ललित पाल के अनुसार, उनके माता-पिता के निधन के बाद वर्ष 2005 में यह प्लॉट उनके नाम पर स्थानांतरित हो गया। उन्होंने बताया कि प्लॉट की बाउंड्रीवॉल बनवाने के बाद वे प्रतापगढ़ लौट गए थे। इस बीच पारिवारिक विवाद के कारण भाइयों के बीच कोर्ट में मुकदमा चलने लगा, जिससे किसी का ध्यान प्लॉट की देखरेख पर नहीं गया।