मर्यादा पुरुषोत्तम राम के तौर पर जीवन मूल्यों की सीख देते रहे हैं। यही वजह थी कि हिंदुओं के अलावा अन्य मतावलंबियों की भी उनमें आस्था रही है। यही नहीं भारत विभाजन की मांग करने वाले मुख्य लोगों में से एक अल्लामा इक़बाल ने भी एक दौर में उनकी प्रशंसा में एक नज़्म लिखी थी। उन्होंने भगवान राम से ही दुनिया में हिंदुस्तान का नाम होने की बात भी इस नज़्म में लिखी थी।
Ayodhya: राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को है नाज़, अल्लामा इक़बाल ने बताया मर्यादा पुरुषोत्तम
Jan 21, 2024 09:00
Jan 21, 2024 09:00
- भगवान राम भारत के सांस्कृतिक प्रतीक रहे हैं
- अल्लामा इक़बाल ने 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी लिखा था
भगवान राम भारत के सांस्कृतिक प्रतीक रहे हैं
कैसे एक मंदिर ढह जाता है, लेकिन उसे क़ायम करने के लिए जीवटता खत्म नहीं होती। मंदिर के साथ साहस नहीं ढहता और भगवान राम के लिए आस्था का दीप प्रज्वलित ही रहता है। अब आस्था के वे दीप 22 जनवरी को रामज्योति के तौर पर जलने वाले हैं। अयोध्या के किसी साधु से लेकर कश्मीर में फारुक अब्दुल्ला तक राम भजन गा रहे हैं। वास्तव में भगवान राम भारत के सांस्कृतिक प्रतीक रहे हैं। अल्लामा इकबाल लिखते हैं, 'इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त, मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद। है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़,अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद।'
इस नज़्म में मलक का अर्थ देवता से है, जबकि सरिश्त का अर्थ ऊंचे आसन वाला होता है। इस तरह उनकी नज़्म की पंक्तियों का अर्थ हुआ- इस देश में हजारों देवता जैसे लोग हुए हैं। उनके ही दम से दुनिया में हिंद यानी हिन्दुस्तान का नाम है। राम के वजूद पर हमें नाज है और हम सभी उन्हें इमाम-ए-हिंद यानी देश को दिशा देने वाला नायक समझते हैं।
अल्लामा इक़बाल ने 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी लिखा था
अल्लामा इक़बाल की विचारधारा में एक दौर में बड़ा बदलाव आ गया था और वह मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क की मांग करने वाले नेता बन गए थे। चौधरी रहमत अली, मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली और अल्लामा इक़बाल उन प्रमुख लोगों में से थे, जिन्होंने अलग मुल्क की मांग का विचार पेश किया। यही नहीं जिस अल्लामा इक़बाल ने कभी सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा लिखा था, उसी ने फिर पाकिस्तान पर एक गीत लिखा था। गौरतलब तथ्य यह भी है कि इकबाल का मूलत: कश्मीरी पंडित थे। उनके परिवार ने 17वीं सदी में इस्लाम स्वीकार किया था और वे कुलगाम के रहने वाले थे।
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