Lakhimpur Kheri
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Lakhimpur Kheri Tourist Place: लखीमपुर खीरी में बसती है छोटी काशी, यहां शिवलिंग कई बार बदलता है रंग

Uttarpradesh Times | Lakhimpur Kheri Tourist Place

Dec 20, 2023 18:27

लखीमपुर खीरी अपने इतिहास के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी काफी मशहूर हैं। यहां पर कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं। यहां के घने जंगल, मंदिर के साथ यहां की लोक परंपराएं इस जिले को खास पहचान देती हैं।

Lakhimpur Kheri Tourist Place: लखीमपुर खीरी अपने इतिहास के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी काफी मशहूर हैं। यहां पर कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं। यहां के घने जंगल, मंदिर के साथ यहां की लोक परंपराएं इस जिले को खास पहचान देती हैं। इस जगह को महादेव के भक्त छोटी काशी के नाम से भी बुलाते हैं।  

दुधवा नेशनल पार्क

दुधवा के जंगलों को 01 फरवरी 1977 ई. को राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया। कुछ ही सालों बाद किशनपुर वन्य जीव विहार को इसमें शामिल करते हुए इसे बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। यहां बाघ के साथ और भी कई तरह की प्रजातियां रहती हैं। यहां की सुहेली, शारदा और घाघरा आदि नदियों में मगरमच्छ व घडिय़ाल के साथ गैन्गेटिक डाल्फिन भी यहां देखी जा सकती हैं। दुधवा नेशनल पार्क के मैलानी रेंज में पडऩे वाला किशनपुर सेंच्युरी बाघों के दीदार का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। वहीं इसी रेंज में झादीताल में हर दिन सुबह शाम आने वाले हजारों हिरनों के झुंड का नजर आएगा। 

गोला गोकर्णनाथ शिव मन्दिर

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यती है कि भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें एक वरदान दिया था। जिसमें रावण ने भगवान से यह प्रार्थना की वह उनके साथ लंका में जा कर रहें। जिसके बाद भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि वह लंका को छोड़कर अन्य किसी और स्थान पर नहीं रहेंगे। जिसके बाद भगवान शिव और रावण ने लंका के लिए यात्रा आरंभ की। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर रावण के अगूठे का निशान आज भी मौजूद है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में चेती मेले का आयोजन किया जाता है।

लिलौटी नाथ मंदिर

शारदा नगर मार्ग पर स्थित लिलौटी नाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल के दौरान द्रोणाचार्य के पुत्र अश्‍वशथामा ने की थी। कुछ समय के बाद यहां के पुराने राजा मेहवा ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर में स्थित शिवलिंग अत्यंत अद्भुत है। क्योंकि हर दिन यह शिवलिंग कई बार अपने रंग बदलती हैं। इसके अलावा लोगों का यह भी मानना है कि यहा हर रोज अश्‍वशथामा आकर पूजा करते हैं। यहां पर हर साल जुलाई माह की सभी अमावस्या को मेले का आयोजन किया जाता है।

मेंढक मंदिर 

लखीमपुर से 13 किलोमीटर की दूर स्थित मेढक मंदिर का निर्माण 1870 ई. में हुआ था। यह मंदिर भी भगवान शिव को समर्पित है। ओयल व कैमहरा स्टेट के राजाओं ने इसे बनवाया था। इस मंदिर का विशेषता यह है कि यह मंदिर मेंढक के आकार में बना हुआ है। मंदिर के ऊपर लगा हुआ छत्र स्वर्ण से निर्मित है। जिसमें नटराज जी की नृत्य करती मूर्ति चक्र के अंदर मंदिर के शीर्ष पर विद्यमान है। चमत्कृत करते हुए यह सूर्य की दिशा के अनुसार घूमती रहती है। 

देवकली शिव मंदिर

भगवत गीता के अनुसार देवकली शिव मंदिर में राजा परीक्षित ने अपने बेटे के जन्म पर नाग यज्ञ कराया था। जिसमें सभी सांप यज्ञ मंत्र की शक्ति से उस हवन कुंड में कूद गए थे। इस यज्ञ के बाद से आज तक इस क्षेत्र में कोई सांप नहीं पाया गया। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की पवित्र धरती इस जगह पर किसी सांप को यहां आने नहीं देती है। बता दे कि इस मंदिर का नाम भगवान ब्रह्मा की पुत्री देवकली के नाम पर रखा गया है। 
 
 

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