संतों का निराला संसार : महाकुंभ में आए कांटे वाले बाबा, 50 सालों से कंटीली सेज पर साधना, जानिए क्या है वजह?

UPT | कांटे वाले बाबा

Jan 16, 2025 13:37

'कांटे वाले बाबा' अपने साधना के अनोखे तरीके की वजह से आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वह कांटों की सेज पर साधना करते हैं और इसे अपनी तपस्या का हिस्सा मानते हैं।

Prayagraj News : संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन पूरे उत्साह और भक्ति के साथ हो रहा है। यहां करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम में स्नान कर आस्था व्यक्त कर रहे हैं। इस महाकुंभ के दौरान कई अनोखे और दिलचस्प साधु-संत भी लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं 'कांटे वाले बाबा', जिनका असली नाम रमेश कुमार मांझी है। अपने साधना के अनूठे तरीके के कारण ये बाबा सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं और महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

कौन हैं कांटे वाले बाबा?
संत रमेश कुमार मांझी जिन्हें 'कांटे वाले बाबा' के नाम से जाना जाता है, अपनी अनूठी साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। वे कांटों पर सोते हैं और कांटों के माध्यम से अपने धर्म और आस्था को व्यक्त करते हैं। बाबा का मानना है कि यह उनके लिए भगवान की विशेष कृपा है और उनके शरीर को शारीरिक लाभ प्रदान करता है।

50 वर्षों से कांटों की सेज पर साधना
कांटे वाले बाबा पिछले 50 वर्षों से कांटों की सेज पर साधना कर रहे हैं। उनका मानना है कि कांटों पर साधना करना भगवान की कृपा है और इससे उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती। बाबा का कहना है, "मैं गुरु की सेवा करता हूं। गुरु ने मुझे ज्ञान और आशीर्वाद दिया है। यह सब भगवान की महिमा है जो मुझे ऐसा करने में सक्षम बनाती है। मैं पिछले 40-50 सालों से हर साल ऐसा करता आ रहा हूं।"

कांटों पर लेटने लाभकारी बताते हैं
बाबा का दावा है कि कांटों पर लेटने से उन्हें शारीरिक लाभ होता है। वह इसे न केवल एक साधना का तरीका मानते हैं, बल्कि अपने स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद बताते हैं। बाबा ने बताया, "कांटों पर लेटने से मुझे कभी कोई तकलीफ नहीं होती। यह मुझे अंदरूनी शक्ति और शांति प्रदान करता है।" बाबा उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और गंगासागर जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर भी अपनी साधना करते हैं।

दान और श्रद्धा से चलती है जीवनशैली
बाबा बताते हैं कि उन्हें श्रद्धालुओं से प्रतिदिन करीब 1,000 रुपये दक्षिणा के रूप में मिल जाते हैं। इन पैसों का आधा हिस्सा वह जन्माष्टमी के अवसर पर दान कर देते हैं, जबकि शेष राशि से अपने दैनिक खर्च पूरे करते हैं। उनका कहना है कि उनकी साधना और आस्था का उद्देश्य केवल भक्ति और जनकल्याण है।

Also Read