लखनऊ विश्वविद्यालय : वैदिक संगोष्ठी में जयपुर विवि कुलपति ने बताया वेदों का महत्व, बोले-16 संस्कार ग्रहण करने के लिए अध्ययन जरूरी

UPT | Lucknow University

Oct 15, 2024 22:37

लविवि संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग और महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन द्वारा वैदिक संस्कार की महत्ता पर एक तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

Lucknow News : लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग और महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन द्वारा वैदिक संस्कार की महत्ता पर एक तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्घाटन जगद्गुरू रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. राम सेवक दुबे ने किया।

वेदांगों का अध्ययन आत्मिक विकास में सहायक 
संगोष्ठी का आयोजन एलयू के एपी सेन प्रेक्षागृह में किया गया। जिसमें प्रो. राम सेवक दुबे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि जो व्यक्ति वेद और वेदांगों का अध्ययन करता है, वह 16 संस्कारों को ग्रहण करने में सक्षम होता है। वेदों का अध्ययन व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक विकास में सहायक है, और संस्कारों की भूमिका सभी कालों में प्रासंगिक रही है।



प्राचीन काल में वेदों का महत्व
संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि, बेंसबाडा पीजी कॉलेज रायबरेली के प्राचार्य डॉ. अमलधारी सिंह गौतम ने प्राचीन काल में ऋग्वेद की 25 शाखाओं का जिक्र करते हुए बताया कि वेदों में संपूर्ण ज्ञान समाहित है। आज के समय में भी वेदों का अध्ययन जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है।

वेदों में निहित भारतीय संस्कृति
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने भारतीय संस्कृति को वेदों में समाहित बताते हुए संस्कृत के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज संस्कारों का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि पारंपरिक विचारों का प्रभाव घटता जा रहा है।

वेदों पर शोध और अध्ययन की आवश्यकता
एलयू के कुलपति प्रो. आलोक राय ने इस अवसर पर कहा कि वेदों में जीवन की हर दिशा का वर्णन किया गया है और विश्वविद्यालय में वैदिक शोध को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने नवीनीकरण की प्रक्रिया में टैगोर लाइब्रेरी में संस्कृत विभाग की मदद से वैदिक सेक्शन बनाने का प्रस्ताव रखा।

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