निरंजनी अखाड़े के नागा संत दिगंबर कृष्ण गिरि अपनी अनूठी कहानी और व्यक्तित्व से सबका ध्यान खींच रहे हैं। साधना में लीन, साधारण तंबू में धूनी रमाते...
एम टेक इंजीनियर से बने नागा साधु : दिगंबर कृष्ण गिरि की अनोखी यात्रा, महाकुंभ में बने आकर्षण का केंद्र
Jan 09, 2025 14:33
Jan 09, 2025 14:33
इंजीनियरिंग से आध्यात्म की ओर
कर्नाटक के मूल निवासी 55 वर्षीय दिगंबर कृष्ण गिरि कभी कर्नाटक यूनिवर्सिटी के टॉपर थे। उन्होंने एम टेक की डिग्री हासिल कर मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया और एक समय सालाना 40 लाख रुपये का पैकेज पाया। लेकिन उनका हृदय हमेशा अधूरेपन से घिरा रहा। साल 2010 में हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में वहां पहुंचे दिगंबर कृष्ण गिरि नागा साधुओं के जीवन, उनके समर्पण और आध्यात्मिकता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जीवन की सुख-सुविधाएं त्यागने का निश्चय कर लिया। इस निर्णय के बाद उन्होंने निरंजनी अखाड़े में सेवा की और अंततः सन्यास दीक्षा लेकर अपने हाथों से अपना पिंडदान कर दिया।
संन्यास का जीवन
आज दिगंबर कृष्ण गिरि पूरी तरह आध्यात्मिक साधना में लीन हैं। उनके तंबू के बाहर हर समय भगवान भोलेनाथ का त्रिशूल गड़ा रहता है और धूनी जलती रहती है। उनका कहना है कि सांसारिक जीवन में हर भौतिक सुख होते हुए भी उन्हें शांति और सुकून नहीं मिल सका। लेकिन सन्यास के बाद वह आनंदित और संतुष्ट जीवन जी रहे हैं। उनका कहना है, “अब मेरे पास न कुछ पाने की लालसा है, न कुछ खोने का गम। जीवन पूरी तरह से सनातन की सेवा के लिए समर्पित हो चुका है।”
परिवार से सीमित संपर्क
दिगंबर कृष्ण गिरि का परिवार से संपर्क अब केवल सोशल मीडिया तक सीमित है। नौकरी छोड़ने के बाद वह पूरी तरह से सन्यास के आदर्शों में रम गए हैं। हालांकि, उनके जीवन की यह यात्रा उन्हें महाकुंभ में अन्य नागा साधुओं के बीच भी एक विशिष्ट पहचान देती है। महाकुंभ में होने वाले तीन शाही स्नानों का उन्हें बेसब्री से इंतजार है। दिगंबर कृष्ण गिरि का मानना है कि उनका यह आध्यात्मिक जीवन ही उन्हें सच्ची शांति और आनंद प्रदान करता है।
लोगों में आकर्षण का केंद्र
उनके जीवन की प्रेरणादायक यात्रा और व्यक्तित्व के कारण महाकुंभ में आने वाले लोग उनके साथ सेल्फी लेने और चर्चा करने के लिए उत्सुक रहते हैं। लेकिन दिगंबर कृष्ण गिरि खुद अपने बीते हुए जीवन की चर्चा से बचते हैं। उनका कहना है कि उनका ध्यान अब केवल धर्म, शास्त्र और सनातन की सेवा पर है।
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