नेताजी सुभाष चंद्र बोस का बनारस से गहरा संबंध रहा है। चौखंभा मोहल्ले की बंगाली ड्योढ़ी नेताजी का मुख्य ठिकाना थी, जहां वे अक्सर आकर ठहरते थे। इस मकान का एक बड़ा हिस्सा बिक चुका है
बनारस में रहती थीं सुभाष चंद्र बोस की मौसी : नेताजी ने यहां बिताया लंबा समय, जानिए अब किस हाल में है वह मकान
Aug 18, 2024 18:33
Aug 18, 2024 18:33
- बनारस में रहती थीं सुभाष चंद्र बोस की मौसी
- पहली बार पिता के साथ आए थे नेताजी
- वाराणसी में बना है नेताजी का मंदिर
गोपनीय तौर पर बनारस आए नेताजी
नेताजी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार काशी का दौरा किया, लेकिन यह अक्सर गोपनीय रूप से होता था। एक बार जब वे काशी में टाउनहॉल में एक सभा को संबोधित करने के लिए पहुंचे, तो रात का समय हो चुका था और अधिकांश लोग चले गए थे। फिर भी, नेताजी के आगमन की सूचना फैलते ही, हजारों लोग रात के समय टाउनहॉल मैदान पर पहुंच गए थे।
पहली बार पिता के साथ आए थे नेताजी
काशी के क्रांतिकारी इतिहास पर शोध कर रहे नित्यानंद राय के अनुसार, नेताजी ने चौखंभा स्थित अपने मौसी के मकान में कई बार ठहरने की कोशिश की। पहली बार वे अपने पिता के साथ आए थे। चौखंभा स्थित मकान का नंबर सी 4/22 है और यह किलेनुमा था, जिससे नेताजी को गुप्त रूप से ठहरने की सुविधा मिलती थी। इस मकान की विशालता और किलेनुमा बनावट नेताजी को इतनी पसंद आई कि वे अक्सर यहाँ ठहरते थे।
साधु बनने की इच्छा लेकर बनारस पहुंचे
नेताजी के रिश्तेदार वीरभद्र मित्रा ने बताया कि नेताजी ने अपने जीवन के विभिन्न समय में काशी का दौरा किया। उन्होंने एक बार साधु बनने की इच्छा से घर छोड़ा और हरिद्वार, ऋषिकेश, अल्मोड़ा होते हुए बनारस पहुंचे। उनके मौसा उपेंद्र नाथ बसु और मौसेरे भाई शरद कुमार बसु भी काशी के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। 1939 में कांग्रेस छोड़ने के बाद, नेताजी ने पूरे देश में 11 महीने में 900 सभाएं कीं, जिसमें काशी भी शामिल था। बीएचयू में सभा के दौरान उनके आगमन की यादें अब भी जीवित हैं और भारत कला भवन में नेताजी से जुड़ी कई महत्वपूर्ण यादें संग्रहित हैं।
वाराणसी में बना है नेताजी का मंदिर
वाराणसी के लमही गांव में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर स्थित है। यह देश का पहला मंदिर है जहां राष्ट्रभक्ति की भावना के साथ नेताजी की प्रतिमा स्थापित की गई है। यहां नेताजी को राष्ट्रदेवता के रूप में पूजा जाता है और हर दिन भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। मंदिर की पुजारी एक 14 वर्षीय दलित लड़की है, व्यवस्थापक एक मुस्लिम हैं, और मंदिर का निर्माण एक हिंदू ने कराया है। इस विविधता के कारण मंदिर में सभी जातियों और धर्मों के लोग आकर पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को भगवान के रूप में पूजा जाता है। यहां सुबह और शाम आरती की जाती है, और विशेष भोग अर्पित किया जाता है। पारंपरिक घंटियों की जगह पर ड्रम और पाइप बजाए जाते हैं, और भक्त ताली बजाकर आरती में शामिल होते हैं।
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