नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के रूप देवी कुष्मांडा के पूजन का विधान है। भक्तों के दर्शन के भोर तीन बजे मंगला आरती के मां के पट खोल दिए गए। मां के दर्शन के लिए भोर से ही लंबी भक्तों की लंबी कतार लगी हुई है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ब्रह्मांड की रचना की थी।
नवरात्र का चौथा दिन : भोर में तीन बजे मंगला आरती के बाद मां के पट भक्तों के लिए खोले, लगीं लंबी कतारें
Oct 07, 2024 01:14
Oct 07, 2024 01:14
सूर्य लोक में माना जाता है देवी का वास
कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं और वे अष्टभुजा कहलाती हैं। उनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं, जबकि आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप माला है। देवी का वाहन सिंह है, और उन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय मानी जाती है। संस्कृत में कुम्हड़े को 'कुष्मांड' कहा जाता है, जिससे देवी का नाम कुष्मांडा पड़ा है। देवी का वास सूर्य लोक में माना जाता है और केवल उन्हीं में सूर्य के समान तेज को धारण करने की शक्ति है। देवी की इस शक्ति से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं और ब्रह्मांड की समस्त वस्तुएं और जीव उन्हीं की ऊर्जा से अस्तित्व में आते हैं।
देवी कुष्मांडा की पूजा से भक्तों के सभी दुख, रोग और शोक का होता है नाश
दुर्गाकुंड मंदिर की मान्यता है कि काशी के राजा सुदर्शन को देवी ने दर्शन दिए थे और उनके लिए युद्ध भी लड़ा था। इसके बाद मां उसी स्थान पर विराजमान हो गईं। देवी कुष्मांडा की पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी दुख, रोग और शोक का नाश होता है। पूजा करने वाले को आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह भी माना जाता है कि देवी अत्यल्प भक्ति से भी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को देवी की कृपा शीघ्र ही प्राप्त होती है। भक्तों को इस दिन विधि-विधान से देवी की पूजा करनी चाहिए ताकि उन्हें सुख-समृद्धि और उन्नति प्राप्त हो।
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