इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : ब्लैकलिस्टिंग में न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य, राज्य संस्थाओं को निष्पक्षता और तर्कसंगतता बरतने का निर्देश

ब्लैकलिस्टिंग में न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य, राज्य संस्थाओं को निष्पक्षता और तर्कसंगतता बरतने का निर्देश
UPT | Allahabad High Court

Jul 27, 2024 14:51

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायालयों को रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय ब्लैकलिस्टिंग आदेशों की जांच करने का अधिकार...

Jul 27, 2024 14:51

Short Highlights
  • ब्लैकलिस्टिंग के मामलों में न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए
  • राज्य संस्थाओं को काली सूची में डालने की शक्ति प्रदान की गई है
Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ब्लैकलिस्टिंग के मामलों में न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायालयों को रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय ब्लैकलिस्टिंग आदेशों की जांच करने का अधिकार है। यह कदम इसलिए आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया है।

न्यायालय ने दिया आदेश
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि राज्य संस्थाओं को काली सूची में डालने की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन उन्हें इस प्रक्रिया में निष्पक्षता और तर्कसंगतता का पालन करना चाहिए। न्यायालय ने कहा, "किसी ठेकेदार को काली सूची में डालने का कोई भी सरकारी या सार्वजनिक प्राधिकरण का निर्णय न्यायिक समीक्षा के लिए खुला है।" इस तरह की समीक्षा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, विशेष रूप से ऑडी अल्टरम पार्टम (दूसरे पक्ष को भी सुना जाए) और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन सुनिश्चित करती है।

इस मामले में सुनाया फैसला
यह निर्णय ए के कन्सट्रक्शन कंपनी द्वारा दायर एक याचिका के संदर्भ में आया, जिसमें कंपनी ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा उसे ब्लैकलिस्ट किए जाने के खिलाफ आपत्ति जताई थी। NHAI ने कंपनी को कैथी टोल प्लाजा संचालन का अनुबंध समाप्त करने के साथ-साथ छह महीने के लिए पूर्व-योग्य बोलीदाताओं की सूची से भी बाहर कर दिया था। याचिकाकर्ता का तर्क था कि उन्हें जारी किया गया कारण बताओ नोटिस पूर्व नियोजित मानसिकता से प्रेरित था और उनके जवाब पर उचित विचार नहीं किया गया।

न्यायालय ने इस मामले की समीक्षा करते हुए कहा कि सामान्यतः कारण बताओ नोटिस में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, अगर यह नोटिस पूर्व नियोजित मानसिकता से जारी किया गया हो, जिससे आगे की कार्यवाही महज औपचारिकता बन जाती है, तो ऐसी स्थिति में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में आगे की कोई भी जांच या आदेश निष्पक्ष नहीं माना जा सकता।

अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों को निर्देश
न्यायालय ने अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे अपने निष्कर्षों के समर्थन में स्पष्ट कारण दर्ज करें। न्यायाधीशों ने कहा कि कानून के शासन और संवैधानिक व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध देशों में वर्तमान न्यायिक प्रवृत्ति प्रासंगिक तथ्यों के आधार पर तर्कपूर्ण निर्णयों के पक्ष में है। उन्होंने जोर देकर कहा कि तर्क पर बल देना न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता दोनों के लिए आवश्यक है।

न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि निर्णयों के समर्थन में दिए गए कारण ठोस, स्पष्ट और संक्षिप्त होने चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून के विकास के लिए, निर्णय के पीछे के कारणों को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है और यह वास्तव में 'उचित प्रक्रिया' का एक अभिन्न अंग है। 

Also Read

पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा, दो आरोपियों को गिरफ्तार किया

7 Sep 2024 06:41 PM

प्रयागराज बुलडोजर से घर की बाउंड्री तोड़ने का आरोप : पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा, दो आरोपियों को गिरफ्तार किया

प्रयागराज में एक नेता की ओर से बुलडोजर से एक घर की बाउंड्री वॉल गिराने का मामला सामने आया है। इस घटना के बाद पीड़ित की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है। और पढ़ें