बसपा काल का स्मारक घोटाला फिर से 'सियासी बोतल' से बाहर : ईडी ने की पूर्व खनन निदेशक से 8 घंटे पूछताछ...जानें क्या है पूरा मामला

UPT | MAYAWATI

Oct 19, 2024 16:48

चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। बसपा शासनकाल में हुए स्मारक घोटाले का 'सियासी बोतल में बंद जिन्न' एक बार फिर से बाहर आ गया है। अरबों रुपये के चर्चित घोटाले की फाइल पर जमी धूल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने साफ कर दिया है...

Short Highlights
  • 17 साल पुराने स्मारक घोटले की जांच शुरू
  • विधानसभा उपचुनाव से पहले बढ़ सकती हैं बसपा की मुश्किलें
  • 2014 में आरोपियों के खिलाफ दर्ज हुई थी एफआईआर
Lucknow News : उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के साथ ही महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि चुनाव दर चुनाव विपक्ष के मजबूत होने के साथ ही साथ बसपा सुप्रीमो का झुकाव गैर बीजेपी दलों की तरफ होने की आहट सुनाई देने लगी है। यह भी चर्चा है कि इन चुनावों में बसपा गैर भाजपा दलों की मदद कर सकती हैं। इस बात से उठी सियासी लहरों ने बीजेपी के रणनीतिकारों को चिंता में डाल दिया है। माना जा रहा है कि बसपा की इन्हीं लहरों को शांत करने के लिए 17 साल पुराने स्मारक घोटाले का जिन्न एक बार फिर 'सियासी बोतल' से बाहर आ गया है। 

फिर निकला स्मारक घोटाले का जिन्न
चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। बसपा शासनकाल में हुए स्मारक घोटाले का 'सियासी बोतल में बंद जिन्न' एक बार फिर से बाहर आ गया है। अरबों रुपये के चर्चित घोटाले की फाइल पर जमी धूल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने साफ कर दिया है। इस मामले में तत्कालीन आईएएस अफसर रामबोध मौर्य एक बार ईडी के सामने पेश हो चुके हैं। 



ईडी के सवालों में फंसे पूर्व खनन निदेशक
स्मारक घोटाले में लिप्त होने के आरोप में मायावती के शासनकाल में खनन निदेशक रहे रामबोध मौर्य ईडी के सामने पेश हुए। आठ घंटे की लंबी पूछताछ के दौरान ईडी ने उनसे ठेकेदारों को दिए गए पट्टों और पत्थरों की खरीद-फरोख्त को लेकर गहन सवाल किए। रामबोध मौर्य से पूछा गया कि किन नेताओं और अफसरों के दबाव में उन्होंने मनमाफिक तरीके से पट्टे दिए। हालांकि, कई सवालों पर मौर्य ने चुप्पी साध ली। ईडी ने मौर्य से यह भी जानने की कोशिश की कि स्मारक निर्माण में शामिल ठेकेदारों को ठेके देने में किन-किन नेताओं और अफसरों का दबाव रहा। इसके अलावा, पत्थरों की खरीद-फरोख्त में किन ताकतवर हस्तियों का हस्तक्षेप रहा। आइए जानते हैं कि स्मारक घोटाला क्या है और इसकी शुरुआत कहां और कैसे हुई?

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कहां से हुई मामले की शुरुआत
दरअसल, 2007 से 2011 के बीच लखनऊ और नोएडा में स्मारकों और उद्यानों के निर्माण के लिए सैंडस्टोन की खरीद में अरबों रुपये का घोटाला सामने आया। इस परियोजना में अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतम बुद्ध उपवन, ईको गार्डन और नोएडा का अंबेडकर पार्क शामिल थे। इसके लिए कुल 42 अरब 76 करोड़ 83 लाख 43 हजार रुपये का बजट निर्धारित किया गया था, जिसमें से 41 अरब 48 करोड़ 54 लाख 80 हजार रुपये खर्च किए गए।

2014 में दर्ज हुई एफआईआर
लोकायुक्त की जांच में खुलासा हुआ कि खर्च की गई राशि का लगभग 34 प्रतिशत, यानी 14 अरब 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार 200 रुपये, विभागीय मंत्रियों और अधिकारियों की मिलीभगत के चलते भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त हो गया। लोकायुक्त की रिपोर्ट में इस मामले की एफआईआर दर्ज करने और जांच की सिफारिश की गई थी। स्मारक घोटाले की जांच वास्तव में 2012 में शुरू हुई थी, जब सपा सरकार ने इसे विजिलेंस को सौंपा था। वहीं, 1 जनवरी 2014 को विजिलेंस ने प्रमुख आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन, सीपी सिंह और विभिन्न निर्माण निगम तथा पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का नाम शामिल था। जांच में यह सामने आया था कि प्रमुख सचिव आवास मोहिंदर ने कई मामलों में बिना प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति के सहमति दी थी, जिससे घोटाले का आकार और बढ़ गया। 

ईडी ने नए सिरे से शुरू की जांच
नोएडा प्राधिकरण के फर्जीवाड़े के दौरान रिटायर आईएएस मोहिंदर सिंह उस समय सीईओ थे और स्मारक घोटाले के समय उनकी नियुक्ति प्रमुख सचिव आवास के पद पर हुई थी। इस मामले में बसपा सरकार के समय, महत्वपूर्ण माने जाने वाले अधिकारियों, जैसे सीपी सिंह, रामबोद्ध मौर्य और हरभजन सिंह, को विजिलेंस और ईडी द्वारा नए सिरे से नोटिस जारी किए जाने से घोटाले से जुड़े अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों में हड़कंप मच गया है। विजिलेंस की जांच में निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी सीपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के प्रमाण मिले थे, जिसके आधार पर एफआईआर भी दर्ज की गई थी। विजिलेंस ने उनके ठिकानों पर छापेमारी की, जहां जगुआर और बीएमडब्ल्यू जैसी महंगी गाड़ियां पाई गईं। सीपी सिंह को 17 अक्टूबर को ईडी द्वारा पूछताछ के लिए बुलाया गया।

पूर्व आईएएस सहित 25 अन्य आरोपी
स्मारक घोटाले के संबंध में सोमवार को एमपी-एमएलए की विशेष अदालत में दाखिल आरोपपत्र में भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय के पूर्व निदेशक और सेवानिवृत्त आईएएस रामबोध मौर्य के साथ 25 अन्य लोकसेवकों को भी आरोपित किया गया। इन सभी पर सरकारी धन का गबन, साजिश रचना और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। साथ ही, 32 कंसोर्टियम प्रमुखों को भी इसी तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान के निरीक्षक विनोद चंद्र तिवारी ने कुल 57 आरोपितों के खिलाफ यह आरोपपत्र पेश किया है, जिसमें बसपा सरकार के पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी और बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ भी कई महत्वपूर्ण साक्ष्य शामिल हैं।

हाईकोर्ट ने खारिज की आपील
पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने हाल ही में जांच में उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य न मिलने का हवाला देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की थी, जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दो सितंबर को खारिज कर दिया। कोर्ट ने विजिलेंस को निर्देश दिया कि वह चार सप्ताह के भीतर अपनी विवेचना पूरी करे। 2012 में गोमतीनगर थाने में इन पूर्व मंत्रियों सहित 19 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी और तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने जांच में 1400 करोड़ के घोटाले की पुष्टि की थी। रिपोर्ट में नोएडा और लखनऊ में पार्क और स्मारक निर्माण में अनियमितताओं के कई साक्ष्य पाए गए थे, लेकिन सपा सरकार के जाने के बाद जांच प्रक्रिया धीमी पड़ गई थी।

इस बयान से खुला राज़
फतेहपुर सीकरी के मूर्तिकार मदनलाल ने अधिकारियों को जानकारी दी कि लखनऊ मार्बल्स के मालिक आदित्य अग्रवाल ने एक हाथी का निर्माण करने के लिए 48 लाख रुपये की पेशकश की थी। हालांकि, उसे केवल 7 लाख 56 हजार रुपये का भुगतान मिला। जबकि, नोएडा स्थित पार्क के लिए 60 हाथी बनाने का ऑर्डर दिया गया था, लेकिन वहां केवल 20 हाथी ही स्थापित किए गए। नोएडा पार्क में 156 हाथी और लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में 52 हाथी लगाने की योजना थी। मदनलाल के इस बयान के आधार पर कई मार्बल कारोबारी मुश्किल में पड़े और ईडी ने आदित्य अग्रवाल को भी नोटिस भेजा था, लेकिन वह सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं हुए।

मंत्री और पीसीएस अफसरों को किया जा सकता है तलब
जानकारी के अनुसार, ईडी की पूछताछ के बाद इस घोटाले में सामने आए दोनों पूर्व मंत्रियों के साथ रिटायर्ड आईएएस अधिकारी रमा रमण को नोटिस देकर पूछताछ करने के लिए बुलाए जाने की तैयारी ईडी द्वारा की जा रही है। इसके अलावा नोएडा और लखनऊ अथॉरिटी में उस समय तैनात रहे 8 पीसीएस अफसरों को भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है। ये 8 पीसीएस अधिकारी इस समय रिटायर्ड हो चुके हैं।

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