान कुछ दिन पहले मेरठ में थे। इस दौरान एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 'पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 35 साल से मांग चली आ रही है।'
बंटवारे का 'जिन्न' फिर आया बाहर : यूपी के 4 हिस्से करना चाहते थे नेहरू, मायावती ने आगे बढ़ाया प्रस्ताव... लेकिन क्या यह संभव?
Sep 10, 2024 15:43
Sep 10, 2024 15:43
- यूपी के 4 हिस्से करना चाहते थे नेहरू
- आजादी के बाद ही उठने लगी थी मांग
- 2011 में मायावती भी लाई थीं प्रस्ताव
हरियाणा चुनाव से पहले उठने लगी मांग
मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद संजीव बालियान कुछ दिन पहले मेरठ में थे। इस दौरान एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 'पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 35 साल से मांग चली आ रही है। मायावती ने भी इसके लिए प्रस्ताव रखा था। अब ये मांग नहीं, जरूरत है। मैं सरकार तक इस मांग को पहुंचाऊंगा।' इसके बाद सपा की तरफ से भी कहा गया कि ये मांग बहुत पुरानी है और सरकार को इस पर निर्णय लेना चाहिए। लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि खुद समाजवादी पार्टी 2012 में 'अखंड उत्तर प्रदेश' के नारे को बुलंद कर ही सत्ता पर काबिज हुई थी। अब सवाल ये है कि सबसे अधिक जनसंख्या वाले इस राज्य को बांटने की कहानी आखिर शुरू कहां से हुई थी। अगर आपको लगता है कि ये सब 2012 के बाद से शुरू हुआ, तो आप गलत हैं।
आजादी के बाद ही उठने लगी मांग
1947 में भारत की आजादी के बाद राज्यों के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। एक के बाद एक तीन आयोग बने। पहले कृष्ण धर आयोग, फिर जेवीपी आयोग और अंत में राज्य पुनर्गठन आयोग। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू खुद उत्तर प्रदेश का बंटवारा चाहते थे। उन्होंने 1952 में लोकसभा में दिए एक बयान में कहा था कि 'मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमति रखता हूं कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा किया जाना चाहिए। इसे चार राज्यों में बांटा जा सकता है।' यानि नेहरू यूपी के 4 हिस्से करना चाहते थे। कहा ये भी जाता है कि अंबेडकर भी यूपी को तीन हिस्सों में बांटना चाहते थे। इसके पीछे उनका तर्क था कि इससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और प्रदेश में राजव्यवस्था की असमानता को कम किया जा सकेगा।
फिर हो गए यूपी के दो हिस्से
न तो बात नेहरू की मानी गई, न अंबेडकर की। राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1956 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और 14 राज्य के साथ 6 केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए। लेकिन इसके करीब 44 साल बाद यानी 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश के दो हिस्से हुए। पहला बना उत्तर प्रदेश और दूसरा कहलाया उत्तराखंड। लेकिन यूपी को पश्चिम और पूर्वांचल में बांटने वालों की आस अभी भी पूरी नहीं हुई थी। लिहाजा प्रदेश में सैकड़ों ऐसे संगठन बन गए, जिनका उद्देश्य यूपी के विभाजन की मांग करना है। ये संगठन समय-समय पर प्रदर्शन, धरना, ज्ञापन और संगोष्ठी आयोजित कर अपनी मांग को प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने का काम करते हैं। इन्हीं संगठनों में से एक पश्चिमी प्रदेश निर्माण मोर्चा की बैठक के दौरान संजीव बालियान ने अपना बयान दिया था।
मायावती की पहल और विपक्ष का विरोध
साल दर साल बैठकें होती रहीं, प्रदर्शन किए जाते रहे, ज्ञापन सौंपे जाते रहे, लेकिन यूपी के बंटवारे पर कोई ठोस पहल नहीं हुई। अब थोड़ा फास्ट फॉरवर्ड कर 2011 पर आ जाते हैं। मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और अगले ही साल यानी 2012 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। लिहाजा मायावती ने अपना अंतिम दांव खेला और यूपी को 4 हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव सदन में भारी हंगामे के बीच पास करा लिया। यह महज एक लाइन का प्रस्ताव था। लेकिन विपक्ष की कोई भी पार्टी इसके समर्थन में नहीं थी। बावजूद इसके यूपी सरकार ने इस एक लाइन के प्रस्ताव को केंद्र सरकार को अग्रिम कार्यवाही के लिए भेज दिया।
किस्मत ने नहीं दिया मायावती का साथ
नवंबर में प्रस्ताव केंद्र के बाद भेजा गया और दिसंबर में ही तत्कालीन यूपीए सरकार में गृह सचिव आर के सिंह ने प्रस्ताव को राज्य सरकार के पास स्पष्टीकरण मांगते हुए वापस भेज दिया। तब पीटीआई से बातचीत में आर के सिंह ने बताया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय यूपी सरकार से यह जानना चाहता है कि नए राज्यों की सीमाएँ कैसी होंगीं, उनकी राजधानियाँ कहाँ बनेंगीं और भारतीय सेवा के जो अधिकारी इस समय उत्तर प्रदेश में काम कर रहे हैं, उनका बँटवारा चार नए राज्यों में किस तरह से होगा? साथ ही प्रदेश पर जो भारी भरकम कर्ज़ है, उसका बँटवारा किस तरह होगा? कहते हैं कि 2012 में अगर मायावती चुनाव जीत जातीं, तो यूपी अब तक 4 हिस्सों में टूट चुका होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। किस्मत और जनता दोनों ने ही मायावती का साथ नहीं दिया और 2012 में सत्ता पर समाजवादी पार्टी काबिज हो गई।
यहीं से बदल गया सारा खेल
जैसा कि हमने आपको पहले बताया, 2012 में सपा 'अखंड उत्तर प्रदेश' के नारे को बुलंद कर सत्ता में आई थी। आते ही सपरा सरकार ने सबसे पहला काम मायावती सरकार के उत्तर प्रदेश के विभाजन के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने का किया था। इस अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस और भाजपा ने भी सपा का साथ दिया था। बस यहीं से सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया और यूपी के विभाजन का मुद्दा मुख्य धारा से गायब हो गया। लेकिन जमीन पर बने संगठन अपनी मांग पहले ही तरह ही उठाते रहे, आज भी उठा रहे हैं।
क्या संभव है यूपी का विभाजन?
कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर एक फर्जी पोस्ट वायरल हुई थी, जिसमें कहा गया था कि यूपी को 4 हिस्सों में बांटा जाएगा। लेकिन सवाल यही है कि क्या यूपी का विभाजन संभव है। इसका सीधा सा जवाब है- हां। समय-समय पर देश में जरूरत के हिसाब के राज्यों के विभाजन होते रहे हैं, लेकिन इन सबका एक ठोस आधार होता है। जाहिर है कि उत्तर प्रदेश की भी अपनी जरूरतें और अपनी मांगे हैं। जनता, संगठन और यहाँ तक कि नेता भी यदा-कदा अपनी मांग उठाते रहे हैं। कभी कांग्रेस, कभी भाजपा और कभी सपा की तरफ से भी यूपी के विभाजन की मांग उठती रही है। लेकिन इसके लिए पहल बड़े स्तर पर होना जरूरी है, ठीक वैसे ही, जैसे मायावती ने 2011 में की थी। अन्यथा नेता बयान देंगे, सुर्खियां बनेंगी और मु्द्दे अगले दिन अखबारों में छपकर फिर अगले बयान तक खत्म हो जाएंगे।
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