काशी की देव दीपावली आज भव्य स्वरूप ले लिया है। काशी के 84 घाट, तालाब, कुंड इत्यादि जगह कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप जलाए जाएंगे। इस बार 21 लाख दीप जले जाएंगे। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल हिस्सा लेंगे। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, सीएम योगी आदित्यनाथ एवं पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह भी शामिल होंगे। जो दीपावली की शुरुआत कब हुई थी और कितनी पुरानी यह परंपरा है इसको जानने के लिए उत्तर प्रदेश टाइम्स की टीम ने श्री देव दीपावली एवं आरती महा समिति के अध्यक्ष आचार्य वागीश दत्त से बातचीत की।
काशी की देव दीपावली : पंचगंगा घाट से हुई थी शुरुआत, आज 21 लाख दीपों से जगमगाएंगे 220 स्थान
Nov 14, 2024 00:28
Nov 14, 2024 00:28
पंचगंगा घाट से हुई थी देव दीपावली की शुरुआत
आचार्य वागीश दत्त ने बताया कि काशी में देव दीपावली की परंपरा पंचगंगा घाट से शुरू हुई थी। मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस के आतंक से परेशान देवताओं ने भगवान शंकर से निवेदन किया था। भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध कर उसे शांत किया, जिसके बाद स्वर्ग लोक में देवी-देवताओं ने दीप जलाकर इस विजय का उत्सव मनाया। इस परंपरा की शुरुआत काशी में पंचगंगा घाट पर महारानी अहिल्याबाई होलकर ने की थी। उन्होंने पंचगंगा घाट पर 'हजारा दीपक' की स्थापना की थी, जो आज भी देव दीपावली की प्राचीनता का प्रतीक है।
21 लाख दीपों से सजेगा काशी का हर कोना
आचार्य वागीश दत्त ने बताया कि इस बार 21 लाख दीप जलाने का लक्ष्य रखा गया है। 220 से अधिक स्थानों पर यह पर्व मनाया जाएगा, जिसमें 56 गंगा घाट, 100 से अधिक कुंड और कई तालाब शामिल हैं। इस महोत्सव का मुख्य आयोजन नामो घाट पर होगा, जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे। सुरक्षा की दृष्टि से यहां पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन बाकी घाटों पर श्रद्धालु आसानी से देव दीपावली का आनंद ले सकेंगे। गंगा आरती भी इस महोत्सव का एक प्रमुख हिस्सा होगी, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे।
काशी के घाटों पर दीपदान का महत्व
आचार्य वागीश दत्त ने बताया कि काशी के घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का विशेष महत्व है। पंचगंगा घाट से ही दीपदान की शुरुआत होती है, जहां पंचगंगा के देवी-देवताओं की पूजा और दीप अर्चना की जाती है। इसके बाद घाटों पर एक निश्चित समय पर दीपदान किया जाता है। घाटों की श्रृंखला आदि केशव घाट से लेकर विश्वसुंदरी पुल तक फैली हुई है, और एक ही समय पर सभी घाटों पर दीप जलाने की परंपरा निभाई जाती है।
अहिल्याबाई होलकर की प्रेरणा और वर्तमान संस्करण की शुरुआत
आचार्य वागीश दत्त ने बताया कि 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होलकर ने काशी के घाटों के निर्माण और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके समय में जो पक्के घाट नहीं थे, आज वही घाट भव्य रूप से सजते हैं। आधुनिक देव दीपावली का संस्करण काशी के महाराज विभूति नारायण सिंह की प्रेरणा से 1983 में शुरू हुआ। 1990 में दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की शुरुआत के बाद देव दीपावली को और व्यापकता मिली।
कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व
आचार्य दत्त ने बताया कि कार्तिक माह में दीपदान का विशेष महत्व होता है। इस महीने में पूर्णिमा के दिन महा दीपदान का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में पूरे महीने दीप जलाए जाते हैं, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसका समापन होता है। इस दिन सुबह स्नान और शाम को दीपदान करने से लक्ष्मी, आरोग्य और सुख की प्राप्ति होती है।
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