अयोध्या में श्री रामलला की प्राणप्रतिष्ठा का अनुष्ठान शुरू हो चुका है। पूरे देश में जश्न का माहौल है। कहीं पूजा की जा रही है तो कहीं भजन सुने जा रहे हैं। ऐसे में आपको ये जानकर थोड़ी हैरानी ज़रूर होगी कि सुलहकुल की नगरी आगरा में एक मंदिर के पुजारी उर्दू में श्रीरामचरितमानस का पाठ करते हैं।
Agra: ऐसी जगह जहां पुजारी करते हैं उर्दू में श्रीरामचरितमानस का पाठ, मुस्लिम भी आते थे पाठ सुनने
Jan 21, 2024 08:00
Jan 21, 2024 08:00
- भगवान श्रीराम भाषाओं की सीमाओं से परे हैं
- मंदिर की लाइब्रेरी में उर्दू में लिखित श्रीमद्भागवत गीता , श्रीरामचरित मानस है मौजूद
- मुस्लिम भी आते थे उर्दू में पाठ सुनने
भगवान श्रीराम भाषाओं की सीमाओं से परे हैं
मंदिर के पुजारी का कहना है कि भगवान श्रीराम भाषाओं की सीमाओं से परे हैं। सदर में शहजादी मंडी स्थित सनातन धर्म मंदिर सभा की लाइब्रेरी और इसके प्रधान बैजनाथ शर्मा उर्दू में ही रामचरितमानस और गीता का पाठ कर अमन का पैगाम दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर की लाइब्रेरी में जहां आज संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी के साथ-साथ उर्दू की भी बहुत सी किताबें हैं। जो मंदिर की लाइब्रेरी से इसके मादरी ज़बान होने का पैगाम देती हैं।
मंदिर की लाइब्रेरी में उर्दू में लिखित श्रीमद्भागवत गीता , श्रीरामचरित मानस है मौजूद
बैजनाथ शर्मा ने बताया कि उन्हें उर्दू से लगाव है, वे उर्दू की किताबों को दिल से लगाते हैं। सनातन धर्म मंदिर का प्रबंधन इसके लिए बखूबी काम कर रहा है। मंदिर की लाइब्रेरी में आठ हज़ार से ज़्यादा किताबें हैं, जिनमें ढेरों उर्दू की किताबें भी अपना अलग ही महत्व रखती हैं। यहं पर उर्दू में लिखित श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरित मानस है। रिसर्च करने वाले स्कॉलर भी यहां आते हैं।
मुस्लिम भी आते थे उर्दू में पाठ सुनने
करीब 100 बसंत देख चुके बैजनाथ शर्मा ने बताया कि अब वह तेज़ बोलने की स्थिति में नहीं हैं, कुछ समय पहले तक मुस्लिम समाज के लोग यहां उर्दू में श्रीरामचरितमानस का पाठ सुनने के लिए आया करते थे। वह भी नित्य ही पाठ किया करते थे पर अब यह नियमित नहीं रहा। उन्होंने बताया कि श्रीरामचरितमानस का यह उर्दू में अनुवाद मुंशी स्वामी दयाल द्वारा किया गया है। यह किताब 1901 में प्रकाशित हुई थी।
अमृतसर में पैदा हुए बैजनाथ शर्मा कहते हैं कि कभी उर्दू ही देश की प्रमुख भाषा हुआ करती थी। मेरे घर में भी उर्दू का माहौल था। मैंने उर्दू में बहुत सी गजलें लिखीं हैं। आल इंडिया रेडियो पर कई मकाले यानी पेपर प्रसारित हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि उर्दू किसी जाति, धर्म या समुदाय की नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान की अपनी ज़बान है।
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