योगी सरकार के नजूल विधेयक ने सूबे के लाखों लोगों के माथे पर शिकन और जिंदगी पर प्रश्नचिंह खड़ा कर दिया है। उत्तर प्रदेश का एक शहर तो ऐसा है, जिसका लगभग एक तिहाई हिस्सा ही नजूल की भूमि पर बसा है। हम बात प्रयागराज की कर रहे हैं।
नजूल विधेयक ने बढ़ाई टेंशन : एक तिहाई नजूल लैंड पर बसा है यूपी का ये शहर, तो क्या एक लाख घरों पर बुल्डोजर चलेगा?
Aug 02, 2024 14:22
Aug 02, 2024 14:22
- नजूल भूमि विधेयक का हो रहा विरोध
- नजूल भूमि पर बसा है एक तिहाई प्रयागराज
- भाजपा विधायकों ने सरकार को घेरा
उजड़ जाएगा सपनों का आशियाना
प्रयागराज के निवासियों में बड़ी बेचैनी है। कई लोगों ने उधार लेकर या परिवार के गहने गिरवी रखकर यहां अपना घर बनाया था। अब उन्हें डर है कि उनके घरों पर बुलडोजर चल सकता है। 90% से अधिक लोगों ने किसी लीज होल्डर से जमीन या मकान खरीदा है, जिन्हें अब सरकार से किसी राहत की उम्मीद नहीं है। लोग सवाल कर रहे हैं कि अगर सरकार की नीयत साफ है, तो इस तरह का बिल लाने की जरूरत क्यों थी? प्रयागराज के लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि उन्हें उनके घरों से बेदखल न किया जाए। उनकी मांग है कि नजूल भूमि पर बने मकानों को टैक्स और जुर्माना लेकर वैध कर दिया जाए और उन्हें मालिकाना हक दिया जाए। लोगों का कहना है कि मोदी और योगी सरकारों ने गरीबों को घर देने का वादा किया था, लेकिन नजूल एक्ट उनके वादों का मजाक उड़ा रहा है।
10 हजार से अधिक परिवार होंगे प्रभावित
नजूल भूमि पर बने कानून से प्रयागराज के 10 हजार से अधिक परिवार सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इनमें से 1800 लोगों ने वर्षों पहले जमीन फ्री होल्ड कराने के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब सभी के सामने बेदखली का खतरा मंडरा रहा है। शहर में कुल एक हजार से अधिक भूखंड के अंतर्गत 71 लाख वर्गमीटर नजूल भूमि है, जिसमें से 35 लाख वर्गमीटर पर काबिज लोगों ने जमीन फ्री होल्ड करा ली है। प्रयागराज में नजूल भूमि की नई नीति के तहत सरकार ने पहले फ्री होल्ड और अन्य प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी थी। करीब एक साल पहले आदेश जारी किया गया था कि अब किसी भी नजूल भूमि को फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा और न ही लीज की अवधि बढ़ाई जाएगी। इसके बजाय, अब तक फ्री होल्ड न हो पाने वाली नजूल भूमि को अधिग्रहीत किया जाएगा।
सरकार के खिलाफ हो गए भाजपा के विधायक
नए अध्यादेश का विधानसभा में भी विरोध हुआ। स्थानीय भाजपा विधायकों सिद्धार्थ नाथ सिंह, हर्षवर्धन बाजपेयी, आरके वर्मा, और रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया ने इसका तीव्र विरोध किया। लूकरगंज के बीजेपी पार्षद रोचक दरबारी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर सरकार ने उनके इलाके के लोगों को बेघर किया तो उनका परिवार भारतीय जनता पार्टी छोड़ देगा। सरकार के इस बिल का विधानसभा में भी विरोध हुआ। खुद भाजपा के विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने कहा कि यह विधेयक न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने कहा कि हजारों परिवार बेघर हो जाएंगे। एक तरफ हम पीएम आवास योजना में घर दे रहे हैं, दूसरी तरफ हम हजारों परिवारों को बाहर निकलने के लिए कह रहे हैं। वहीं कुंडा के विधायक राजा भैया ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की जमीन भी नजूल की भूमि पर है, उसे भी हटवा देंगे क्या? उन्होंने कहा कि इससे लोग सड़कों पर आ जाएंगे। सरकार इस विधेयक पर फिर से विचार करे।
नजूल भूमि पर कई सरकारी बिल्डिंग
ब्रिटिश राज के दौरान, अंग्रेजी हुकूमत ने विरोधी राजा-रजवाड़ों और आंदोलनकारियों की ज़मीनें छीन लीं, जिन्हें नजूल सम्पत्ति कहा जाता था। स्वतंत्रता के बाद, इन संपत्तियों का अधिकार राज्य सरकारों को सौंपा गया, और इन्हें लीज पर देने की व्यवस्था की गई। राज्य सरकारें नजूल सम्पत्तियों की लीज की मियाद 15 से 99 साल तक निर्धारित कर सकती हैं। इस प्रकार की भूमि हर राज्य में मौजूद है, और यूपी सरकार ने इसी भूमि को लेकर नया विधेयक पेश किया है। इन संपत्तियों का उपयोग सार्वजनिक सुविधाओं जैसे अस्पतालों, स्कूलों, और पंचायतों के लिए किया जाता है। नजूल सम्पत्ति विधेयक के तहत, यदि कोई व्यक्ति नजूल सम्पत्ति का पट्टा लेता है और पट्टे का किराया नियमित रूप से चुकाता है, तो उसका पट्टा नवीनीकरण के योग्य होगा। इस मामले में, पट्टे की अवधि 30 साल तक बढ़ाई जाएगी। यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो जाती है, तो संपत्ति सरकार के पास वापस आ जाएगी। अगर पट्टे की अवधि खत्म होने के बाद संपत्ति का उपयोग जारी है, तो पट्टे का किराया जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित किया जाएगा। नजूल भूमि अध्यादेश से कई प्रमुख सरकारी कार्यालय और बड़े शिक्षण संस्थान भी प्रभावित हो सकते हैं। सिविल लाइंस स्थित नजूल भूमि पर कई विभागों का प्रदेश मुख्यालय है। इसके अलावा, सिविल लाइंस, जार्जटाउन, मम्फोर्डगंज, टैगोरटाउन जैसे इलाकों में नजूल भूमि पर कई बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी हैं, जिनके संबंधित भूखंड अभी तक फ्री होल्ड नहीं हुए हैं। इस स्थिति ने प्रयागराज के विकास और आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
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