AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार : कोर्ट के फैसले पर नेताओं की प्रतिक्रियाएं, जानें किसने क्या कहा...

कोर्ट के फैसले पर नेताओं की प्रतिक्रियाएं, जानें किसने क्या कहा...
UPT | AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार

Nov 08, 2024 18:02

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के संबंध में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं...

Nov 08, 2024 18:02

Aligarh News : सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के संबंध में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले में अदालत ने अपने पहले के 1967 के निर्णय को पलटते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है। हालांकि, इस मामले में तीन जजों की एक समिति गठित की जाएगी, जो तय करेगी कि विश्वविद्यालय को यह दर्जा किस आधार पर दिया जाए और इसके मानदंड क्या होंगे। एएमयू का इतिहास लगभग 150 वर्षों पुराना है और यह देश की प्रमुख शैक्षिक संस्थाओं में से एक मानी जाती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं, आइये जानते हैं किसने क्या कहा है।

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ओवैसी ने कोर्ट के फैसले का किया स्वागत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि 'यह देश के मुसलमानों के लिए एक बेहद अहम दिन है साल 1967 के फैसले ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया था, जबकि हकीकत में यह अल्पसंख्यक था। संविधान के अनुच्छेद 30 में भी कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थानों को उस तरीके से स्थापित करने तथा संचालित करने का अधिकार है, जैसा वे उचित समझे।' उन्होंने आगे लिखा कि अल्पसंख्यकों के स्वयं को शिक्षित करने के अधिकार को बरकरार रखा गया है। मैं आज AMU के सभी छात्रों और शिक्षकों को बधाई देता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि विश्वविद्यालय संविधान से पहले स्थापित हुआ था या सरकार के कानून द्वारा स्थापित किया गया था। यह अल्पसंख्यक संस्थान है यदि इसे अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किया गया है। भाजपा के सभी तर्क खारिज हो गए।
 
सांसद नदवी ने बताया विश्वास बढ़ाने वाला फैसला
रामपुर से समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने मीडिया से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सभी वर्गों के बच्चे पढ़ते हैं, चाहे वह हिंदू हों या मुस्लिम। उन्होंने इस फैसले को संविधान में लोगों का विश्वास बढ़ाने वाला बताया। नदवी ने कहा कि यह मामला अभी भी विचाराधीन है, लेकिन कोर्ट ने जिस दिशा में फैसला लिया है, वह सही है। उनका कहना था कि विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बनता था, हालांकि यह कहीं भी नहीं कहा गया कि यह दर्जा केवल एक विशेष वर्ग के लिए है। सभी धर्मों और समुदायों के बच्चे एएमयू में पढ़ाई करते हैं, और इस फैसले से संविधान और न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास और भी मजबूत होगा।

कांग्रेस नेता ने बताया सही कदम
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक सही दिशा में लिया गया कदम है। उन्होंने आगे कहा कि पार्टी हमेशा सभी समुदायों को एक साथ लाने और उन्हें समान अधिकार देने का काम करती है। तिवारी ने भाजपा की आलोचना करते हुए कहा कि भाजपा की ओर से हमेशा "कटने और मरने" की बातें की जाती हैं, जबकि कांग्रेस ने हमेशा एकता और समानता की नीति को बढ़ावा दिया है।

सपा प्रवक्ता ने बताया संविधान की जीत
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता अमीक जामेई ने सुप्रीम कोर्ट के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह निर्णय संविधान की जीत है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके तहत अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार है। अमीक जामेई ने कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देना इस बात की पुष्टि है कि संविधान ने अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया है।

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1967 में शुरू हुआ विवाद
1920 के AMU अधिनियम में दो संशोधन किए गए। पहला 1951 में और दूसरा 1965 में। तब यहां कई सारे परिवर्तन भी हुए। इसके तहत ही विश्वविद्यालय के प्रबंधन में गैर मुसलमानों को भी भाग लेने की अनुमित मिल गई। इसके अलावा, इन संशोधनों ने विश्वविद्यालय प्रबंध समिति के अधिकारों को कम कर दिया जबकि कार्यकारी परिषद की शक्तियों को बढ़ा दिया। बस यहीं से विवाद शुरू हो गया। दलील दी गई कि मुसलमानों ने एएमयू की स्थापना की, इसलिए उनके पास इसका प्रबंध संभालने का अधिकार होना चाहिए। 1967 में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एएमयू को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य केवल मुस्लिम समुदाय के छात्रों के हितों की रक्षा करना नहीं था। कोर्ट ने कहा कि एएमयू की स्थापना भारतीय सरकार द्वारा किए गए एक कानूनी प्रयास का परिणाम थी। अदालत का यह निर्णय महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र को लेकर कई कानूनी और राजनीतिक विवादों की शुरुआत हुई। इसके बाद, सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन किया, जिसने विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को फिर से मान्यता दी।

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1981 में फिर मिला अल्पसंख्यक दर्जा
1981 में किए गए संशोधन ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को पुनः स्थापित किया, जिससे विश्वविद्यालय को मुसलमानों के लिए विशेष संस्थान के रूप में माना गया। हालांकि, 2005 में जब एएमयू ने चिकित्सा पाठ्यक्रमों की 50 फीसदी सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कीं, तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। हाईकोर्ट का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले पर आधारित था, जिसमें यह कहा गया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। इसके बाद, 2006 में केंद्र सरकार और अन्य पक्षों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन जिस केंद्र सरकार ने 2006 में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, 10 साल बाद उसका पक्ष बदल गया। सत्ता में दूसरी पार्टी आ चुकी थी और 2016 में केंद्र सरकार ने यू-टर्न लेते हुए अपील वापस ले ली। तब केंद्र ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है।

आज आया है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
2019 में मामले की सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने केस को 7 जजों की बेंच को भेज दिया। सवाल था कि क्या एक कानूनी रूप से विनियमित संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में माना जा सकता है। इसी मामले में आज अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि कानून के माध्यम से विनियमित होने से किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त नहीं होता और संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदाय को अपने शैक्षिक संस्थानों का प्रबंधन करने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक संस्थान को केवल धार्मिक पाठ्यक्रम देने की आवश्यकता नहीं है, और इसके प्रशासन में विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश देने की अनुमति हो सकती है।

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