3 साल 8 महीने की देरी से यूपी पहुंची मालगाड़ी : भारत की सबसे लेट पहुंचने वाली ट्रेन, जानें क्या है दिलचस्प कहानी

भारत की सबसे लेट पहुंचने वाली ट्रेन, जानें क्या है दिलचस्प कहानी
UPT | 3 साल 8 महीने की देरी से यूपी पहुंची मालगाड़ी

Dec 10, 2024 11:46

इतिहास की सबसे लेट ट्रेन के बारें में जानकर हर कोई चौंक गया है। यह ट्रेन न तो 24 घंटे, न 48 घंटे, बल्कि पूरे 3 साल 8 महीने बाद अपने डेस्टिनेशन पर पहुंची थी...

Dec 10, 2024 11:46

Basti News : भारत में ट्रेन का लेट होना आम बात है। कभी त्यौहार के कारण, सर्दी में कोहरे के कारण अक्सर ट्रेन लोट हो जाती हैं। लेकिन इतिहास की सबसे लेट ट्रेन के बारें में जानकर हर कोई चौंक गया है। यह ट्रेन न तो 24 घंटे, न 48 घंटे, बल्कि पूरे 3 साल 8 महीने बाद अपने डेस्टिनेशन पर पहुंची थी। आइये जानते हैं भारत की सबसे लेट ट्रेन की दिलचस्प कहानी के बारे में।

यूपी के कारोबारी ने मंगवाई थी खाद
साल 2014 में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से उत्तर प्रदेश के बस्ती के लिए एक मालगाड़ी ट्रेन चली थी। यह ट्रेन 42 घंटे के सफर के बाद बस्ती पहुंचने वाली थी, लेकिन किसी कारणवश यह ट्रेन 3 साल 8 महीने और 7 दिन की देरी से 2018 में अपने गंतव्य तक पहुंची। दरअसल, बस्ती के व्यापारी रामचंद्र गुप्ता ने अपने कारोबार के लिए इंडियन पोटाश लिमिटेड से खाद मंगवाई थी। इस ट्रेन की इतनी लंबी देरी ने ट्रेनों की लेटलतीफी के इतिहास में एक अनोखा रिकॉर्ड बना दिया।



2014 में चली थी ट्रेन
यह मालगाड़ी विशाखापत्तनम से बस्ती के लिए 10 नवंबर 2014 को चली थी, जिसमें लगभग 1316 बोरियां खाद की भरी गई थीं, जिनकी कुल कीमत 14 लाख रुपये थी। ट्रेन को निर्धारित समय में बस्ती पहुंचना था, लेकिन यह ट्रेन तय समय पर अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाई। यह ट्रेन इतनी देर से चली कि बस्ती पहुंचने में उसे 3 साल 8 महीने और 7 दिन का समय लग गया। आखिरकार, यह मालगाड़ी 25 जुलाई 2018 को बस्ती पहुंच पाई। इस विलंब ने भारतीय रेल की लेटलतीफी की एक अभूतपूर्व मिसाल कायम की।

इस वजह से लेट हुई ट्रेन
यह माना जाता है कि ट्रेन को लंबे समय तक यार्ड में बेकार छोड़ दिया गया था, क्योंकि इसमें एक कोच या बोगी को यात्रा के लिए सही नहीं माना गया था। बस्ती के व्यापारी रामचंद्र गुप्ता ने विशाखापत्तनम स्थित इंडियन पोटाश लिमिटेड से अपने व्यवसाय के लिए 14 लाख रुपये के डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का ऑर्डर दिया था। 10 नवंबर 2014 को 1316 बोरियों से लदी यह मालगाड़ी अपनी यात्रा पर रवाना हुई। लेकिन जब ट्रेन समय के अनुसार अपने गंतव्य पर नहीं पहुंची, तो रामचंद्र गुप्ता ने शिकायत की। कई शिकायतों के बाद अधिकारियों को पता चला कि ट्रेन रास्ते में ही गायब हो गई थी। इसके बाद यह मामला सामने आया कि ट्रेन को यार्ड में छोड़ दिया गया था और इस तरह की गंभीर देरी का कारण सामने आया।

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