2008 में अस्तित्व में आई कौशांबी की सीट : विधानसभा में सपा हावी, भाजपा के माथे पर शिकन... 2024 में किसी नैया पार लगाएंगे राजा भैया?

विधानसभा में सपा हावी, भाजपा के माथे पर शिकन... 2024 में किसी नैया पार लगाएंगे राजा भैया?
UPT | 2008 में अस्तित्व में आई कौशांबी की सीट

May 19, 2024 18:33

कौशांबी की लोकसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई। 1997 के पहले यह इलाहाबाद जिले का हिस्सा हुआ करती थी। 2008 से पहले इसका नाम चायल होता था, लेकिन 2009 में पुनर्गठन के बाद नाम बदलकर कौशांबी कर दिया गया।

May 19, 2024 18:33

Short Highlights
  • 2008 में अस्तित्व में आई कौशांबी की सीट
  • भाजपा प्रत्याशी के लिए मुसीबत का सबब
  • सपा के लिए भी आसान नहीं लड़ाई
Kaushambi News : देश की कुल 49 सीटों पर 20 मई को पांचवें चरण में वोट डाले जाने हैं। इसके पहले चार चरणों की मतदान प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है। पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें मोहनलालगंज, लखनऊ, राय बरेली, अमेठी, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, फैजाबाद, कैसरगंज और गोंडा शामिल हैं। इसके पहले के एपिसोड में हम मोहनलालगंज, लखनऊ, अमेठी, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा और फतेहपुर के बारे में बात कर चुके हैं। आज बात कौशांबी की…

2009 में हुआ पहला चुनाव
कौशांबी की लोकसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई। 1997 के पहले यह इलाहाबाद जिले का हिस्सा हुआ करती थी। 2008 से पहले इसका नाम चायल होता था, लेकिन 2009 में पुनर्गठन के बाद नाम बदलकर कौशांबी कर दिया गया। यहां अब तक महज 3 बार ही लोकसभा चुनाव हुए हैं। 2009 में जब यहां पहली बार चुनाव हुए, तो समाजवादी पार्टी के शैलेंद्र कुमार 55 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए थे। इस चुनाव में भाजपा के गौतम चौधरी चौथे नंबर पर रहे थे। लेकिन जब 2014 के चुनाव हुए, तो भाजपा ने विनोद कुमार सोनकर को प्रत्याशी बनाया। सोनकर खटीक समाज का चेहरा थे। उनके सामने सपा के शैलेंद्र कुमार और बसपा के सुरेश पासी मैदान में थे। मोदी लहर पर सवार विनोद सोनकर चुनाव जीते, मगर केवल 42 हजार वोटों के अंतर से। 2019 का मुकाबला भी टक्कर का रहा। सपा ने विनोद सोनकर के सामने इंद्रजीत सरोज को मैदान में उतारा। इस मुकाबले में इंद्रजीत सरोज की हार हुई और वह 3.44 लाख वोट पा सके। विनोद सोनकर ने 38 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।

कौंशाबी का मुकाबला दिलचस्प क्यों?
जैसा हमने आपको पहले बताया, कौशांबी की सीट 2008 में अस्तित्व में आई। तब प्रतापगढ़ जिले की दो और कौशांबी की तीन विधानसभा सीटों को मिलाकर कौशांबी की लोकसभा सीट बनाई गई। पहले जान लीजिए कि इन विधानसभाओं के नाम क्या हैं। इसमें कौशांबी जिले की सिराथू, मंझनपुर (सुरक्षित) और चायल विधानसभा सीटें हैं, जो समाजवादी पार्टी के कब्जे में थीं। इसके अलावा प्रतापगढ़ जिले की बाबागंज (सुरक्षित) और कुंडा विधानसभा भी शामिल है। ये दोनों सीटें राजा भैया के नेतृत्व वाली जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पास हैं। कुंडा से खुद रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया विधायक हैं, वहीं बाबागंज की सुरक्षित सीट से उनके करीबी विनोद सरोज विधायक हैं। भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है, जबकि लोकसभा सीट पर उसका 10 साल से कब्जा है। ऐसे में कौशांबी का मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है।

राजा भैया का कितना प्रभाव?
प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से विधायक राजा भैया की छवि बाहुबली नेता की है। वह 1993 से यहां के विधायक हैं। 1993 से 217 तक का चुनाव तो वह निर्दलीय लड़ते रहे, लेकिन 2022 का चुनाव उन्होंने अपनी पा्टी के सिंबल पर लड़ा। कहते हैं कि कुंडा और बाबागंज की सीट पर राजा भैया का इतना ज्यादा प्रभाव है कि उनके एक इशारे पर वोटिंग इधर से उधर हो जाती है। यही वजह है कि सपा हो या भाजपा, राजा भैया के दर पर अक्सर खुशामद करने नेता पहुंचे रहते हैं। कुछ दिन पहले भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर राजा भैया के आवास पर पहुंचे थे। इसके ठीक बाद ही राजा भैया की तरफ से इस बात का एलान कर दिया गया कि कार्यकर्ता जहां चाहें, वहां वोट करें। अगर राजा भैया का समर्थन सपा को मिल गया, तो भाजपा के लिए चुनाव बेहद कठिन हो जाएगा।

केशव मौर्य का गृह जनपद
कौशांबी यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का गृह जनपद है। यहां की सिराथू विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी पल्लवी पटेल से मौर्य पिछले विधानसभा चुनाव में हार गए थे। लेकिन केशव मौर्य उत्तर प्रदेश की गैर यादव ओबीसी जातियों में मजबूत पकड़ रखते हैं। यहीं वजह है कि भाजपा ने उन्हें हार के बावजूद एमएलसी बनाकर डिप्टी सीएम बनाया था। उनके चुनाव हारने की वजह भले ही विरोधी लहर रही हो, लेकिन कौशांबी की सीट लोकसभा पर भाजपा के लिए केशव मौर्य का अहम भूमिका निभा सकते हैं।

भाजपा प्रत्याशी के लिए मुसीबत का सबब
कौशांबी से भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर के कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं। इसमें वह ब्राह्मण और बनिया समाज पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए देखे जा रहे हैं। सोनकर ने भले ही इन वीडियो को फर्जी बताकर शिकायत दर्ज करा दी हो, लेकिन उनके खिलाफ ब्राह्मण और बनिया समाज में नाराजगी कम होने का नाम नहीं ले रही है। सोनकर ने कुछ दिन पहले कौशांबी में आयोजित प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में अपने बयानों के लिए माफी भी मांग ली थी, लेकिन इससे उन्हें कुछ खास फायदा होने की उम्मीद न के बराबर है। यहां तक कि उनकी ही पार्टी के नेता खिलाफ में खड़े हो गए हैं। अगर ब्राह्मण और बनिया समाज के 60 फीसदी वोटर भी विनोद सोनकर से मुंह मोड़ लेते हैं, तो उनके लिए चुनाव में मुश्किल खड़ी हो सकती है।

सपा के लिए भी आसान नहीं लड़ाई
ऐसा नहीं है कि ये लड़ाई सिर्फ भाजपा के लिए ही मुश्किल है। सपा भी इस बार कम्फर्ट जोन में नहीं है। दरअसल 2022 में जिले की 3 विधानसभा सीटें सपा ने जीती थीं। लेकिन पल्लवी पटेल ने हाल ही में पार्टी छोड़ दी थी। पल्लवी ने सिराथू की सीट पर केशव मौर्य को हराया था। पल्लवी पटेल की पार्टी अपना दल कमेरावादी और असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम के गठबंधन से मिलकर बने पीडीएम की वजह से समाजवादी पार्टी के वोट कटने की पूरी संभावना है। वहीं चायल सीट से विधायक रही पूजा पाल ने राज्यसभा के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट कर दिया था। वह भी अब पार्टी में नहीं हैं। इन दोनों सिरों पर सपा को यकीनन नुकसान उठाना पड़ सकता है।

किसके पक्ष में 2024 के समीकरण?
कौशांबी लोकसभा में कुल सात लाख दलित मतदाता हैं। इसमें से डेढ़ लाख पासी और एक लाख के लगभग खटीक मतदाता हैं। इसके अलावा 1.4 लाख ब्राह्मण, 1.2 लाख वैश्य, 1.3 लाख पटेल, 1.15 लाख मौर्य और 2.5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं लोधी मतदाताओं की संख्या 60 हजार और यादव मतदाता 1.4 लाख हैं। समाजवादी पार्टी ने 2024 में पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को टिकट दिया है, वहीं भाजपा ने खटीक समाज से आने वाले विनोद सोनकर को प्रत्याशी बनाया है। बसपा की तरफ से शुभ नारायण गौतम उम्मीदवार हैं। अगर कौशांबी के सियासी समीकरण देखें, तो यहां पर बसपा का फिलहाल कोई वजूद दिखाई नहीं देता है। जानकार भी मानते हैं कि असली लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। 4 जून को नतीजे घोषित होते ही सब स्पष्ट हो जाएगा।

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