नाबालिग को दीक्षा देने पर हुए निष्कासित : पिता की मौत पर भी नहीं आए घर, जानिए कौन हैं महंत कौशल गिरि

पिता की मौत पर भी नहीं आए घर, जानिए कौन हैं महंत कौशल गिरि
UPT | महंत कौशल गिरि

Jan 12, 2025 19:09

इस लड़की को 13 वर्ष की आयु में साध्वी के रूप में दीक्षा दी गई और उसे दान के रूप में अखाड़े को सौंपा गया। इस मामले में जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण रही, लेकिन अब उन्हें सात साल के लिए अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है...

Jan 12, 2025 19:09

Agra News :  आगरा जिले के टरकपुरा गांव में हाल ही में एक विवाद ने जन्म लिया है, जब जूना अखाड़े ने एक नाबालिग लड़की को साध्वी बना दिया। इस लड़की को 13 वर्ष की आयु में साध्वी के रूप में दीक्षा दी गई और उसे दान के रूप में अखाड़े को सौंपा गया। इस मामले में जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण रही, लेकिन अब उन्हें सात साल के लिए अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि कौशल गिरि कौन हैं और उनका पारिवारिक और सामाजिक जीवन कैसा था।

करोंधना के 'लटूरी' से बने महंत कौशल गिरि
कौशल गिरि का पैतृक गांव करोंधना था और उनका जन्म लटूरी नामक गांव में हुआ था। ग्रामीणों के अनुसार, महंत कौशल गिरि की उम्र लगभग 38 साल बताई जा रही है। उनके पिता का नाम बंगाली रघुवंशी और मां का नाम आशा देवी था, लेकिन दोनों का निधन हो चुका है। कौशल गिरि का धार्मिक जीवन बचपन से ही शुरू हो गया था। वे छह साल की उम्र से पूजा पाठ में लीन थे और गांव के मंदिर में अपने गुरु नरसिंह गिरी के साथ पूजा करते थे। इसके बाद उन्होंने घर और परिवार को छोड़कर एक धार्मिक जीवन अपनाया।



पिता की मौत के बाद भी नहीं आए घर
कौशल गिरि के भाई बंटी के अनुसार, वह अपने पिता की मृत्यु के बाद भी घर नहीं आए और न ही कभी परिवार के साथ कोई संबंध रखा। बंटी ने बताया कि वह और उनके दो अन्य भाई, सुखबीर और भीम सिंह, मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं। यह भी जानकारी मिली कि कौशल गिरि जून 2024 में अपने गांव आए थे और मंदिर में एक रात ठहरे थे। हालांकि, गांव के लोग और रिश्तेदार उन्हें कभी ज्यादा नहीं देख पाते थे और वह अक्सर गांव छोड़कर चले जाते थे।

गांव आए लेकिन अपनों से नहीं की मुलाकात
रिश्तेदारों का कहना है कि महंत कौशल गिरि का गांव से कोई गहरा संबंध नहीं था। उनके चाचा रमेश सिंह ने बताया कि वह कभी-कभी ही गांव आते थे और फिर मंदिर में ठहरकर चले जाते थे। गांव के लोग उन्हें एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में जानते थे, लेकिन उनका गांव और परिवार से कोई खास जुड़ाव नहीं था। इसके अलावा, महंत कौशल गिरि ने कई बार गांव के मंदिर पर पूजा की थी, लेकिन उनका रुकने का समय बहुत सीमित था। 

सात दिन तक खड़े होकर की थी पूजा
ग्रामीणों के अनुसार, कौशल गिरि ने एक बार भागवत कथा के दौरान सात दिन तक खड़े होकर पूजा की थी, जो उनके भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। हालांकि, परिवार और गांववालों को अब तक यह भी नहीं पता चल पाया है कि महंत कौशल गिरि अब कहां रहते हैं और उनका आश्रम कहां स्थित है। उनकी गुमशुदगी ने कई सवाल खड़े किए हैं।

जानें पूरा मामला
गौरतलब है कि कुछ समय पहले अखाड़े में शामिल हुई 13 वर्षीय साध्वी गौरी गिरि और उनके गुरु कौशल गिरि को अखाड़े से बाहर कर दिया गया है। नाबालिग साध्वी को नियमों का उल्लंघन करते हुए शामिल करने का मामला सामने आने के बाद आमसभा की बैठक में यह निर्णय लिया गया। लड़की को तुरंत माता-पिता के सुपुर्द कर गुरु को मेला क्षेत्र छोड़ने का आदेश दिया गया है। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि अब 22 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को संन्यास दीक्षा नहीं दी जाएगी। जूना अखाड़े के संत कौशल गिरि ने हाल ही में आगरा के व्यापारी संदीप सिंह और उनकी पत्नी रीमा की उपस्थिति में उनकी बेटी राखी सिंह धाकरे को साध्वी के रूप में दीक्षा दी थी। उन्होंने राखी का नाम बदलकर गौरी गिरि रखा। 
 
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