इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला : पति को अलग कमरे में भेजना क्रूरता के समान, तलाक की याचिका पर दिया निर्णय

पति को अलग कमरे में भेजना क्रूरता के समान, तलाक की याचिका पर दिया निर्णय
UPT | प्रतीकात्मक फोटो।

Aug 30, 2024 21:42

पत्नी ने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर किया और जब पति ने कमरे में प्रवेश की कोशिश की, तो पत्नी ने उसे आत्महत्या की धमकी और आपराधिक मामलों में फंसाने की चेतावनी दी...

Aug 30, 2024 21:42

Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि पत्नी अपने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है, तो यह वैवाहिक अधिकारों का उल्लंघन और क्रूरता के समान है। न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने इस टिप्पणी के साथ एक व्यक्ति को तलाक प्रदान किया।

अलग कमरे में रहने के लिए किया मजबूर
पत्नी ने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर किया और जब पति ने कमरे में प्रवेश की कोशिश की, तो पत्नी ने उसे आत्महत्या की धमकी और आपराधिक मामलों में फंसाने की चेतावनी दी। पति ने इस पर याचिका दायर की थी। अदालत ने कहा कि पत्नी का इस प्रकार का व्यवहार स्पष्ट रूप से वैवाहिक संबंधों की अवहेलना और क्रूरता की श्रेणी में आता है। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध वैवाहिक रिश्ते का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पत्नी का पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करना, उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस स्थिति को शारीरिक और मानसिक क्रूरता के समान माना गया। पत्नी ने पति के आरोपों का खंडन नहीं किया, जिससे यह मान लिया गया कि उसने इन आरोपों को स्वीकार कर लिया है।

महिला की पहली, पुरुष की दूसरी शादी थी
याचिका के अनुसार, दोनों ने 2016 में शादी की थी, जिसमें महिला की पहली और पुरुष की दूसरी शादी थी। 2018 में पति ने पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की। उसने कहा कि शादी के पहले 4-5 महीने सामान्य थे, लेकिन बाद में पत्नी ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। पारिवारिक अदालत ने पहले पति की याचिका पर एक निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि उसने पत्नी द्वारा दी गई धमकियों का पर्याप्त विवरण नहीं प्रस्तुत किया था और उसके पक्ष में कोई ठोस साक्ष्य भी नहीं था।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी ने पारिवारिक अदालत के समक्ष पति के आरोपों को चुनौती देने के लिए कोई लिखित बयान दायर नहीं किया, जिससे यह माना गया कि उसने इन आरोपों को स्वीकार कर लिया है। अदालत ने पाया कि परिवार न्यायालय ने पति के पिता की गवाही को उचित महत्व नहीं दिया, और यह कि पारिवारिक विवादों के संबंध में परिवार के सदस्यों की गवाही को केवल उनके पक्ष का समर्थन मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। 

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने गलत तरीके से यह मान लिया कि पति की पिछली शादी विफल होने के कारण उसे दंडित किया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि पिछली शादी आपसी सहमति से समाप्त की गई थी और इसमें कोई दोष नहीं पाया गया। इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने तलाक के लिए क्रूरता के आधार को सही ठहराते हुए पारिवारिक अदालत के निर्णय को पलटते हुए पति के पक्ष में फैसला सुनाया। इस मामले में पति की ओर से अधिवक्ता राजेश कुमार पांडे ने अपील और बहस की।

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