दीपावली की खुशियां फीकी स्टूडेंट का पेट भरने वाले खुद भुखमरी की कगार पर, छह माह से नहीं मिला मानदेय

स्टूडेंट का पेट भरने वाले खुद भुखमरी की कगार पर, छह माह से नहीं मिला मानदेय
UPT | रसोइयों का फोटो ।

Oct 29, 2024 00:56

रोशनी के पर्व दीपावली का त्योहार शुरू हो चुका है। घरों पर रंग-रोगन के साथ ही धनतेरस पर खरीदारी की तैयारी है, तो वहीं पटाखे की दुकानें भी सज...

Oct 29, 2024 00:56

Bareilly News : रोशनी के पर्व दीपावली का त्योहार शुरू हो चुका है। घरों पर रंग-रोगन के साथ ही धनतेरस पर खरीदारी की तैयारी है, तो वहीं पटाखे की दुकानें भी सज गई हैं। मगर, प्राथमिक विद्यालयों में स्टूडेंट का पेट भरने वाले रसोइयों के परिवारों में दीपावली की खुशियां फींकीं हैं। क्योंकि, उन्हें पिछले 6 माह से मानदेय नहीं मिला। उनके घरों में रंगी पुताई का काम भी नहीं हो सका, तो वहीं बच्चों की पटाखे की जिद भी पूरी नहीं हो पा रही। इसको लेकर रसोइयों ने कई बार शिक्षा विभाग के अवसरों से शिकायत की। मगर, उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। हालांकि, बेसिक शिक्षा विभाग से लेकर शासन स्तर तक इनके बकाया मानदेय भुगतान को लेकर कोई सुगबुगाहट भी नहीं दिख रही है। बताया जाता है कि सोमवार तक मानदेय आने का दावा किया जा रहा था। मगर, यह भी पूरा नहीं हुआ। 



भोजन तैयार के साथ साफ सफाई का काम लेने का आरोप
रसोइयों ने आरोप लगाया कि कई दशक से काम लिए जाने के बाद भी सेवा शर्तें या सेवा नियमावली तक नहीं बनाई गई। स्कूलों में भोजन पकाने के अलावा साफ-सफाई समेत कई अन्य कार्य भी कराए जा रहे हैं। रसोइयों को सरकार ने तय किए गए न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम मानदेय मिलता है। रसोइयों को साल में सिर्फ 11 महीने कार्य लिया जाता है। मगर, मानदेय मात्र दस माह का मिलता है। जानकारों का कहना है कि स्कूलों में चालीस दिन की छुट्टियां होती हैं। इनमें 25 दिन गर्मी और 15 दिन जाड़े की होती हैं। शिक्षामित्र, अनुदेशक एवं रसोइयां सभी संविदा कर्मी हैं। इनमें से शिक्षामित्र एवं अनुदेशकों को 11 माह का मानदेय दिया जाता है, जबकि रसोइयों को दस महीने का मानदेय देते हैं।

त्योहार की नहीं मिलती छुट्टी
रसोइयों को पर्व-त्योहार की भी कोई छुट्टी नहीं मिलती। सरकार महिलाओं से सीधे जुड़े त्योहार मसलन,हरियाली या कजरी तीज, करवा चौथ, जीवित्पुत्रिका (ज्यूतिया), छठ आदि में विशेष छुट्टियां प्रदान की जाती हैं, लेकिन रसोइयां में 90 फीसद से अधिक महिलाएं हैं। इनको तीज-त्योहारों में कोई छुट्टी नहीं दी जाती। कोई आकस्मिक और बीमारी का इन्हें कोई भी अवकाश नही मिलता। इन्हें मध्यान भोजन पकाने हर हाल में स्कूल आना पड़ता है।

हमेशा नौकरी जाने का खतरा
सरकार की तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय पर काम करने वाली रसोइयों की नौकरी कभी भी किसी समय समाप्त कर दी जाती है। कभी स्कूलों में छात्र संख्या में कमी आने का बहाना बनाकर या फिर किसी अपनों को रखने के लिए भी बाहर  कर दिया जाता है।‌ 


देहात के स्कूलों में सबसे खराब है स्थिति
देहात के इलाकों में स्थित स्कूलों में इनकी स्थिति और भी खराब है। धुंआ मुक्त प्रदेश में यह जुगाड़ की लकड़ी से खाना पकाने के लिए बाध्य किए जाते हैं। दूर दराज कुछ स्कूलों में गैस सिलेंडर हैं, तो वह नुमाइश के समान भर हैं। करीब 99 फीसदी विद्यालयों में अग्निशमन की गाइडलाइन का कहीं कोई पालन नहीं किया जाता। खाना बनाने के साथ सफाई कर्मचारी से लेकर चपरासी तक के सारे काम करने पड़ते हैं।

छात्र संख्या के आधार पर रसोइयों की संख्या
सरकार ने 2019 में छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों में रखे जाने वाले रसोइयों की संख्या तय की थी।प्राथमिक शिक्षक संघ के विनोद कुमार वर्मा ने बताया कि परिषदीय और अनुदानित विद्यालयों में कार्यरत रसोइयों को जो भी मानदेय दिया जा रहा है। वह न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है। इतने अल्प मानदेय में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। हर माह समय से इनको मानदेय मिल जाए, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।

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