पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में लोकसभा 2024 के चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में मतदाता अपने सांसद को चुनने के लिए वोट करेगी। देश के साथ-साथ प्रदेश में भी 19 अप्रैल से शुरू होकर चुनाव 1 जून को खत्म होगा। चुनावों के परिणाम 4 जून को आएंगे। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश टाइम्स प्रदेश हर लोकसभा सीट के मिजाज और इतिहास को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। इस अंक में पढ़ें पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र के बारे में...
पीलीभीत लोकसभा : इस बार खत्म होगा 35 साल का मां-बेटे का एकछत्र राज, फिर से भाजपा को मिलेगी जीत या बदलेगा समीकरण
![इस बार खत्म होगा 35 साल का मां-बेटे का एकछत्र राज, फिर से भाजपा को मिलेगी जीत या बदलेगा समीकरण](https://image.uttarpradeshtimes.com/pilibhit-94518.jpg)
Apr 10, 2024 07:00
Apr 10, 2024 07:00
- मेनका गांधी 33 साल की उम्र में पीलीभीत से सांसद चुनकर संसद पहुंची थीं।
- मेनका गांधी पीलीभीत लोकसभा सीट का छह बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
देश के अधिकतर सीटों की तरह पिलीभीत सीट पर भी साल 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिली थी। इस चुनाव में कांग्रेस के मुकुंद लाल अग्रवाल सांसद चुने गए थे। लेकिन लगातार अगले 3 चुनावों में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को सफलता मिली थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मोहन स्वरुप ने जीत हासिल की थी। उसके बाद 1971 के चुनाव में भी मोहन स्वरुप ने ही मैदान फतेह किया लेकिन इस बार वो कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचे थे। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर शम्सुल हसन खान ने चुनाव जीता था। उसके बाद 1980 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर हरीश कुमार गंगवार तो 1984 के चुनाव में कांग्रेस के ही भानु प्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी। 1989 का चुनाव पहला चुनाव था जिसमें जनता दल के टिकट पर संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने चुनाव लड़ा और जीता भी। इस चुनाव में मेनका गांधी ने कांग्रेस के उम्मीदवार और सांसद भानु प्रताप सिंह को 1 लाख से ज्यादा मतों से चुनाव हराया था। लेकिन अगले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 1991 के चुनाव में परशु राम गंगवार के हाथों से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन उसके बाद 1996 से लेकर 2019 तक लगातार मेनका गांधी चुनाव जीतती आ रही हैं। 2009 और 2019 में इस सीट से मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी को भी जनता ने मौका दिया था।
मेनका को बाहरी बताया गया
एक समय पर मेनका गांधी यह आरोप भी लगा किमां-बेटे बाहरी हैं और उनके पास अपना घर भी पीलीभीत में नहीं है। इतने लंबे राजनीतिक सफर में उन्होंने पीलीभीत में कोई घर नहीं बनवाया। कई बार विपक्ष की पार्टियों ने इसे मुद्दा भी बनाया लेकिन जनता में यह मुद्दा काम नहीं कर पाया। इसका कारण यह बताया जाता है कि वरुण और मेनका लगातार अपने संसदीय क्षेत्र में आते रहते हैं और जनता के बीच जाकर उनकी दिक्कतों को सुनते हैं। साथ ही उनका निपटारा भी करते हैं। साथ ही मेनका और वरुण को पीलीभीत के लोगों ने जमकर प्यार दिया। जिसकी बदौलत पीलीभीत मां-बेटे और भाजपा के लिए अभेद किला बन गया है।
छह बार कर चुकी हैं पीलीभीत का प्रतिनिधित्व
मेनका गांधी पीलीभीत लोकसभा सीट का छह बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। मेनका गांधी 1989 में पहली बार जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से सांसद बनीं। उसके बाद 1996 से 2014 के बीच की बात करें तो इस बीच में पांच बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इसमें दो बार निर्दलीय और एक बार बीजेपी प्रत्याशी के रूप में। लेकिन साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मेनका के बेटे वरुण गांधी ने इस सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। लेकिन साल 2014 के चुनाव में उन्होंने वापस पीलीभीत लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंची। लेकिन साल 2019 के चुनाव में उनकी सीट बदल गई और उन्होंने सुल्तानपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की।
पीलीभीत में भाजपा का वर्चस्व
पीलीभीत लोकसभा में कुल 5 विधानसभा के क्षेत्र आते हैं। इनमें बहेरी, पीलीभीत, बरखेरा, पूरनपुर और बीसलपुर शामिल है। बहेरी छोड़कर बाकि सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इस सीट से समाजवादी पार्टी के अताउर रहमान विधायक हैं। इसके अलावा पीलीभीत से संजय गंगवार, बरखेरा से स्वामी प्रवक्ताननंद, पूरनपुर से बाबूराम पासवान और बीसलपुर से विवेक कुमार वर्मा विधायक हैं। विधानसभा के हिसाब से देखें तो भाजपा इस सीट पर काफी मजबूत है। साथ ही सिर्फ विधानसभा ही नहीं बल्कि इस लोकसभा क्षेत्र पर भी भाजपा उतनी ही मजबूत है।
इस बार तीन बड़े नेता मैदान में
वर्तमान समीकरण की बात करें तो पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से वरुण गांधी सांसद हैं। लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने वरुण गांधी का टिकट काटकर जितिन प्रसाद को इस लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा है। वरुण गांधी साल 2019 और 2009 में पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। 2014 के चुनाव में वरुण गांधी की मां मेनका गांधी इस सीट से लड़ी थी और जीती भी थीं। लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने वरुण गांधी को टिकट नहीं दिया। इसके पीछे की वजह अभी तक साफ नहीं हो पाई है लेकिन यह बात तो तय है कि इस सीट से इस बार गांधी परिवार का कोई भी सदस्य भाजपा से चुनाव नहीं लड़ेगा। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर से टिकट दिया है। जितिन प्रसाद वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। उन्हें इस सीट से चुनाव लड़ने को कहा गया है। वहीं समाजवादी पार्टी की बात करें तो सपा ने पीलीभीत लोकसभा से भगवत शरण गंगवार को चुनावी मैदान में उतारा है। भगवत शरण गंगवार कई बार विधायक चुने गए हैं। साल 1991 और 1993 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर बरेली की नवाबगंज विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। उसके बाद 1996 के चुनाव में उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा था। साल 2002 में भाजपा से अलग होकर गंगवार ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था। इसके बाद 2002, 2007 और फिर 2017 में समाजवादी पार्टी से विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे। 2012 की सपा सरकार में भगवत शरण को मंत्री भी बनाया गया था। अब उन्हें लोकसभा का उम्मीदवार बनाया गया है। वहीं भाजपा के उम्मीदवार जितिन प्रसाद की बात करें तो 2 साल पहले ही जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। अपनी राजनीति की शुरुआत जितिन प्रसाद ने कांग्रेस से ही की थी। कांग्रेस की सरकार में जितिन प्रसाद केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी से नाराज होने के कारण उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ा था। इसके बाद उन्हें प्रदेश के योगी सरकार में मंत्री बनाया गया था। अब उन्हें पीलीभीत लोकसभा से उम्मीदवार बनाया गया है। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू को पीलीभीत लोकसभा से मैदान में उतारा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मां बेटे की तरह नितिन प्रसाद भी यह सीट जीतकर भाजपा के झोली में डालेंगे या अनीस अहमद खान और भगवत शरण गंगवार से उन्हें कड़ी टक्कर मिलेगी।
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