प्रयागराज के तीर्थपुरोहित प्रयागवाल : मुक्ति के है मार्गदर्शक, संगम क्षेत्र में पिंडदान और अस्थि पूजन करवाने के अधिकारी

मुक्ति के है मार्गदर्शक, संगम क्षेत्र में पिंडदान और अस्थि पूजन करवाने के अधिकारी
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Dec 18, 2024 19:28

तीर्थराज प्रयागराज का नाम आते ही त्रिवेणी संगम और महाकुम्भ की यादें साथ जुड़ी होती हैं, लेकिन इन धार्मिक स्थलों से गहरे जुड़े होते हैं यहां के तीर्थपुरोहित, जिन्हें प्रयागवाल या स्थानीय भाषा में पंडा भी कहा जाता है।

Dec 18, 2024 19:28

Short Highlights
  • त्रिवेणी संगम तट पर स्नान-दान और महाकुम्भ का आयोजन पुरानी परंपरा
  • संगम क्षेत्र में पिण्ड दान और अस्थि पूजन का महत्व
  • तीर्थ पुरोहित, जिन्हें प्रयागवाल या स्थानीय भाषा में पंडा भी कहा जाता है
Prayagraj News : तीर्थराज प्रयागराज का नाम आते ही त्रिवेणी संगम और महाकुम्भ की यादें साथ जुड़ी होती हैं, लेकिन इन धार्मिक स्थलों से गहरे जुड़े होते हैं यहां के तीर्थपुरोहित, जिन्हें प्रयागवाल या स्थानीय भाषा में पंडा भी कहा जाता है। सनातन परंपरा के अनुसार, प्रयागराज के संगम तट पर मृत्यु के बाद पितरों की मुक्ति अस्थि पूजन और पिण्ड दान के बाद ही होती है, और यह कार्य केवल प्रयागवाल तीर्थपुरोहित ही करते हैं। प्राचीन काल से इन तीर्थपुरोहितों ने संगम तट पर पूजन-अर्चन और माघ व महाकुम्भ मेले में श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने की परंपरा निभाई है। ये धार्मिक कर्मकांड न केवल मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं, बल्कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं।

संगम क्षेत्र में पिण्ड दान और अस्थि पूजन का महत्व
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर स्नान-दान और महाकुम्भ का आयोजन बहुत पुरानी परंपरा है। इस स्थान को सनातन धर्म में तीर्थराज कहा गया है, जो मोक्ष देने वाला माना जाता है। यहां के अस्थि पूजन और पिण्ड दान का विशेष महत्व है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पितरों की मुक्ति इन कर्मकांडों के बिना संभव नहीं होती। संगम तट पर यह धार्मिक कार्य केवल तीर्थपुरोहित प्रयागवाल ही करवाते हैं। इन तीर्थपुरोहितों का यजमानों के साथ एक क्षेत्रवार बंटवारा है, जहां वे अपने यजमानों के पितरों के लिए अस्थि पूजन और पिण्ड दान करवाते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चलती आ रही है और इस प्रक्रिया में प्रयागराज, काशी और गया जैसे प्रमुख स्थान शामिल हैं।


संगम क्षेत्र में पुरोहितों की पहचान
प्रयागराज के तीर्थपुरोहित राजेश्वर गुरु बताते हैं कि सभी तीर्थपुरोहित अपने यजमानों का वंशवार लेखा-जोखा अपनी बही में रखते हैं, जिसमें कई पीढ़ियों के पूर्वजों का विवरण होता है। पहचान की सुविधा के लिए तीर्थपुरोहित विभिन्न झण्डों और निशानों का उपयोग करते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाए जाते हैं। इनके यजमान इन्हीं झण्डों और निशानों से उन्हें पहचानते हैं। तीर्थपुरोहितों के ये झण्डे संगम तट पर आने वाले श्रद्धालुओं को दूर से ही दिखाई देने लगते हैं। प्रयागवाल तीर्थपुरोहित गंगा पूजन, स्नान-दान, पिण्डदान, अस्थि पूजन, मुण्डन और कल्पवास जैसे तमाम धार्मिक कार्य करवाते हैं। माघ मेले, कुम्भ और महाकुम्भ में श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने का कार्य भी ये ही करते आ रहे हैं।

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