नवोदय विद्यालय और MBBS में फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर एडमिशन : भदोही के स्टूडेंट को सात साल की सजा, लगाया जुर्माना

सोशल मीडिया | प्रतीकात्मक फोटो

Nov 13, 2024 13:16

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के एक छात्र को फर्जी अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी शिक्षा संस्थानों में एडमिशन लेने के आरोप में 7 साल की सजा हुई है। कोर्ट छात्र पर 11 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है...

Bhadohi News : उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के एक छात्र को फर्जी अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी शिक्षा संस्थानों में एडमिशन लेने के आरोप में 7 साल की सजा हुई है। कोर्ट छात्र पर 11 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इस छात्र ने पहले जवाहर नवोदय विद्यालय (JNV) में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) प्रमाणपत्र का इस्तेमाल किया और फिर प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में MBBS में प्रवेश के लिए फर्जी SC सर्टिफिकेट लगाया। 

यह है मामला
भदोही जिले के गोपीगंज के इब्राहिमपुर गांव का निवासी अमित कुमार बिंद ने 23 मार्च 2010 को कथित तौर पर एक फर्जी अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र हासिल किया। इसमें उसने अपनी जाति खटीक बताई जो एससी श्रेणी में आती है। इस फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर उसने 2018 में प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में एससी कोटे के तहत MBBS कोर्स में एडमिशन लिया। अमित ने अपनी शिक्षा की शुरुआत जवाहर नवोदय विद्यालय में ओबीसी कोटे से की थी, लेकिन फिर उसी दस्तावेज़ का उपयोग करके मेडिकल कॉलेज में एससी कोटे का लाभ उठाने की कोशिश की।



ऐसे मामने आया मामला
 ये मामला तब सामने आया जब गोपीगंज इलाके के रहने वाले विजय बहादुर उर्फ विश्राम सिंह ने 7 जून 2018 को एक शिकायत दर्ज कराई। जांच के बाद अमित कुमार बिंद के खिलाफ मामला दर्ज किया गया और अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया। एसपी ने कहा कि FIR दर्ज होने के बाद मेडिकल कॉलेज ने बिंद का एडमिशन कैंसिल कर दिया और उसे निष्कासित कर दिया। शिकायत के बाद पुलिस ने जांच शुरू की और पता चला कि अमित ने फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर कई सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया था। 

कोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सबीहा खातून की अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपी को दोषी पाया और सात साल की सजा सुनाई। कोर्ट ने इसके साथ ही उसे 11 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर रमेश चंद्र ने बताया कि यह फैसला फर्जी दस्तावेजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पाया कि आरोपी ने जानबूझकर सरकारी कोटे का गलत फायदा उठाया था।

Also Read