पिछले कुछ समय में इस जिले ने भेड़ियों के आतंक से लेकर, मुंबई के एक प्रमुख राजनीतिक हत्याकांड तक, और अब हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा तक, बहराइच ने कई अलग-अलग कारणों से चर्चा में रहने का रिकॉर्ड बना लिया है।
पहले भेड़िया का पसरा था खौफ : फिर शूटआउट से जुड़ गया नाम, अब सांप्रदायिक तनाव फैला... बहराइच में अब आगे क्या?
Oct 16, 2024 15:15
Oct 16, 2024 15:15
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भेड़ियों का आतंक
इस साल मार्च से जिले के हरदी थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत औराही में आदमखोर भेड़ियों ने दहशत फैलानी शुरू कर दी। शुरू में यह एक छोटी सी घटना लग रही थी, लेकिन जुलाई के बाद स्थिति बिगड़ती चली गई। लगभग 50 गांवों में भेड़ियों का आतंक फैल गया, जिसने स्थानीय जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया। इन खूंखार जानवरों ने एक विशेष पैटर्न अपनाया था - वे अक्सर घरों में सो रहे बच्चों को निशाना बनाते थे। यह रणनीति इतनी प्रभावी थी कि तीन महीने के भीतर, इन भेड़ियों ने दस लोगों की जान ले ली, जिनमें कई बच्चे भी शामिल थे। इसके अलावा, कई अन्य बच्चे गंभीर रूप से घायल हुए। इस आतंक ने स्थानीय समुदाय के दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। महिलाएं अपने बच्चों के साथ घरों के अंदर कैद हो गईं, जबकि पुरुषों को रात भर जागकर पहरा देना पड़ता था। कुछ परिवारों ने तो अपने बच्चों को सुरक्षा के लिए दूसरे शहरों में रिश्तेदारों के पास भेज दिया। इस स्थिति से निपटने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने कई कदम उठाए।
वन मंत्री अरुण कुमार सक्सेना ने खुद बहराइच में कैंप किया। वन विभाग की कई टीमें भेड़ियों को पकड़ने के लिए लगाई गईं। आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए, ड्रोन मैपिंग का सहारा लिया गया। इन प्रयासों के फलस्वरूप, पांच भेड़ियों को पकड़ा गया और उन्हें गोरखपुर और लखनऊ के चिड़ियाघरों में भेज दिया गया। हालांकि, एक लंगड़ा भेड़िया अभी भी फरार है, जो स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस बीच, कुछ ग्रामीणों ने मामले को अपने हाथ में लेते हुए कई भेड़ियों को मार डाला। यह घटनाक्रम मनुष्य और वन्यजीव के बीच संघर्ष का एक जीवंत उदाहरण बन गया, जो पर्यावरण संरक्षण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को रेखांकित करता है।
बाबा सिद्दीकी हत्या कांड का कनेक्शन
जैसे ही बहराइच भेड़ियों के आतंक से उबर रहा था, एक नया संकट सामने आया। 12 अक्टूबर को मुंबई में हुए एक बड़े राजनीतिक हत्याकांड ने बहराइच को फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) के नेता और पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में शामिल तीन शूटरों में से दो बहराइच के कैसरगंज थाना क्षेत्र के गंडारा गांव के निवासी निकले। इन दो शूटरों की पहचान धर्मराज कश्यप और शिवकुमार गौतम के रूप में हुई। जहां धर्मराज को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, वहीं शिवकुमार अभी भी फरार है। यह खुलासा बहराइच के लिए एक बड़ा झटका था, जो अपनी शांतिपूर्ण छवि को बनाए रखने की कोशिश कर रहा था।
इस घटना ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को सतर्क कर दिया। मुंबई पुलिस और उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने संयुक्त रूप से जांच शुरू की। इस दौरान, पुलिस ने बहराइच से दो अन्य युवकों को भी हिरासत में लिया, जिनमें धर्मराज का छोटा भाई अनुराग और एक अन्य स्थानीय युवक हरीश शामिल थे। इस घटना ने यह सवाल भी खड़ा किया कि कैसे एक छोटे से शहर के युवा इतने बड़े अपराध में शामिल हो गए।
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मूर्ति विसर्जन के दौरान हिंसा
जैसे ही बहराइच मुंबई हत्याकांड के झटके से उबर रहा था, एक नया संकट सामने आ गया। 22 अक्टूबर को, दशहरा के अगले दिन, हरदी थाना इलाके की महसी तहसील के महराजगंज कस्बे में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान हुए एक विवाद में रामगोपाल मिश्रा नाम के एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना आग में घी का काम कर गई। देखते ही देखते, शहर के कई हिस्सों में हिंसा भड़क उठी। शिवपुर, राजीचौराहा, भगवानपुर, और खैरा बाजार जैसे इलाकों में व्यापक तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं।
उपद्रवियों ने वाहनों को आग के हवाले कर दिया, शोरूम, अस्पताल, दुकानों और घरों में तोड़फोड़ की। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद मामले पर नजर रखनी शुरू कर दी। उनके निर्देश पर, एडीजी कानून-व्यवस्था अमिताभ यश, गृह सचिव संजीव गुप्ता, एडीजी जोन गोरखपुर केएस प्रताप कुमार समेत कई वरिष्ठ अधिकारी तत्काल मौके पर पहुंचे। प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए प्रभावित क्षेत्रों में पीएसी और पुलिस के जवानों को तैनात किया। चौराहों पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया। एहतियात के तौर पर इंटरनेट सेवाएं भी बाधित कर दी गईं। इन कदमों के चलते, धीरे-धीरे स्थिति पर काबू पाया जा सका।
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