Pilibhit News : अगर पीलीभीत संसदीय क्षेत्र की बात करें तो बरबस नेहरू-गांधी ख़ानदान की छोटी बहू मेनका गांधी (Menaka Gandhi) का चेहरा सामने आ जाता है। अपने जेठ और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के सामने 1984 में चुनाव लड़कर मेनका गांधी ने सनसनी फैला दी थी। हालांकि, उन्हें अमेठी में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन अगले आम चुनाव (1989) में मेनका गांधी को पीलीभीत के लोगों ने ज़ोरदार समर्थन देकर संसद भेजा था।
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र और मेनका गांधी : अपने परिवार और कांग्रेस के खिलाफ लड़कर बड़ा कद हासिल किया, कई रिकॉर्ड कायम किए
Nov 18, 2023 17:27
Nov 18, 2023 17:27
पांच में से चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा विधायक
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र की बात करें तो इसमें 5 विधानसभा क्षेत्र बहेड़ी, पीलीभीत, बरखेड़ा, पूरनपुर और बीसलपुर हैं। इनमें से 4 विधानसभा क्षेत्रों पर भारतीय जनता पार्टी का क़ब्ज़ा है। केवल बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक अताउररहमान हैं। पीलीभीत सदर से भारतीय जनता पार्टी के संजय गंगवार विधायक हैं। बरखेड़ा सीट से स्वामी प्रवक्तानन्द विधायक हैं। पूरनपुर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र है और बाबूराम पासवान भाजपा के विधायक हैं। बीसलपुर सीट से विवेक कुमार वर्मा भाजपा के विधायक हैं।
सत्ता विरोध को मेनका ने अपना हथियार बनाया
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का रुझान कमोबेश सत्ता विरोधी रहा है। देश आज़ाद हुआ और 1952 में पहला आम चुनाव करवाया गया था। तब इस सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुकुंदलाल अग्रवाल सांसद चुने गए थे। वह फ्रीडम फाइटर थे। इसके बाद लगातार तीन आम चुनावों 1957, 1962 और 1967 में कांग्रेस की शुरुआती विपक्षी पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने यहां से कामयाबी हासिल की। तीनों बार मोहन स्वरूप कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर संसद पहुंच रहे थे। क़रीब 15 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद वर्ष 1972 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन उम्मीदवार मोहन स्वरूप को ही बनाना पड़ा था। इस तरह इस इलाक़े के दिग्गज नेता मोहन स्वरूप लगातार चार बार संसद पहुंचे थे।
कांग्रेस ने आपातकाल के बाद वापसी की
देश में आपातकाल ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस को बड़ा नुक़सान पहुंचाया था। लिहाज़ा, 1977 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी के मोहम्मद शमसुल हसन ख़ान चुनाव जीतकर पार्लियामेंट पहुंचे थे। जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनी, लेकिन ज़्यादा दिन नहीं चल पाई। आपसी टकराव के कारण जनता पार्टी की सरकार गिर गई और वर्ष 1980 में एक बार फिर कांग्रेस ने ज़ोरदार वापसी की। पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस ने लगातार दो बार जीत हासिल की। 1980 के लोकसभा चुनावों में हरीश कुमार गंगवार और 1984 में भानु प्रताप सिंह सांसद निर्वाचित हुए थे।
राजीव गांधी के खिलाफ और वीपी सिंह के साथ
पहले संजय गांधी और फिर इंदिरा की मौत हो गई। गांधी परिवार में फूट पड़ी। संजय गांधी की विधवा पत्नी मेनका गांधी ने राजनीति में क़दम रखने का मन बनाया और उन्हें जनता दल के मुखिया के विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सहयोग किया। मेनका गांधी को 1984 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने मैदान में उतार दिया गया। मेनका गांधी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इसके बाद राजनीति में आयी मेनका गांधी को एक ऐसे संसदीय क्षेत्र की तलाश थी, जहां से वह कामयाबी हासिल कर सकें। उनकी तलाश पीलीभीत में पूरी हुई।
पीलीभीत का मतलब बन गया मेनका गांधी
वर्ष 1989 का लोकसभा चुनाव मेनका गांधी ने जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से लड़ा और उन्होंने शानदार जीत हासिल की। इसी बीच मंडल-कमंडल का समीकरण हावी हो गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह और जनता दल को वर्ष 1991 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की लहर का सामना करना पड़ा। लिहाज़ा, मेनका गांधी भाजपा उम्मीदवार परशुराम गंवार के सामने पीलीभीत में हार गईं। यह मेनका गांधी की अंतिम हार थी। इसके बाद मेनका गांधी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने वर्ष 1996 का लोकसभा चुनाव एक बार फिर जनता दल के टिकट पर जीता। हालांकि, धीरे-धीरे जनता दल का पतन हो गया, लेकिन मेनका गांधी पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में मज़बूत होती चली गईं। अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र की अस्थिर सरकारों के कारण लगातार चुनाव हो रहे थे। मेनका गांधी ने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे।
सोनिया के खिलाफ भाजपा का दामन थामा
अब तक कांग्रेस का बुरा हाल हो चला था। मजबूर होकर मेनका गांधी की जेठानी सोनिया गांधी को कांग्रेस संभालने के लिए राजनीति में उतरना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बन चुके थे। ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज विपक्षी नेताओं ने मेनका गांधी को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया।
चार पीएम और छह सरकारों में काम किया
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र की बदौलत मेनका गांधी केंद्र की छह सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं। मेनका गांधी को विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के साथ काम करने का लंबा अनुभव है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में महिला और बाल कल्याण मंत्री रही थीं। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कार्यक्रम क्रियान्वयन और सांख्यिकी मंत्री रहीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ उन्होंने यही मंत्रालय संभाला था। अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी सरकार में संस्कृति मंत्री रही थीं। उन्हें तीसरी बार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का ज़िम्मा सौंपा गया था। मेनका गांधी चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंत्रिमंडलों में पर्यावरण और वन मंत्री रही थीं।
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र के नाम ख़ास रिकॉर्ड
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में मेनका गांधी की पकड़ का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह यहां से छह बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच चुकी हैं। दो बार वर्ष 2009 और 2019 में उनके बेटे वरुण गांधी ने पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते हैं। मेनका गांधी की बदौलत वर्ष 1984 के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस इस इलाक़े में वापसी नहीं कर पाई है। पीलीभीत संसदीय क्षेत्र देश के उन चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में शामिल है, जहां से कोई महिला 5 बार से ज़्यादा भारतीय संसद में पहुंची है।
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