श्रीकृष्ण की दिव्य लीला का प्रतीक माने जाने वाले महारास का आयोजन मंगलवार को मढ़ोई के प्राचीन रास चबूतरे पर हुआ। ऐतिहासिक रूप से भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन के चन्द्र सरोवर पर पूर्णिमा की रात को सखियों के साथ महारास रचाया था।
महारास लीला : मढ़ोई के प्राचीन चबूतरे पर अद्भुत आयोजन को देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आए, एक झलक पाने को बेताब दिखे
Sep 17, 2024 22:42
Sep 17, 2024 22:42
इस वर्ष बरसाना के समीप स्थित मढ़ोई गांव में मंगलवार को राधा-कृष्ण के दिव्य स्वरूपों ने सवा पांच किलो वजनी सोने का प्राचीन स्वर्ण मुकुट धारण कर महारास लीला का मंचन किया। इस अद्भुत आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आए और एक झलक पाने के लिए बेताब नजर आए।
प्राचीन स्वर्ण मुकुट की ऐतिहासिक धरोहर
यह प्राचीन स्वर्ण मुकुट, जो राधा-कृष्ण के सिर की शोभा बढ़ाता है, लगभग 150 वर्ष पुराना है। इसे दतिया के राजा ने कृष्ण स्वरूप बालक से प्रभावित होकर रास मंडली को भेंट किया था। इस स्वर्ण मुकुट का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे साल में सिर्फ एक बार, पूर्णिमा के दिन ही महारास लीला के लिए निकाला जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आज भी रासाचार्य गोवर्धन एवं राधाकिशन के वंशज इस मुकुट की देखभाल करते हैं।
श्रद्धालुओं में उत्साह
महारास लीला के आयोजन के दौरान गांव और आस-पास के क्षेत्र में उल्लास और भक्ति का माहौल देखने को मिला। श्रद्धालुओं के बीच इस आयोजन को लेकर विशेष आकर्षण था, विशेषकर जब राधा-कृष्ण ने सोने का मुकुट धारण कर लीला का मंचन किया। रास लीला के मंचन ने सभी को भक्ति और आनंद के सागर में डुबो दिया।
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