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Muzaffarnagar news : 165 साल पुरानी पनचक्की का पिसा आटा खाते हैं 20 गांव के लोग, ये है खासियत

165 साल पुरानी पनचक्की का पिसा आटा खाते हैं 20 गांव के लोग, ये है खासियत
UPT | निरगाजनी झाल के किनारे लगी पनचक्की के साथ आसपास के ग्रामीण।

May 03, 2024 10:37

चक्की में पिसा आटा छह महीने तक भी खराब नहीं होता है। पनचक्की की विशेषता है कि इसमें जिस पत्थरों से गेंहू की पिसाई की जाती है। वह कुदरती...

May 03, 2024 10:37

Short Highlights
  • गंगनहर के किनारे अंग्रेजों के जमाने की आटा पनचक्की 
  • मात्र चार रुपए में पांच किलो आटा पिसाई की दर
  • कोई नहीं है पनचक्की मालिक, हर साल छोड़ा जाता है ठेका
Muzaffarnagar news : पुराने समय में देश में आटा पीसने के लिए पनचक्की या घरों में हाथ की चक्कियां होती हैं। जिन पर गेंहू पिसाई कर आटा निकाला जाता था। समय बदला तो गेंहू पिसाई के लिए कई तरह की चक्कियां बाजार में आ गईं। बड़ी-बड़ी गेंहू पिसाई चक्कियों का स्थान छोटी चक्की ने ​ले लिया है। लेकिन आज भी गंग नहर के किनारे निरगाजनी झाल पर ऐसी प्राकृतिक पनचक्की लगी है। जिस पर गेंहू पीसकर आटा निकाला जाता है। अंग्रेजों के जमाने की ये पनचक्की आज भी चालू है। पानी से चलने वाली इस पनचक्की पर पिसा आटा आसपास के 20 गांव के लोगों को खूब भाता है। ग्रामीणों का कहना है कि वो इस पनचक्की के अलावा और कहीं भी दूसरी जगह अपना गेंहू पिसवाने के लिए नहीं लेकर जाते। इसी पनचक्की में गेंहू की पिसाई कर आटा निकाला जाता है।  

कोई नहीं है मालिक स्वयं करनी होती है अपने गेंहू की पिसाई 
165 साल पुरानी इस पनचक्की का आज तक कोई मालिक नहीं है। इस पनचक्की पर गेंहू पिसाई का काम खुद ही करना होता है। इस पनचक्की का कोई मालिक नहीं है। इसको नगर पंचायत द्वारा ठेके पर दिया जाता है। ठेकेदार 80 पैसे प्रति किलो की दर से गेंहू की पिसाई लेता है। ग्रामीण जयवीर सिंह कहते हैं कि आसपास के करीब 20 गांव के लोग इस पनचक्की पर आटा पिसने के लिए आते हैं। इस पनचक्की पर अपना गेंहू खुद ही पीसना होता है। पनचक्की पर गेंहू की पिसाई के लिए ग्रामीणों को नंबर लगाना होता है। चूंकि इस पनचक्की का कोई मालिक नहीं है इसलिए ग्रामीणों को आटा पिसाई का काम खुद ही करना होता है। पनचक्की पर ठेकेदार सिर्फ उसकी देखरेख के लिए ही होता है। 

24 घंटे चलती है पनचक्की 
ग्रामीणों का कहना है कि ये पनचक्की 24 घंटे चलती है। किसी भी समय ग्रामीण आकर इस पर अपना गेंहू पीस सकते हैं। बताया जाता है कि 1877 में बनी इस पनचक्की को अंग्रेजों ने गंगनहर के किनारे बनवाया था।  आजादी से पहले इस पनचक्की पर पिसा आटा मेरठ छावनी में रहने वाले गोरी पल्टन और मुजफ्फरनगर में अंग्रेजी अफसरों के खाने के लिए सप्लाई किया जाता है। लेकिन जब देश आजाद हुआ तो आसपास के गांव के लोग गेंहू की पिसाई करने लगे। 90 के दशक में इस पनचक्की को बंद करने की तैयारी प्रशासन की ओर से की गई तो ग्रामीणों ने इसका विरोध किया। जिसके बाद इसको नगर पंचायत के हवाले कर दिया। उसके बाद से इसका प्रतिवर्ष ठेका छूटने लगा। ठेकेदार द्वारा पनचक्की की देखरेख का ठेका लिया जाता है। जबकि गेंहू की पिसाई का काम ग्रामीणों को खुद ही करना होता है। 

ग्रामीण इसलिए पसंद करते हैं पनचक्की का आटा 
पनचक्की में पिसे आटे की खासियत होती है। पनचक्की नहर के पानी से चलती है और इसका पिसा हुआ आटा ठंडा होने के साथ स्वादिष्ट और सेहत से भरपूर होता है। इसी के साथ चक्की में पिसा आटा छह महीने तक भी खराब नहीं होता है। पनचक्की की विशेषता है कि इसमें जिस पत्थरों से गेंहू की पिसाई की जाती है। वह कुदरती हैं। जबकि आजकल की चक्कियों में मसाले से तैयार पत्थरों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस चक्की के पिसे आटे को खाने से पथरी या अन्य किसी प्रकार का कोई रोग नहीं होता है। पनचक्की में पिसे आटे में गेंहू के सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान होते हैं।

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