खतरे में 'गरीबों का सेब' अमरूद : विदेशी प्रजातियों से फैला निमेटोड संक्रमण बना बड़ी चुनौती, जरूरी कदम उठाने की मांग

UPT | खतरे में 'गरीबों का सेब' अमरूद

Sep 15, 2024 20:18

अमरूद, जिसे गरीबों का सेब कहा जाता है, अपने पोषक गुणों और किफायती कीमत के चलते आम लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है। परंतु अब इस फल के अस्तित्व पर बड़ा संकट मंडरा रहा है।

Lucknow News : अमरूद, जिसे गरीबों का सेब कहा जाता है, अपने पोषक गुणों और किफायती कीमत के चलते आम लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है। परंतु अब इस फल के अस्तित्व पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। विदेशी प्रजातियों, जैसे कि थाई पिंक और ताइवान पिंक के आगमन से निमेटोड नामक संक्रमण तेजी से फैल रहा है, जो अमरूद के बागानों को प्रभावित कर रहा है। पिछले एक दशक में यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि देशभर में अमरूद के लगभग आधे बागान इस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं।

सरकार को दी गई है जानकारी, जल्द हो सकता है एक्शन
निमेटोड संक्रमण के कारण अमरूद की फसल पर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) ने इस मुद्दे पर ध्यान आकृष्ट करते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को मुख्य सचिव के माध्यम से इसकी सूचना दी है। उम्मीद है कि सरकार जल्द ही बागवानों के हित में ठोस कदम उठाएगी ताकि निमेटोड संक्रमण से अमरूद के बागानों को बचाया जा सके।

अमरूद के लिए गंभीर संकट है निमेटोड: विशेषज्ञ
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन का कहना है कि निमेटोड संक्रमण अमरूद की फसल के लिए एक बड़ा खतरा है। पिछले पांच वर्षों में किए गए सर्वेक्षण में भी इस बात का उल्लेख है कि निमेटोड का संक्रमण तेजी से फैल रहा है और अमरूद की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। इस संक्रमण के कारण फसल का उत्पादन कम हो रहा है और बागवानों को इसके प्रबंधन के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा है।

संक्रमण का प्रबंधन: कठिन और महंगा
निमेटोड संक्रमण को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है। इसका प्रबंधन केवल सीमित अवधि तक किया जा सकता है और वह भी महंगा साबित होता है। फ्लोपायरम जैसे रसायन का उपयोग इस संक्रमण के नियंत्रण में प्रभावी पाया गया है, लेकिन इसका प्रभाव केवल छह महीने तक ही रहता है। साथ ही, यह महंगा भी है। इसलिए, इस संक्रमण का दीर्घकालिक समाधान खोजना आवश्यक है।

स्वदेशी प्रजातियां हैं ज्यादा सहिष्णु
अमरूद की विदेशी प्रजातियों की तुलना में पारंपरिक किस्में, जैसे इलाहाबाद सफेदा, धवल, ललित और श्वेता निमेटोड के प्रति अधिक सहिष्णु मानी जाती हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. पीके शुक्ल के अनुसार, इन स्वदेशी प्रजातियों में निमेटोड संक्रमण का प्रभाव कम देखा गया है। इसलिए, किसानों और बागवानों को इन किस्मों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

अवैध पौध बिक्री पर सख्ती की जरूरत
अमरूद की स्वदेशी प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन्हें केवल उन नर्सरियों से खरीदा जाए जिन्होंने स्रोत संस्थान से प्रौद्योगिकी प्राप्त की है। अवैध रूप से पौधों की बिक्री करने वालों पर सख्ती से कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि निमेटोड संक्रमण का प्रसार रोका जा सके।

अमरूद की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषताएं
  • ललित : इस किस्म के फल गुलाबी गूदे और आकर्षक लाल आभायुक्त होते हैं। यह किस्म इलाहाबाद सफेदा की तुलना में 24% अधिक उपज देती है।
  • श्वेता : यह किस्म एप्पल कलर से चयनित है और 90 किग्रा प्रति पेड़ उपज देती है। इसके फलों का औसत आकार 225 ग्राम होता है।
  • धवल : यह किस्म इलाहाबाद सफेदा से 20% अधिक उपज देती है। इसके फल गोल और चिकने होते हैं।
  • लालिमा : इस किस्म के फलों का रंग लाल होता है और प्रति फल औसत वजन 190 ग्राम होता है।

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