इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ में हुए एक 46 साल पुराने हत्या मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। लेकिन अब उन्हें बरी कर दिया गया है। ट्रायल कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी...
मेरठ हत्या मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को किया बरी, बिना साइंटिफिक तरीके से साक्ष्य पर आधारित दोषी ठहराना गलत है
![इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को किया बरी, बिना साइंटिफिक तरीके से साक्ष्य पर आधारित दोषी ठहराना गलत है](https://image.uttarpradeshtimes.com/-96217.jpg)
Jun 23, 2024 01:35
Jun 23, 2024 01:35
करमवीर की हत्या
1978 में मेरठ के जानी थाना में करमवीर की हत्या में पिता चमेल सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया था। उसने आरोप लगाया था कि आरोपी इंद्रपाल और सोहनवीर ने घर में घुसकर करमवीर को गोली मारकर हत्या की थी और फिर भाग गए थे। यह भी बताया गया था कि सोहनवीर चमेल सिंह की चचेरी बहन के साथ अवैध संबंध थे। करमवीर ने इसे रोकने की कोशिश की थी। इस कारण सोहनवीर और उसके साथी ने उसकी हत्या कर दी थी।
सुनाई गई सजा को किया खारिज
26 नवंबर 1980 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी इंद्रपाल को सह-आरोपी सोहनवीर के साथ मिलकर करमवीर की हत्या में दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस फैसले का मुख्य आधार थी एक प्रत्यक्ष गवाही, जो कि मृतक का सगा भाई था। जो घटना के समय मौजूद था। ट्रायल कोर्ट को लगा कि इस गवाही पर भरोसा करना उचित है। हालांकि, इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और अपील चलते-चलते सोहनवीर की मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरूप उसकी अपील खारिज कर दी गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि केवल एक चश्मदीद गवाह मृतक के भाई विजेंद्र सिंह की गवाही पर भरोसा करना उचित नहीं है। वारदात में इस्तेमाल किया गया हथियार न तो बरामद हुआ और न ही कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जब एक ही चश्मदीद गवाह की गवाही पर भरोसा किया जा रहा है तो उसे पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं माना जाना चाहिए।
एक आईविटनेस की गवाही पर दोषी ठहराना गलत
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के साक्ष्य पर आधारित रूप से आरोपी को दोषी ठहराना बहुत खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक ही आईविटनेस की गवाही की पुष्टि की जानी चाहिए थी। कोर्ट ने पहले जांच अधिकारी के कार्य में भी दोष देखा। उन्होंने यह बताया कि आरोपी की जांच के लिए एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) को नहीं भेजा गया था और न ही अपराध के हथियार को बरामद करने का कोई प्रयास किया गया था। इसी कारण कोर्ट ने मेरठ के अदालती आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
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