गोरखपुर में आयोजित एक सम्मेलन में, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष ने सामाजिक समरसता पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारत की समरसता की जड़ें हमारे ऋषियों और संतों की परंपराओं में गहराई से जुड़ी हैं। गोरक्षपीठ और महायोगी गोरखनाथ की परंपरा भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करती है।
नाथपंथ की भूमिका पर सम्मेलन : गोरक्षपीठ और महायोगी गोरखनाथ की परंपरा का सामाजिक समरसता में महत्वपूर्ण योगदान
Sep 17, 2024 16:52
Sep 17, 2024 16:52
मार्गदर्शक है। भारत की शक्ति और समर्थन विश्व की आवश्यकता है, और इसके लिए सामाजिक समरसता का होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत की समरसता की जड़ें हमारे ऋषियों और संतों की परंपराओं में गहराई से जुड़ी हैं, और हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। गोरक्षपीठ और महायोगी गोरखनाथ की परंपरा भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करती है।
महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष किया
प्रो. विश्वकर्मा ने महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के योगदान की सराहना की, जिन्होंने जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को भी सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया, जिसमें दलित और वंचित वर्गों को आगे लाकर समाज को एक सूत्र में पिरोया गया।
सम्मेलन के तीसरे दिन का आयोजन
महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर किया गया। इस सम्मेलन का मुख्य विषय 'सामाजिक समरसता: महायोगी गोरखनाथ और नाथपंथ के विशेष संदर्भ में' था। इसमें नाथपंथ की ऐतिहासिक भूमिका पर चर्चा की गई, जो सामाजिक समरसता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण रही है।
प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि भारत में सामाजिक चिंतन का एक दौर था जब विदेशी विद्वान यहां के दर्शन का अध्ययन करने आते थे। लेकिन आज हमें सामाजिक समरसता पर अलग से विचार करने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। उन्होंने बताया कि बाहरी आक्रमण और धर्म परिवर्तन के साथ-साथ समाज की संत परंपरा से दूर हो जाने की वजह से सामाजिक समरसता कमजोर हुई है।
महायोगी गोरखनाथ ने सामाजिक विखंडन के समय में सामाजिक पुनर्जागरण किया था
सम्मेलन में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की डॉ. पद्मजा सिंह ने नाथपंथ की समरसता की जड़ों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि महायोगी गोरखनाथ ने सामाजिक विखंडन के समय में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद किया था। नाथपंथ की परंपरा ने जाति, पंथ, और वर्ग भेदभाव को मिटाने का कार्य किया है, जो आज भी समाज में दृष्टिगत होता है।
सतुआ बाबा ने नाथपंथ की विशेषता को बताते हुए कहा कि यह पंथ भेदभाव रहित है और समाज को जोड़ने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि नाथपंथ ने समाज को सही दिशा दी है और इसे आज भी संतों द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है।
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