इस जिले में देवरहा बाबा की गाथा के साथ स्वतंत्रता संग्राम की कड़ियां भी जुड़ी हैं। जहां एक 14 वर्ष का बालक देश का झंडा लहराते हुए शहीद हो जाता है। इस जिले की अपनी पौराणिक गाथाएं और कहानियां हैं।
देवरिया का इतिहास : देवरहा बाबा की तपोस्थली, जानिए दिलचस्प इतिहास
Dec 20, 2023 15:21
Dec 20, 2023 15:21
- देवरहा बाबा की तपोस्थली, देवरिया का जानिए दिलचस्प इतिहास
- देवरिया जिले का इतिहास
जिले के नाम को लेकर मान्यताएं
जानकारी के अनुसार देवरिया जनपद 16 मार्च 1946 को गोरखपुर जनपद का कुछ पूर्व-दक्षिण भाग काटकर नया जिला बनाया गया था। इस जिले को लेकर ऐसी मान्यत है की देवरिया नाम, 'देवारण्य' या शायद 'देवपुरिया' से उत्पन्न हुआ है। आधिकारिक राजपत्रों के मुताबिक जनपद का नाम 'देवरिया' इसके मुख्यालय के नाम से लिया गया है और 'देवरिया' शब्द का मतलब आमतौर पर एक ऐसा स्थान है, जहां मंदिर हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवारण्य कहा जाने वाला देवरिया जनपद का अस्तित्व सीधे सिद्धपीठ देवरही मंदिर से जुड़ा है। यह पीठ प्राचीनकाल से जनपदवासियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ माता के दर्शन और आशीर्वाद के लिए उमड़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पीठ देवी सती से जुड़ा है। यह शक्तिपीठ पिछले 200 वर्षों से पौहारी महाराज की देखरेख में संचालित हो रहा है।
समय के साथ बदलता रहा नाम
यहां मौजूद मंदिर व पौहारी महराज से जुडे केके पांडेय के अनुसार वाल्मिकी रामायण में सरयू नदी के किनारे इस भूमि को देवाण्य कहा गया है। साधु-संत, ऋषि-मुनी और देवताओं ने यज्ञ करके इस भूमि का शोधन किया। इसलिए यज्ञभूमि के नाम से विख्यात देवारण्य बदलते समय के साथ देवार, देवरिया और देउरिया कहा जाने लगा। बताते हैं कि प्राचीनकाल में यह देवारण्य जंगल के रूप में था। बताया जाता है कि शहर के उत्तरी तरफ जंगलों में खुदाई के दौरान देवी के दो चरण प्राप्त हुए थे। बाद में यहां उन चरणों की पूजा-अर्चना एक पिण्डी के रूप में की जाने लगी। देखा गया कि धीरे-धीरे देवी के चरणों में चमत्कार होने लगा। वहीं इस पीठ की प्रसिद्धि चारों तरफ फैलने लगी और यह देवरही शक्तिपीठ कहलाया। इसके बाद इसकी मान्यता भी बढ़ती गई।
ऐतिहासिक मान्यता
बताते हैं कि देवी के चरणों की पूजा सैकड़ों वर्षों से होती आ रही है। वहीं देवी देवरही का विग्रह उन चरणों पर स्थापित किया गया। जहां संत मौनी बाबा ने काफी दिनों तक देवी की पूजा-अर्चन की। धीरे-धीरे यह पीठ पूर्वांचल और पड़ोसी प्रांत बिहार में काफी लोकप्रिय हो गया। चैत्र और शारदीय नवरात्र के दिनों में यहां मेले जैसा माहौल होता है। शुक्रवार और सोमवार को यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर बीस बीघा से अधिक में क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसके भव्य द्वार से ही देवी देवरही मंदिर की पौराणिकता का पता चलता है। प्राचीन समय में प्रथम पौहारी जी महाराज श्री लक्ष्मी नारायण दास जी ने यहां परिसर में तालाब, गौशाला, यज्ञशाला, पाकशाला का निर्माण कराय था। भक्त इस पीठ के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं। यहां सत्यनारायण की कथा से लेकर मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह तथा धार्मिक अनुष्ठान भी कराते हैं। सुंदर बागीचा, पोखरा के अतिरिक्त यहां ब्रह्मस्थान, श्रीराम दरबार तथा भगवान भोलेनाथ का भी मंदिर स्थापित है।
देवरिया का दिलचस्प इतिहास
इस जिले का इतिहास बताता है कि इसका वर्तमान क्षेत्र 'कौशल राज्य' का हिस्सा था। जो प्राचीन 'आर्य संस्कृति' का एक प्रमुख केंद्र रहा था। इस क्षेत्र से जुड़ी कई काल्पनिक कथाओं के अलावा इस जिले के कई स्थानों पर मिले खगोल-ऐतिहासिक जीवाश्मों से ये भी पता चलता है, कि यहां बहुत पहले एक विकसित और संगठित समाज था। जिले का प्राचीन इतिहास रामायण युग से संबंधित है, जब भगवान राम ने अपने बड़े पुत्र 'कुश' को कुशावती का राजा नियुक्त किया था, जिसे वर्तमान में कुशीनगर के नाम से जाना जाता है।
महाभारतकालीन इतिहास
इसका प्रारंभिक इतिहास यह भी बताता है कि महाभारत काल से पहले यह क्षेत्र चक्रवर्ती सम्राट 'महासुदत्सन' से जुड़ा था। उनका राज्य 'कुशीनगर' सुविकसित एवं समृद्ध था। निकट में ही एक विशाल वन क्षेत्र था, जिसे 'महावन' के नाम से जाना जाता था। यह क्षेत्र मौर्य शासकों, गुप्त शासकों और भर शासकों के नियंत्रण में था। फिर 1114 से 1154 तक यह गढ़वाल शासक 'गोविंद चंद्र' के नियंत्रण में आ गया। देवरिया जिले का मध्यकालीन इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है। इसमें कहा गया है कि यह क्षेत्र संभवतः अवध शासकों या बिहार के मुस्लिम शासकों के अधीन था । इस क्षेत्र पर दिल्ली के सबसे पुराने शासकों, सुल्तान, निज़ाम या खिलजी का बहुत कम नियंत्रण था। इसके अलावा, मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमण के दौरान इस क्षेत्र का कोई वर्णन नहीं मिलता।स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा इतिहास
इस क्षेत्र से जुड़े आधुनिक इतिहास में कई स्थानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें बैकुंठपुर, गौरा बरहज, रुद्रपुर, हाटा, कसिया, गौरीबाजार, कप्तानगंज, उधोपुर, तमकुही, बसंतपुर धूसी आदि शामिल हैं। महात्मा गांधी ने 1920 में देवरिया और पडरौना की सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया था। 1931 में जिले में सरकार और जमींदारों के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू हुआ। कई और लोग स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस में शामिल हुए और जिले के कई स्थानों पर मार्च किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देवरिया जिले ने सक्रिय भूमिका निभाई। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बालक राम चंद्र विद्यार्थी 14 वर्ष की उम्र में कचहरी पर तिरंगा फहराते हुए शहीद हो गए थे।Also Read
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