माफियाओं की नजरें इन जमीनों पर लगी हैं। साठगांठ से फ्री-होल्ड कराकर हड़पने की तैयारी में हैं। कुछ जमीनें तो कब्जाधारकों ने फ्री-होल्ड कराकर उन पर निर्माण भी शुरू कर दिए हैं। अगर, समय रहते इन जमीनों को अवैध कब्जे से मुक्त नहीं कराया गया, तो कोई भी कब्जा हटाना काफी मुश्किल होगा।
बरेली में नजूल भूमि पर कब्जों का मायाजाल : जुबली पार्क गायब, अक्षर बिहार की जमीन पर कब्जा, अफसरों को नहीं मिला रिकार्ड...
Aug 02, 2024 17:01
Aug 02, 2024 17:01
मगर, नजूल जमीनों का रिकार्ड देखा जाए, तो बरेली में ही सैकड़ों करोड़ रुपये की नजूल की भूमि पर अवैध कब्जे हैं। लीज खत्म होने के बाद भी नगर निगम इन जमीनों से कब्जा नहीं हटवा पा रहा है। माफियाओं की नजरें इन जमीनों पर लगी हैं। साठगांठ से फ्री-होल्ड कराकर हड़पने की तैयारी में हैं। कुछ जमीनें तो कब्जाधारकों ने फ्री-होल्ड कराकर उन पर निर्माण भी शुरू कर दिए हैं। अगर, समय रहते इन जमीनों को अवैध कब्जे से मुक्त नहीं कराया गया, तो कोई भी कब्जा हटाना काफी मुश्किल होगा। हालांकि, नजूल की जमीनों के विवादित मामलों में रसूखदार फायदा उठाते रहे हैं। अक्षर विहार और जुबली पार्क गायब हो चुके हैं। शहर के बीचों बीच सिविल लाइंस के क्षेत्र में पांच हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में जुबली पार्क था। इसका अब नामोनिशान मिट चुका है। पार्क की सीमाओं में घिरी जमीन का लैंड यूज बदले बिना संजय कम्यूनिटी हॉल, एलन क्लब, फायर ब्रिगेड, मेयर आवास बनाया जा चुका है।
दोबारा हो गया कब्जा
25 साल पहले वर्ष 1999 में नजूल भूमि (6500 वर्ग मीटर) फ्रीहोल्ड कराकर पांच लोगों को बेची गई थी। उसमें तालाब की भूमि भी फ्रीहोल्ड कराई गई थी। वर्ष 1998 में नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराकर बेचने की नीति आने के दो-तीन साल बाद तालाब, पोखर की भूमि बेचने पर रोक लगाई गई थी। इसी का फायदा उठाकर तालाब की भूमि बेच दी गई लेकिन वर्ष 1999 में कराई गई फ्रीहोल्ड की सभी फाइलें अभी तक नहीं मिली हैं। रिकार्ड रूम में तीन फाइलों को ढूंढा गया। ये फाइलें मिलने के बाद ही तालाब और नजूल भूमि के रकबे की सही स्थिति मालूम हो पाएगी।
राज्यपाल ने जमीन खाली को भेजा था पत्र
यूपी के पूर्व राज्यपाल रामनाइक ने वर्ष 2015 में नजूल भूमि खाली कराने को पत्र भेजा था। मगर, यह भूमि खाली नहीं हुई। यूपी के नगर निगम के दायरे में चार लाख 21 हजार 643 वर्ग मीटर में नजूल की 69 संपत्तियां हैं। इसमें से दो लाख 28 हजार 798 वर्ग मीटर जमीन नगर निगम के निजी प्रयोग में है। एक लाख 92 हजार 845 वर्ग मीटर जमीन पर 99 पट्टे हैं। 32 हजार 484 वर्ग मीटर जमीन व्यवसायिक प्रयोग हेतु चार पट्टों पर और 51 हजार 999 वर्ग मीटर जमीन में अन्य प्रयोजन के लिए 13 पट्टे दिए गए।
बरेली में सामने नहीं आई सर्वे रिपोर्ट
बरेली में बड़ी संख्या में नजूल की जमीन पर कब्जे हैं। इनका सर्वे कराया गया था। मगर, रिकार्ड न मिलने के कारण सर्वे पूरा नहीं हुआ। रिकार्ड के मिलान पर सरकारी जमीनों के हेरफेर का बड़ा खुलासा हो सकता था। पूरे प्रदेश में नजूल रिकार्ड कलेक्ट्रेट में रखा जाता है लेकिन बरेली में इसे नगर निगम में रखा गया है। सूत्रों का यह भी कहना है कि कई मामलों में रिकार्ड तक नहीं मिल रहे हैं। डीएम को शिकायतें भी मिली थीं कि नजूल की जमीनों पर कब्जाकर उनका रिकार्ड गायब करा दिया गया है। इस पर एक पूर्व डीएम ने नजूल भूमि का सर्वे करने का आदेश दिया था। हालात, यह हैं कि डीएम का आदेश दरकिनार कर दिया गया। आज तक सर्वे शुरू ही नहीं हुआ।
फंसा है अग्निशमन भवन और आवास
शहर के बरेली कॉलेज गेट के पास स्थित अग्निशमन केंद्र के आवासीय-अनावासीय भवन 57 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं। जिसके चलते जर्जर हैं। 1968 में तत्कालीन नगर पालिका ने बरेली कॉलेज के नजदीक नजूल भूमि पर अग्निशमन कार्यालयों की स्थापना कराई थी लेकिन यह भूमि विभाग को हस्तांतरित नहीं हो पाई। अब भवनों के साथ आवास इतने जर्जर हो गए हैं कि हर वक्त कार्यालय और आवासों में रहने वाले अधिकारी-कर्मचारियों को जानमाल का अत्यधिक खतरा बना रहता है। 2014 में जर्जर अग्निशमन केंद्र के आवासीय और अनावासीय भवनों के स्थान पर नए भवनों के निर्माण के लिए उप्र आवास एवं विकास परिषद काे कार्यदायी संस्था नामित करते हुए 4 करोड़ रुपये की धनराशि भी अनुमन्य कर दी थी लेकिन अग्निशमन केंद्र की भूमि विभाग के नाम न होने के कारण अभी तक जर्जर भवनों का ध्वस्तीकरण नहीं हो पाया है।
दुकान कराई फ्री होल्ड
शहर के पटेल चौक से नौमहला से नावल्टी तक करीब 35 एकड़ भूमि नगर निगम के रिकॉर्ड में नजूल की है। हालांकि, पटेल चौक से नौमहला की ओर कई दुकानदारों ने भूमि फ्री होल्ड करा ली है। अब भी कई दुकानें ऐसे ही चल रही हैं। दरअसल, इस भूमि का वर्ष 1901 में पंडित हेतराम के नाम तीस साल के लिए 80 रुपये प्रति साल पर पंट्टा हुआ। वर्ष 1943 में उनके वारिस द्वारिका और मथुरा प्रसाद के नाम डेढ़-डेढ़ सौ रुपये सालाना के हिसाब से 90 साल के लिए पंट्टा किया गया। इसमें दस साल बाद नवीनीकरण कराने की शर्त थी। वर्ष 1960 तक नगर निगम में यह किराया जमा किया गया। इसके बाद किराया जमा नहीं हुआ। पंट्टे की शर्त अनुसार नवीनीकरण भी नहीं कराया गया। निगम में इससे संबंधित रिकॉर्ड भी गायब हो गए। बाद में वारिसों के बीच भी बंटवारा हो गया।
यहां लिया कब्जा
एसवी इंटर कालेज के सामने खाली पड़ी डेढ़ हजार वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन पर कांग्रेस नेता जसवंत प्रसाद सिंह का सालों से कब्जा था। प्रशासन ने इसे नजूल की जमीन बताकर कब्जा कर लिया। इस मामले में हाईकोर्ट में मुकदमा भी चल रहा था।।कुछ साल पहले पूर्व एसडीएम सदर रजनीश राय के नेतृत्व में प्रशासन की टीम ने पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचकर कब्जा लिया था। गेट पर जसवंत प्रसाद के ताले पड़े हुए थे जिन्हें तोड़कर जमीन के बीचोबीच एक बोर्ड लगा दिया गया। इस पर लिखा है ‘यह जमीन नजूल की है।भूखंड संख्या 55 की 1693 वर्ग मीटर जमीन नजूल की है।
जानें क्या है नजूल भूमि
ब्रिटिश शासन काल के दौरान जब राजा-रजवाड़े अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाईयों में हार जाते थे, तब अंग्रेजों द्वारा उनकी जमीन को छीन लिया जाता था। इस प्रकार की जमीनों को ही नजूल सम्पत्ति कहा जाता है। हालांकि, भारत की आजादी के बाद ऐसी सम्पत्तियों पर संबंधित राज्य सरकारों के पास अधिकार चला गया। सरकार द्वराा ऐसी संपत्तियों का इस्तेमाल सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसमें अस्पताल, स्कूल और पंचायत शामिल है। इसके साथ ही ऐसे संपत्तियों का इस्तेमाल बड़े शहरों में हाउसिंग सोसायटी बनाने के लिए किया जाता है।
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