भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा यूं ही तीन लोक से न्यारी नहीं है। बृजवासियों के रग-रग में बसे श्रीकृष्ण भगवान भी ज्यादा समय तक यहां नहीं रह पाए। उन्हें भी यहां से जाकर अपनी अलग द्वारका बसानी पड़ी थी। इसलिए हर कोई बृजवासियों को...
मथुरा की मनमौजी जनता : चुनावों में राजघरानों को चखाया है हार-जीत का मजा, भगवान श्रीकृष्ण को भी बसानी पड़ी थी द्वारका
Apr 03, 2024 09:02
Apr 03, 2024 09:02
- मथुरा लोकसभा सीट का रोचक रहा है राजनीतिक इतिहास
- यहां राजघराने आजमाते रहे हैं अपनी किस्मत, जनता भेजती रही है संसद
अपना भाग्य आजमाते रहे हैं राजघराने
ब्रजभूमि ने राजाओं को सर माथे पर बैठाया तो वहीं चुनाव में उन्हें पटखनी देने से भी बाज नहीं आए। राजवंश से ताल्लुक रखने वाले तमाम राजनेताओं ने यहां अपना भाग्य आजमाया है। इनमें से तीन राजवंशी ही राजपाट पाने में सफल हुए। जबकि मथुरा में पांच राजवंशी सफल ही नहीं हो पाए। स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव से ही यहां पर राजघरानों ने अपना भाग्य आजमाना शुरू कर दिया था। पहले चुनाव के दौरान जनपद हाथरस के मुरसान राजघराने के राजा महेंद्र प्रताप ने 1951 में यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वो हार गए। दूसरी बार 1957 में एक बार फिर चुनावी मैदान में भाग्य आजमाने के लिए कूद पड़े। इस बार बृजवासियों ने उन पर भरोसा जताया और जीत का ताज राजा साहब के सिर सज गया। इस चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप ने कांग्रेस के चौधरी दिग़म्बर सिंह को हराया था।
लंबा है हारजीत का सिलसिला
वहीं 1962 में हुए तीसरे चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप हार गए और चौधरी दिगंबर सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद 1969 के उपचुनाव के दौरान मथुरा में भरतपुर की रियासत से ताल्लुख रखने वाले राजा बच्चू सिंह चुनावी मैदान में उतरे। उन्हें दिगंबर सिंह ने हरा दिया। 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस की सहानभूति के कारण मथुरा से कांग्रेस की टिकट पर अवागढ़ राजघराने से संबंध रखने बाले कुंवर मानवेन्द्र सिंह चुनाव लड़े और जीते। दूसरी बार फिर 1989 के आम चुनाव में कुंवर मानवेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे। जिन्होंने राजघराने से ताल्लुक रखने वाले पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह को पराजित किया था। 1991 में हुए चुनाव के दौरान भरतपुर के राजा विश्वेन्द्र सिंह को भाजपा के सच्चिदानंद साक्षी ने करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था।
बदलते गए सरताज
मथुरा में हुए 1998 के चुनाव में कुंवर मानवेन्द्र सिंह ने तीसरी बार भाग्य आजमाया, लेकिन भाजपा के तेजवीर सिंह ने उन्हें हरा दिया। वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मानवेन्द्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस के ही टिकट पर पांचवी बार मथुरा से चुनाव लड़ा, लेकिन रालोद और भाजपा के गठबंधन प्रत्याशी रहे जयंत चौधरी ने उन्हें हरा दिया। 16 वीं लोकसभा के आम चुनाव में रालोद का गठबंधन कांग्रेस से हुआ, लेकिन भाजपा से चुनाव मैदान में उतरी हेमा मालिनी ने उन्हें करारी हार दी। हेमा मालिनी यहां से रिकॉर्ड मतों से जीत कर संसद पहुंची, जो कि आजतक इस सीट पर बरक़रार हैं।
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