Lok Sabha Election : 27 साल में दस बार मिलाया हाथ तीसरी बार भाजपा के साथ, गठबंधन राजनीति की विरासत को संभालने में कामयाब जयंत

UPT | एनडीए गठबंधन का हिस्सा बने रालोद के चौधरी जयंत।

Mar 03, 2024 12:40

अपने अस्तित्व के 27 साल में रालोद 10 बार राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से हाथ मिला चुकी है। भाजपा से रालोद के  चौधरी परिवार की राहें तीसरी बार एक हुई हैं। इससे पहले भाजपा से लेकर कांग्रेस और बसपा …

Short Highlights
  • कांग्रेस और बसपा सहित सभी दलों के साथ मिला चुकी है रालोद हाथ 
  • जयंत से पहले दादा और पिता अजित को भाती रही गठबंधन राजनीति
  • एनडीए में शामिल होकर निभाया दादा और पिता की राजनीतिक विरासत का फर्ज 
     
Lok Sabha Election 2024 : पश्चिम यूपी में किसानों और जाटों की पार्टी कही जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल कभी कोई चुनाव अकेले दम पर नहीं लड़ी। अपने अस्तित्व के 27 साल में रालोद 10 बार राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से हाथ मिला चुकी है। भाजपा से रालोद के चौधरी परिवार की राहें तीसरी बार एक हुई हैं। इससे पहले भाजपा से लेकर कांग्रेस और बसपा और सपा सहित सभी प्रमुख दलों के साथ रालोद 10 बार हाथ मिला चुकी है।

पिता की बड़ी राजनीतिक विरासत के साथ राजनीति में कदम
चौधरी अजित सिंह यूपी में 2002 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव 2009  भाजपा के साथ मिलकर लड़े थे। उसके बाद अब फिर रालोद 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ है। चौधरी अजित सिंह जब 1986 में राजनीति में आए तो उनके पास पिता चौधरी चरण सिंह की बड़ी विरासत थी। चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद चौधरी अजित सिंह 1987 में लोकदल के अध्यक्ष बने और 1988 में जनता पार्टी के अध्यक्ष घोषित किए गए।
अजित सिंह अपनी खोई जमीन तलाश रहे थे। इसी दौरान राजनैतिक परिस्थितियों ने उन्हें कांग्रेस का साथ देकर केंद्रीय मंत्री बनने की तरफ मोड़ दिया। वह कांग्रेस के साथ अधिक दिन नहीं रहे और 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद वह फिर अलग होकर संयुक्त मोर्चा का हिस्सा बन गए। जिसमें मुलायम सिंह यादव शामिल थे। इसमें देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में अजित मंत्री रहे।

भाजपा के साथ मिलकर लड़े चुनाव, 14 सीटें जीतीं
अजित सिंह ने 1996 में राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया। 1998 में अजित सिंह को लोकसभा चुनाव में भाजपा से हार का सामना करना पड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह चुनाव जीते और भाजपा से समझौता कर लिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार में अजित सिंह कृषि मंत्री बने, लेकिन अधिक दिन ये साथ नहीं रह सके।
इसके बाद ​अजित सिंह ने वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। जिसमें आरएलडी के 14 विधायक जीतने में सफल रहे थे। लेकिन चुनाव के बाद अजित सिंह ने अटल सरकार से तुरंत इस्तीफा दे दिया और भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया।

रालोद के छह विधायक बने मुलायम सरकार में मंत्री
मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह दोनों कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंदी थे। लेकिन 2003 में जब उत्तर प्रदेश भाजपा गठबंधन से मायावती की सरकार चल रही थी। तब अजित सिंह ने रालोद के 14 विधायकों का समर्थन वापस लेकर मायावती सरकार गिरने का रास्ता तैयार किया। अजित सिंह ने मुलायम सिंह यादव को समर्थन देकर सरकार बनवाई। मुलायम सरकार में अजित सिंह के छह विधायक मंत्री बने थे। 

सपा के साथ नुकसान अधिक तो भाजपा के साथ फायदा 
2004 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर पश्चिम यूपी में ताल ठोकी। लेकिन ये चुनाव रालोद के लिए नुकसानदायक रहा और सपा के लिए फायदेमंद रहा। रालोद सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी। जबकि सपा को 35 सीटें मिलीं। हालांकि चार साल के बाद दोनों दलों का गठबंधन टूट गया। 2007 चुनाव में सपा और रालोद अलग-अलग चुनाव लड़ीं। इस चुनाव में रालोद को 10 सीटें मिली।
2008 में यूपीए सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तब अजित सिंह ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। लेकिन इसका फायदा रालोद को मिला। रालोद को पांच सीट जीतने में कामयाब रही। जबकि भाजपा को मात्र 10 सीटों पर मिली जीत का संतोष करना पड़ा।

जब अजित और जयंत दोनों हार गए
अजित सिंह 2011 में यूपीए-2 का हिस्सा बने और मनमोहन सिंह की सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री बन गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और रालोद मिलकर चुनाव मैदान में उतरे। रालोद 46 सीटों पर लड़ी और नौ सीटें जीती, कांग्रेस 355 सीटों पर लड़कर 22 सीटें जीत सकी। 2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस की दोस्ती बनी रही। लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों का नुकसान अजित सिंह की पार्टी रालोद को हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों चुनाव हार गए। कांग्रेस भी मात्र दो सीटें जीत सकी। जबकि अजित सिंह की रालोद अपना खाता नहीं खोल पाई।

कांग्रेस-सपा की दोस्ती से रालोद हाशिए पर 
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा में दोस्ती होने से रालोद हाशिए पर आ गई। रालोद अकेले चुनाव लड़ी और एक विधायक ही जीत दर्ज करा सका। 2018 में कैराना लोकसभा उपचुनाव में रालोद की सपा से  नजदीकियां बढ़ीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद, बसपा और सपा  साथ हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरी। जिसमें रालोद तीन सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें एक भी सीट नहीं जीत सकी। अजित सिंह और जयंत दोनों हार गए।

जयंत पहले अखिलेश के साथ, अब भाजपा से मिलाया हाथ 
मायावती के गठबंधन से अलग होने के बाद सपा और रालोद साथ थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद मिलकर चुनाव लड़े। जिसमें रालोद 36 सीटों पर चुनाव लड़ी। इस चुनाव में रालोद को आठ सीटें मिली। वहीं रालोद ने खतौली उपचुनाव में भी जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव के बाद सपा ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा और आरएलडी के साथ लड़ने का समझौता था। इसके तहत अखिलेश यादव ने आरएलडी को सात लोकसभा सीटें देने का एलान कर चुके थे। लेकिन अचानक से भाजपा ने ऐसी चाल चली कि जयंत एनडीए का हिस्सा बन गए। 

Also Read