फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। 2024 के फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी के दीपक पटेल ने पार्टी को तीसरी बार जीत दिलाने का अवसर प्रदान किया है...
फूलपुर में सपा की हार का बड़ा कारण : कमजोर उम्मीदवार या खराब मैनेजमेंट , इन पांच कारणों में समझें पूरा मामला
Nov 24, 2024 20:28
Nov 24, 2024 20:28
सवालों के घेरे में अखिलेश
इस जीत से यह स्पष्ट है कि बीजेपी ने न केवल अखिलेश यादव के पीडीए (पार्टी, दल, अलायंस) के फार्मूले को पूरी तरह से विफल किया, बल्कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों की एकजुटता को भी कमजोर कर दिया। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल, जो फूलपुर विधानसभा से ही वोटर हैं, उनके नेतृत्व और पाल समुदाय के वोटरों को अपने पक्ष में लाने की अखिलेश यादव की कोशिशें अब सवालों के घेरे में हैं।
समाजवादी पार्टी के हार की पांच वजह
फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे-
- इनमें सबसे पहली वजह थी उम्मीदवार का सही चयन न करना। समाजवादी पार्टी के पास क्षेत्र में जातीय समीकरणों को साधने वाले कई प्रभावशाली चेहरे थे, लेकिन पार्टी ने बुजुर्ग मुजतबा सिद्दीकी पर दांव खेला। इस निर्णय ने पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का उत्साह कम किया। विरोध के बावजूद उम्मीदवार को नहीं बदलने का निर्णय पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। यहां तक कि मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा करने के कारण ध्रुवीकरण भी हुआ, जिससे स्थिति और भी कठिन हो गई।
- दूसरी बड़ी वजह थी इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस से तालमेल का अभाव। सपा नेताओं का कांग्रेस के साथ कोई मजबूत समन्वय नहीं नजर आया। कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने फूलपुर में प्रचार में भाग नहीं लिया, और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुरेश यादव द्वारा बगावत कर चुनाव लड़ने ने पार्टी को और भी संकट में डाला। पार्टी ने न तो कांग्रेस के साथ किसी बैठक का आयोजन किया और न ही प्रचार में उसकी मदद ली, जिससे गठबंधन की ताकत कमजोर पड़ी।
- तीसरी वजह थी समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल का कमजोर नेतृत्व। वह कई दिनों तक फूलपुर में रहे, लेकिन न तो चुनाव अभियान को गति दे सके, न ही कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सके। हालांकि कुछ नेता जैसे इंद्रजीत सरोज, संदीप पटेल और हाकिम लाल बिंद सक्रिय रहे, लेकिन कई बड़े नेता जैसे पूर्व सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह और धर्मराज पटेल कहीं नजर नहीं आए। पार्टी ने नाराज़ और निष्क्रिय नेताओं को बाहर निकालने का प्रयास भी नहीं किया, जिससे पार्टी की स्थिति और कमजोर हो गई।
- चौथी वजह थी चुनावी रणनीति की कमी। समाजवादी पार्टी ने न तो ठोस रणनीति बनाई, न ही स्थानीय मुद्दों को उठाया। यादव और मुस्लिम वोटरों वाले बूथों पर भी सन्नाटा रहा। पार्टी अपने कोर वोटर्स को चुनाव में सक्रिय करने में नाकाम रही। PDA के वोटरों को एकजुट रखने की कोशिश भी असफल रही। मीडिया और सोशल मीडिया का सही उपयोग न होने के कारण महंगाई, बेरोज़गारी और पेपर लीक जैसे मुद्दों का लाभ भी पार्टी को नहीं मिल पाया।
- अंतिम और महत्वपूर्ण वजह थी प्रत्याशी और पार्टी पदाधिकारियों के बीच तालमेल का अभाव। मुजतबा सिद्दीकी के एक बयान ने उनकी स्थिति को और कमजोर कर दिया। इसके अलावा, शिवपाल यादव और डिम्पल यादव जैसे स्टार प्रचारकों की भी कमी पार्टी को खल रही थी। अधिकांश स्टार प्रचारक चुनाव के दौरान मैदान से गायब रहे, जिससे पार्टी का प्रचार कमजोर पड़ा।
भाजपा के जीत की पांच महत्वपूर्ण वजह
फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे-
- इसमें सबसे पहला कारण ये था कि, बीजेपी ने इस सीट पर उम्मीदवार के चयन में स्मार्ट रणनीति अपनाई। इस सीट पर पचास से ज्यादा दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने दीपक पटेल को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया। दीपक पटेल का नाम घोषित होते ही पार्टी ने सीधे मुकाबले में कदम रखा और जैसे-जैसे चुनाव करीब आए, माहौल पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में हो गया। उनकी साफ-सुथरी और जुझारू छवि ने जनता में विश्वास पैदा किया, साथ ही उनके परिवार की सक्रियता, खासकर उनकी मां केशरी देवी के कार्यकाल के दौरान, ने भी काम किया।
- दूसरी महत्वपूर्ण वजह थी बीजेपी का आक्रामक प्रचार अभियान। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने चुनावी भाषणों में जातिवाद की दीवार तोड़ने की कोशिश की, जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने गैर-यादव ओबीसी जातियों को एकजुट करने के लिए यहां कई दिनों तक प्रचार किया और इस प्रयास में उन्हें सफलता मिली। इसके साथ ही पार्टी ने हर वर्ग के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए व्यापक रणनीति अपनाई, जो उनके जीत में अहम भूमिका निभाई।
- तीसरी वजह थी दीपक पटेल का चुनावी प्रबंधन। उनके परिवार को चुनावी प्रबंधन में अनुभव था और उनके बड़े भाई दिनेश पटेल ने पार्टी के साथ मिलकर हर बूथ पर अलग-अलग रणनीतियां बनाई। माइक्रो मैनेजमेंट के तहत उन्होंने न केवल घर-घर तक पहुंच बनाई, बल्कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कोर वोटर्स में सेंधमारी की। दलितों के आधे वोट, यादवों के 15 से 20 प्रतिशत वोट और मुस्लिम वोटों का भी एक अच्छा हिस्सा बीजेपी को मिला, जिससे पार्टी को मजबूती मिली।
- चौथी वजह थी पार्टी की एकजुटता। दीपक पटेल के नाम पर पार्टी कार्यकर्ता पूरी तरह एकजुट रहे और सभी ने जीत के लिए संकल्प लिया। पार्टी में कुछ नेताओं और पदाधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठे, लेकिन कार्यकर्ताओं की एकजुटता और सक्रियता ने मुश्किल लड़ाई को आसान बना दिया। इस एकजुटता को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बखूबी संचालित किया और उनके मार्गदर्शन में पार्टी की ताकत का संचार हुआ।
- पांचवीं वजह थी विकास, कानून व्यवस्था और सुशासन का मुद्दा। बीजेपी ने इसे प्रमुखता से उठाया, जिससे सपा के गुंडाराज और माफियाराज के खिलाफ एक मजबूत संदेश गया। पार्टी ने महिलाओं के वोटरों पर विशेष ध्यान दिया और सीएम योगी के नाम और चेहरे पर उनका विश्वास बढ़ाया। दीपक पटेल के परिवार, खासकर उनकी मां और पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल तथा भाभी लक्ष्मी पटेल, ने महिलाओं के बीच गहरी पैठ बनाई। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं ने पार्टी के पक्ष में वोटिंग को प्रभावित किया और यह सब बीजेपी के पक्ष में गया। सपा विधायक पूजा पाल और माफिया अतीक के खिलाफ मारे गए उमेश पाल की पत्नी जया पाल का समर्थन भी बीजेपी को फायदा पहुंचा गया।
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