पिछले लगभग 1400 वर्षों से, प्रयागराज चीनियों के लिए एक प्रमुख स्थल रहा है और यह बात चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने अपनी पुस्तक में भी उल्लेखित की है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर ने हमेशा ही चीन और इसके आस-पास के देशों को आकर्षित किया है...
महाकुंभ 2025 : 1400 साल से चीन की पहली पसंद है प्रयागराज, ह्वेनत्सांग ने अपनी किताब में भी की थी प्रशंसा
Dec 24, 2024 18:29
Dec 24, 2024 18:29
अपनी किताब में प्रयागराज का किया जिक्र
इसके अलावा, ह्वेनत्सांग ने अपनी पुस्तक में प्रयागराज की जलवायु, स्वास्थ्य और फलों से भरपूर पेड़ों के बारे में भी लिखा। उन्होंने यह भी बताया कि प्रयागराज और इसके आसपास के लोग विनम्र, सभ्य और ज्ञान के प्रति समर्पित होते हैं। इसके अलावा, विभिन्न पुरातात्त्विक सर्वेक्षणों से यह प्रमाणित होता है कि प्रयागराज को 'तीर्थराज' की मान्यता ऐसे ही नहीं मिली है।
देश के बड़े-बड़े राजा और महाराजा संगम पर होते थे एकत्र
प्रयागराज की सांस्कृतिक महत्ता के बारे में ह्वेनत्सांग ने अपनी किताब सी-यू-की में लिखा है कि देश के बड़े-बड़े राजा और महाराजा यहां पर दान का उत्सव मनाने एकत्र हुआ करते थे। इनमें सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा हर्षवर्धन का शासन काल सबसे प्रमुख रहा। ह्वेनत्सांग की किताब में प्राचीनकाल में प्रयाग के महात्म्य का रोचक वर्णन मिलता है।
दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना के घेरे में है प्रयागराज
ह्वेनत्सांग ने लिखा है कि प्राचीन काल में प्रयागराज में बड़े स्तर पर धार्मिक उत्सव मनाया जाता था, जिसमें 5 लाख से अधिक व्यक्ति एकत्र होते। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश के बड़े-बड़े राजा और महाराजा हिस्सा लेते थे। उसने लिखा है कि इस बड़े राज्य का विस्तार 500 ली (05 ली = 01 मील) तक है। प्रयाग दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना के बीच 20 ली के घेरे में है। यहां की जलवायु उष्ण है। साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद अनुकूल वातावरण है।
अक्षय वट का भी किया जिक्र
चीनी यात्री ने लिखा है कि नगर में एक देव मंदिर है (किले के भीतर वर्तमान में पातालपुरी मंदिर) जो अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए जग प्रसिद्ध है। लोगों की मान्यता है कि यहां पर एक पैसा चढ़ाने से एक हजार मुद्राएं दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। मंदिर के आंगन में विशाल वृक्ष (अक्षय वट) है, जिसकी शाखाएं व पत्तियां बहुत दूर तक फैली रहती हैं। यहां स्नान करने मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। प्रयागराज में आने वाले लोग 7 दिनों तक भोजन नहीं करते और एक दिन चावल खाते हैं। दो नदियों के बीच सुंदर और स्वच्छ बालू से ढका मैदान है। यहीं संगम पर देश के सबसे समृद्ध लोग आते हैं और अपना सर्वस्व दान कर चले जाते हैं।
पुरा पाषाण काल से विकसित रहा प्रयागराज
प्रयागराज की मेजा तहसील में बेलन व टोंस नदी के जमाव में पुरा पाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल का सांस्कृतिक विकास क्रम भी देखने को मिलता है। इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग ने 1962-63 में बेलन, सेवती क्षेत्र में सर्वेक्षण का काम किया था, जिसमें हनुमानगंज, लोन घाटी, मझगवां जैसे पुरा स्थान प्रकाश में आए। बेलन घाटी के सर्वेक्षण से प्रारंभिक मानव के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। यहां प्राप्त सांस्कृतिक अवशेषों और मृदभांडों के टुकड़ों से यहां निवास करने वालों की जानकारी मिलती है। यहां मिली वस्तुओं से नवपाषाण संस्कृति के विकसित होने का पुख्ता प्रमाण मिलता है।
प्रयागराज के विकास के नायक सीएम योगी- अनुपम परिहार
सरस्वती पत्रिका के संपादक अनुपम परिहार बताते हैं कि चीनी यात्री ह्वेनत्सांग दूसरे ऐसे चीनी यात्री हैं, जिन्होंने भारत खासकर प्रयागराज के बारे में इतने विस्तार से लिखा है। अनुपम परिहार ने खुद भी अपनी किताब 'प्रयाग की धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत' किताब में सम्राट हर्षवर्धन को प्रजा के विकास के लिए त्रिवेणी संगम पर सबसे बड़ा आयोजन करने वाला प्रतापी राजा बताया है। वो कहते हैं कि सम्राट हर्षवर्धन की तरह ही मौजूदा दौर में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रयागराज के विकास के नायक हैं। सीएम योगी के नेतृत्व में इस बार महाकुम्भ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए 6 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की जा रही है। ये उनकी विकासवादी नीतियों का ही परिणाम है कि दुनिया का सबसे वृहद उत्सव प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है।
ये भी पढ़ें- 2024 में यूपी का शानदार प्रदर्शन : 12 पद्मश्री से लेकर पेरिस ओलंपिक तक में दिखा दम, हर मोर्चे पर मिली सफलता
Also Read
24 Dec 2024 09:44 PM
योगी सरकार महाकुंभ 2025 को भव्य बनाने के लिए देशभर में रोड-शो आयोजित कर रही है, ताकि आम जनता और गणमान्य व्यक्तियों को आमंत्रित किया जा सके। इस सिलसिले में... और पढ़ें