भाजपा नेत्री रूबी आसिफ खान के बयान ने सियासी हलचल पैदा कर दी है। उन्होंने शाही ईदगाह मस्जिद को श्री कृष्ण जन्मभूमि के पक्ष में मुसलमानों द्वारा खुशी-खुशी हिंदुओं को सौंपने की बात कही है।
Mathura News : भाजपा नेत्री रूबी आसिफ खान ने श्री कृष्ण जन्मभूमि पर दिया बयान, सियासी गलियारों में मची हलचल
Aug 12, 2024 17:49
Aug 12, 2024 17:49
रूबी आसिफ खान के बयान का परिणाम
रूबी आसिफ खान ने अपने बयान में कहा कि शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि के पक्षकारों को सौंप दी जानी चाहिए। उन्होंने इसे "मुगलों की गलती" के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि अब मुसलमानों को इस गलती का प्रायश्चित करते हुए मस्जिद को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। रूबी ने मथुरा में जाकर शाही ईदगाह का निरीक्षण किया और दावा किया कि मस्जिद की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। उनका कहना है कि यह ऐतिहासिक धरोहर हिंदू समुदाय को लौटाने से एक नई शुरुआत हो सकती है।
रूबी आसिफ खान का विवादास्पद इतिहास
रूबी आसिफ खान का नाम पहले भी कई बार सुर्खियों में आ चुका है, खासकर उनके हिंदू रीति-रिवाजों के पालन और मुस्लिम विरोधी बयानों के चलते। वह नियमित रूप से नवरात्रि के व्रत रखती हैं और अपने घर में मूर्तियों की स्थापना करती हैं। उनके इस हिंदू रीति-रिवाजों के पालन के कारण उन्हें पहले भी जान से मारने की धमकियां मिली थीं, जिसके बाद उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई थी। रूबी द्वारा गणेश चतुर्थी के दौरान अपने घर में गणेश की मूर्ति स्थापित करने के बाद भी काफी विवाद हुआ था।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया
रूबी आसिफ खान के हालिया बयान ने मुस्लिम समुदाय में आक्रोश पैदा कर दिया है। उनके इस बयान को कई मुस्लिम नेताओं और संगठनों ने उनकी सनातन मुस्लिम मंच में हालिया नियुक्ति से जोड़ते हुए खारिज किया है। उनका मानना है कि रूबी का यह कदम एक सियासी चाल हो सकता है, जो कि समुदाय में विभाजन और असंतोष को बढ़ावा दे सकता है। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का यह भी कहना है कि रूबी आसिफ खान का यह बयान कोर्ट में चल रहे लंबित मामलों को प्रभावित करने के लिए दिया गया है।
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राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
रूबी आसिफ खान के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में भी इसे लेकर चर्चा तेज हो गई है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनका यह बयान आने वाले चुनावों के मद्देनज़र एक सुनियोजित रणनीति हो सकता है, जिसका उद्देश्य हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करना हो सकता है। वहीं, कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे धार्मिक सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिए खतरा बताया है।
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