इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : लिंग परीक्षण मामलों में पुलिस के पास नहीं जांच का अधिकार, खारिज किया मुकदमा...

लिंग परीक्षण मामलों में पुलिस के पास नहीं जांच का अधिकार, खारिज किया मुकदमा...
UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Oct 11, 2024 21:15

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि लिंग परीक्षण से संबंधित अपराधों की जांच का अधिकार पुलिस के पास नहीं है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) के तहत केवल सक्षम प्राधिकारी को कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार...

Oct 11, 2024 21:15

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि लिंग परीक्षण से संबंधित अपराधों की जांच का अधिकार पुलिस के पास नहीं है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) के तहत केवल सक्षम प्राधिकारी को कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि पीसीपीएनडीटी एक्ट अपने आप में एक संपूर्ण संहिता है।  जिसमें जांच, तलाशी, जब्ती और शिकायत दर्ज करने के लिए सभी आवश्यक प्रावधान शामिल हैं। बुलंदशहर के डॉक्टर ब्रिज पाल सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने डॉक्टर के खिलाफ चल रही मुकदमे की कार्रवाई को रद्द कर दिया है।

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याचिका में भ्रूण लिंग की पहचान का लगाया आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया कि भ्रूण लिंग की पहचान करने का कार्य किया गया। इस मामले में बुलंदशहर कोतवाली नगर में तहसीलदार खुर्जा ने 2017 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि शोभा राम अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के भ्रूण की लिंग पहचान की जा रही है। इसी रिपोर्ट के आधार पर एसआई सुभाष सिंह ने एफआईआर दर्ज की। पुलिस टीम के सभी सदस्यों ने इस घटना के गवाह के रूप में हस्ताक्षर किए। इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता के साथ-साथ दो अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।



डॉक्टर के वकील ने दी दलील
डॉक्टर के वकील ने दलील दी कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। केवल सक्षम प्राधिकारी ही शिकायत दर्ज करा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम के उल्लंघन के लिए एफआईआर का पंजीकरण अस्वीकार्य है। अधिनियम के तहत अपराध के लिए पुलिस को कोई जांच की अनुमति नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई भी मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता है। सक्षम प्राधिकारी की ​शिकायत पर ही न्यायालय संज्ञान ले सकता है। इस आधार पर कोर्ट ने पूरी मुकदमे की पूरी कार्रवाई को रद्द कर दिया।

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2017 में किया था आरोप पत्र पेश
पुलिस ने मामले की जांच के बाद 6 अगस्त 2017 को मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोप पत्र पेश किया। इसके बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने समन जारी किया। याचिकाकर्ता डॉ. ब्रिज पाल सिंह ने इस समन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने समन और उससे संबंधित पूरी कार्रवाई को रद्द करने की मांग की।

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