मोहम्मद शाहिद का जन्म 14 अप्रैल 1960 को हुआ था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्मे शाहिद नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। मोहम्मद शाहिद का हॉकी के प्रति प्रेम बचपन में ही जाग गया था। छोटी-सी उम्र में ही उनके हॉकी खेलने के कौशल की चर्चा शुरू हो गई थी।
यूपी के ओलंपियन : हॉकी को माना था बेटी की मौत का कारण, पढ़िए 20 साल में देश को गोल्ड दिलाने वाले मोहम्मद शाहिद की कहानी
Jul 27, 2024 16:21
Jul 27, 2024 16:21
- टैलेंट के दम पर शाहिद ने मनवाया लोहा
- बेटी की मौत के बाद टूट गए शाहिद
- हॉकी को माना था मौत का कारण
टैलेंट के दम पर मनवाया लोहा
मोहम्मद शाहिद का जन्म 14 अप्रैल 1960 को हुआ था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्मे शाहिद नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। मोहम्मद शाहिद का हॉकी के प्रति प्रेम बचपन में ही जाग गया था। छोटी-सी उम्र में ही उनके हॉकी खेलने के कौशल की चर्चा शुरू हो गई थी। 1979 में शाहिद को जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप के लिए चुन लिया गया था। इस वर्ल्ड कप में मोहम्मद शाहिद के शानदार प्रदर्शन के कारण वह एक साल में ही सीनियर टीम के लिए चुन लिए गए। कहते हैं कि 70 और 80 के दशक में लोग हॉकी देखने के लिए नहीं, बल्कि मोहम्मद शाहिद का खेल देखने के लिए स्टेडियम में जाते थे।
पाकिस्तान की टीम में मचा दिया था हड़कंप
साल 1979 की बात है। भारतीय हॉकी टीम के कप्तान वासुदेव भास्करन के नेतृत्व में टीम मलेशिया टूर के लिए जा रही थी। भास्करन को बताया गया कि यूपी का एक लड़का भी टीम में चुना गया है। भास्करन बताते हैं कि वह कभी उससे मिले नहीं थे। उन्होंने केवल इतना ही सुना था कि शाहिद गेंद को अपने कब्जे से छूटने ही नहीं देता है। मलेशिया में जब भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला खेला गया, तो मैच 2-2 से ड्रॉ हो गया। पूरे मैच में मोहम्मद शाहिद का जलवा रहा। मैच खत्म होने के बाद पाकिस्तान के दिग्गज खिलाड़ी अख्तर रसूल कप्तान भास्करन के पास आए और बोला- 'यह लड़का कौन है, बहुत डॉज (चकमा देना) मारता है।' इस टूर्नामेंट में शाहिद को बेस्ट प्लेयर चुना गया था।
लगातार गिरा था भारतीय टीम का प्रदर्शन
आजादी के बाद भारत की हॉकी टीम ने लगातार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। 1948, 1952 और 1956 में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीतकर हैट्रिक बनाई थी। लेकिन 1968 और 1972 में उसे केवल ब्रॉन्ज मेडल से ही संतोष करना पड़ा था। 1976 में हालात और भी खराब हो गए थे। इस साल भारतीय टीम सातवें स्थान पर रही थी। इस कारण 1980 के ओलंपिक में देश को हॉकी में मेडल की ज्यादा उम्मीद नहीं थी। हालांकि मोहम्मद शाहिद के लिए ये किसी दैवीय अवसर से कम नहीं था। वह जिस साल सीनियर हॉकी टीम के लिए चुने गए, उसी साल ओलंपिक होने थे। भास्करन की कप्तानी में टीम ने पहले मैच में तंजानिया को 18-0 से हराया और उसके बाद दो मैचों में पोलैंड और स्पेन के खिलाफ 2-2 से बराबरी की।
फाइनल में हुआ शानदार मुकाबला
भारत ने क्यूबा को 13-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। सेमीफाइनल में सोवियत संघ से मुकाबला 4-2 से जीतकर भारत ने फाइनल के लिए जगह पक्की कर ली। अब उसे स्पेन से भिड़ना था। फाइनल मुकाबलने में सुरिंदर सिंह सोढ़ी ने एक बेहतरीन मिडफील्डर के रूप में खेलते हुए फर्स्ट हाफ में ही दो गोल कर दिए। इसके बाद सेकेंड हाफ की शुरुआत में ही एक और गोल कर दिया गया। लेकिन तभी स्पेन के कप्तान में दो मिनट में ही दो गोल मारकर मुकाबला टक्कर का बना दिया। ऐसा लग रहा था कि मुकाबला भारत के हाथ से निकल जाएगा, लेकिन तभी मोहम्मद शाहिद ने एक और गोल मारकर टीम को बढ़त दिला दी।
हॉकी में भारत का अंतिम गोल्ड
फाइनल मुकाबले में स्पेन को दो पेनल्टी कॉर्नर भी मिले, लेकिन इसका उसे कोई खास फायदा नहीं मिला। भारत ने बढ़त बनाए रखी और वह यह मुकाबला जीत गया। मोहम्मद शाहिद के प्रदर्शन की खूब तारीफ हुई। लेकिन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का यही अंतिम गोल्ड था। तब से लेकर अब तक करीब साढ़े चार दशक बीत चुके हैं, लेकिन भारतीय टीम का सूखा खत्म नहीं हो पाया है। हालांकि भारतीय टीम ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक जीता था। 1980 के ओलिंपिक गोल्ड के अलावा शाहिद ने भारत को 1982 के एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल और 1986 में ब्रॉन्ज मेडल दिलालने में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें हॉकी का ड्रिबलर किंग कहा जाता है।
बेटी की मौत के बाद टूट गए शाहिद
मोहम्मद शाहिद को 1985 में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया। उन्हें सरकार ने 1980 में अर्जुन अवॉर्ड और 1986 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। इस बीच शाहिद की जिंदगी में एक लम्हा ऐसा भी आया, तब वह बुरी तरीके से टूट गए थे। शाहिद की बेटी के दिल में छेद था। दिल्ली में उसका लंबा इलाज चला, लेकिन वह बच नहीं सकी। बेटी की मौत का जिम्मेदार शाहिद ने खुद को और हॉकी को मान लिया था। उनका मानना था कि हॉकी को ज्यादा अहमियत देने के कारण वह अपनी बेटी पर ध्यान नहीं दे पाए। बेटी की मौत के बाद शाहिद ने हॉकी से दूरी बना ली थी। उन्हें कई बार हॉकी की कोचिंग देने के लिए ऑफर दिया गया, लेकिन उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया गया।
व्यक्तिगत तौर पर काफी भावुक इंसान थे शाहिद
शाहिद को व्यक्तिगत तौर पर जानने वाले बताते हैं कि वह बेहद की भावुक व्यक्ति थे। कोई भी व्यक्ति उनसे मिलने के बाद प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। उन्होंने हमेशा आर्थिक तौर पर खिलाड़ियों की मदद की। 56 साल की उम्र में ही शाहिद की मल्टी ऑर्गन फेलियर से मौत हो गई थी। वह लंबे समय से लीवर और किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें पीलिया और डेंगू भी हो गया था। इलाज के लिए उन्हें वाराणसी से गुरुग्राम लाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। वह रेलवे में वेलफेयर इंस्पेक्टर की नौकरी करते थे। शाहिद इतने अच्छे इंसान थे कि वह अपना सब कुछ लुटाकर लोगों की मदद किया करते थे, लेकिन खुद के इलाज के लिए उन्होंने किसी से एक रुपया भी नहीं लिया। 2016 में शाहिद भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए। लेकिन अपने पीछे वह भारत के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत छोड़कर गए हैं। भारतीय हॉकी में मोहम्मद शाहिद के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
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