महिला ने शख्स पर एससी-एसटी एक्ट के तहत 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा करके शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन बाद में वह अपने वादे से मुकर गया। साथ ही उसने महिला की जाति को लेकर...
Allahabad High Court : महिला यौन उत्पीड़न मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, हमेशा पुरुष गलत हों ये जरूरी नहीं
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Jun 14, 2024 14:25
Jun 14, 2024 14:25
- कानून महिलाओं का पक्ष लेता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा पुरुष ही गलत हो
- हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को बरी करते हुए सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा
- महिला ने पिछली शादी को खत्म किए बिना 5 साल तक आरोपित के साथ संबंध बनाए रखा
परिस्थितियों का आकलन जरूरी
इस मामले में हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को बरी करते हुए सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों का आकलन करना बेहद जरूरी होता है। महिला ने शख्स पर एससी-एसटी एक्ट के तहत 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा करके शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन बाद में वह अपने वादे से मुकर गया। साथ ही उसने महिला की जाति को लेकर भी कई अपमानजनक बातें कहीं। साल 2002 में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने आरोपित को रेप के आरोपों से बरी करते हुए केवल आईपीसी की धारा 323 के तहत दोषी ठहराया। जिसके बाद महिला ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
आरोपी ने कहा महिला की सहमति से बने संबंध
वहीं आरोपित व्यक्ति ने कोर्ट को बताया कि महिला के साथ उसके संबंध सहमति से बने थे। यही नहीं महिला ने उससे बताया था कि वह यादव जाति की है लेकिन उसकी जाति कुछ और थी, जिसके बाद उसने शादी से मना कर दिया। वहीं रिकॉर्ड के आधार पर पाया गया कि महिला की शादी साल 2010 में हुई थी, जिसके दो साल बाद ही वो पति से अलग हो गई थी। लेकिन दोनों का तलाक नहीं हुआ था। जिसपर कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इस बात की कम संभावना है कि आरोपी व्यक्ति ने महिला से शादी का झूठा वादा करके उसे फंसाया हो।
निचली अदालत का फैसला सही- इलाहाबाद हाईकोर्ट
दूसरी तरफ महिला पहले से विवाहित थी और उसका तलाक नहीं हुआ था जिस वजह से कानून की नजर में अब भी उसकी शादी मौजूद है। जिस वजह से शादी का वादा करने का आरोप अपने आप समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि महिला पहले से शादीशुदा थी और उसने पिछली शादी को बिना खत्म किए और बिना किसी आपत्ति के 5 साल तक आरोपित के साथ संबंध बनाए रखा। ऐसे में यौन उत्पीड़न का मामला सही नहीं लगता। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही बताया और साथ ही आरोपित के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के फैसले को जारी रखा।
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