महाकुंभ में हिंदू सनातन धर्म के 13 अखाड़ों का शाही स्नान जन आस्था का सबसे बड़ा आकर्षण होता है। इन अखाड़ों में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। महाकुंभ में धर्म का प्रचार करने वाले अखाड़ों में अब पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा भी शामिल हो गया...
महाकुंभ 2025 : अखाड़ों ने किया प्लास्टिक को बैन, मिट्टी के बर्तनों और दोना पत्तल का होगा उपयोग
Nov 09, 2024 21:11
Nov 09, 2024 21:11
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प्लास्टिक-फ्री और ग्रीन कुंभ बनाने का लक्ष्य
योगी सरकार ने प्रयागराज महाकुंभ को प्लास्टिक-फ्री और ग्रीन कुंभ के रूप में आयोजित करने का संकल्प लिया है। कुंभ मेला प्रशासन इस दिशा में लगातार प्रयासरत है, जबकि अखाड़ों और संतों ने भी अपने एजेंडे में पर्यावरण संरक्षण को शामिल किया है। निरंजनी अखाड़े के प्रयागराज स्थित मुख्यालय में 5 अक्टूबर 2024 को आयोजित अखाड़ा परिषद की बैठक में पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक संकल्प पारित किया गया था। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी का कहना है कि प्रकृति है तो मनुष्य है और इसलिए प्रकृति को बचाए रखना बेहद जरूरी है। इस बार महाकुंभ में अखाड़ों के संत भी श्रद्धालुओं को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करेंगे। इसके अलावा, महाकुंभ के दौरान संतों और श्रद्धालुओं से प्लास्टिक और थर्मोकोल के बर्तनों के बजाय दोना-पत्तल और मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल बढ़ाने की अपील की गई है। इस संबंध में एक योजना भी बनाई जा रही है ताकि महाकुंभ को पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार रूप से मनाया जा सके।
संतों को किया जाएगा सम्मानित
आदि शंकराचार्य ने बौद्धिक और सैन्य भावना से संपन्न ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवारों के तरुणों को एकत्र कर, राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए जो सेना तैयार की, उसी से 13 अखाड़ों का अस्तित्व सामने आया। ये अखाड़े सनातन धर्म की धार्मिक परंपराओं का पालन करते हुए अपनी यात्रा तय कर रहे हैं। योगी सरकार के 2019 के भव्य और स्वच्छ कुंभ के आयोजन में अखाड़ों में कुछ अहम बदलाव देखने को मिले। इन बदलावों में सबसे महत्वपूर्ण यह था कि समाज के वंचित और दलित वर्ग से आने वाले साधु संतों को अब अखाड़ों में उच्च पदों पर आसीन किया गया। 2019 में, जूना अखाड़े ने दलित समाज से आने वाले संत कन्हैया प्रभु नंद गिरी को महा मंडलेश्वर के रूप में नियुक्त किया। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, इस महाकुंभ में 450 से अधिक वंचित और दलित समाज से आने वाले संतों को महा मंडलेश्वर, महंत और मंडलेश्वर जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जाएगा।
संतों को अखाड़ों में मिलेंगे महत्वपूर्ण पद
जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी के नेतृत्व में इस बार 370 दलित संतों को महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत और पीठाधीश्वर के पद पर नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा पंचायती अखाड़ा उदासीन निर्वाण के महंत दुर्गादास और पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी के सचिव महंत जमुना पुरी ने भी इस बदलाव की पुष्टि की है और बताया कि इस महाकुंभ में उनके अखाड़ों में भी वंचित और दलित समाज से संबंधित संतों को उच्च स्थान दिया जाएगा। यह बदलाव योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से हुआ है, जिन्होंने वंचित समाज से आने वाले महात्माओं को योग्यतानुसार सम्मानित करने और उन्हें अखाड़ों में प्रमुख पदों पर नियुक्त करने की दिशा में काम किया है। उनका मानना है कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए दुनिया भर से वंचित वर्ग को जोड़ना जरूरी है, ताकि समाज में समानता और एकता स्थापित की जा सके।
अखाड़ों में मातृशक्ति को विशेष स्थान
संन्यास के बाद अखाड़ों में सदस्यता और महत्वपूर्ण पद प्रदान करने में मातृ शक्ति को मिल रही है प्राथमिकता
अखाड़े शिव और शक्ति का प्रतीक हैं। मातृ शक्ति को हमेशा को अखाड़ों का पूजनीय माना गया है। सनातन धर्म की ध्वजा फहराने में भी नारी शक्ति भी किसी से पीछे नहीं हैं। प्रयागराज में 2019 में आयोजित कुंभ में देश और प्रदेश में नारी सशक्तीकरण की गूंज का असर देखने को मिला और बड़ी संख्या में महिला संतो को महामंडलेश्वर के पद पर विभूषित करते हुए उनका पट्टाभिषेक किया गया। निर्मोही अनि अखाड़े के सचिव महंत राजेंद्र दास का कहना है कि पिछले कुम्भ मेले में आठ विदेशी महिलाओं को महंत बनाया था। इस महाकुंभ में नारी शक्ति को बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी ताकि अखाड़े के सचिव महंत राजेंद्र दास का कहना है कि चारों दिशाओं में सनातन का प्रचार प्रसार हो सके। विभिन्न अखाड़ों की तरफ से 53 महिला संतो को इस बार महंत व महा मंडलेश्वर बनाने की तैयारी है।
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