कुशीनगर का केला अब केवल स्थानीय बाजारों तक सीमित नहीं है। यह दिल्ली, मेरठ, गाजियाबाद, चंडीगढ़, लुधियाना और भटिंडा जैसे दूर-दराज के शहरों तक पहुंच रहा है। यहां तक कि नेपाल और बिहार के लोग भी कुशीनगर के केले के स्वाद के दीवाने हो गए हैं। क्या आपने इसका स्वाद चखा है, अगर नहीं तो इसे जरूर खाइएगा।
एक जिला एक उत्पाद : कश्मीर से लेकर पंजाब तक लोगों का रास आ रही कुशीनगर के केले की मिठास
Oct 09, 2024 12:09
Oct 09, 2024 12:09
- दिल्ली, मेरठ, गाजियाबाद, चंडीगढ़, लुधियाना और भटिंडा तक होती है आपूर्ति
- गोरखपुर मंडल से संबद्ध सभी जिलों और कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम
- नेपाल और बिहार के लोग भी बुद्ध की धरती के केले के मुरीद
16 हजार हेक्टयर रकबे पर हो रही केले की खेती
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी-9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है। जिले में लगभग 16000 हेक्टेयर में केले की खेती हो रही है।
ओडीओपी घोषित होने के बाद बढ़ा केले की खेती का क्रेज
योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का एक जिला एक उत्पाद घोषित करने के बाद केले की खेती और प्रसंस्करण के जरिये सह उत्पाद बनाने का क्रेज बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले का जूस, चिप्स, आटा, अचार और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया एवम चप्पल आदि भी बना रहीं हैं। इनका खासा क्रेज और मांग भी है।
17 साल में 32 गुना बढ़ा खेती का रकबा
अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर रकबे में केले की खेती होती होती थी। अब यह 32 गुना बढ़कर करीब 16000 हेक्टेयर तक हो गया है। जिले का ओडीओपी घोषित होने के बाद इसके प्रति रुझान और बढ़ा है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर करीब 31 हजार रुपये का अनुदान भी किसान को देती है।
कुशीनगर के केले को लोकप्रिय बनाने में गोरखपुर की अहम भूमिका
कुशीनगर, गोरखपुर मंडल में आता है। यहां फलों और सब्जियों की बड़ी मंडी है। शुरू में कुशीनगर के कुछ किसान केला बेचने यहां की मंडी में आते थे। फल की गुणवत्ता अच्छी थी। लिहाजा गोरखपुर के कुछ व्यापारी कुशीनगर के उत्पादक क्षेत्रों से जाकर सीधे किसानों के खेत से केला खरीदने लगे। चूंकि सेब, किन्नू और पलटी के माल के कारोबार के लिए गोरखपुर के व्यापारियों का कश्मीर, पंजाब और दिल्ली के व्यापारियों से संबंध था, लिहाजा यहां के कारोबारियों के जरिये कुशीनगर के केले की लोकप्रियता अन्य जगहों तक पहुंच गई। मौजूदा समय में कुशीनगर का केला कश्मीर, पंजाब के भटिंडा, लुधियाना, चंडीगढ़, भटिंडा, लुधियाना, कानपुर, दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ समेत कई बड़े शहरों तक जाता है।
प्रशासन ने की थी केले की खेती को उद्योग का दर्जा देने की पहल
केले की खेती की ओर जिले के किसानों का झुकाव देख पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने केले को खेती को उद्योग का दर्जा दिलाने की कवायद शुरू की थी। इस बाबत उन्होंने बैंकर्स की मीटिंग भी की थी। साथ ही केन्द्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत केला उत्पादकों को आसान शर्तों पर ऋण मुहैया कराने के निर्देश दिए थे।
दशहरा और छठ होता है बिक्री का मुख्य सीजन
सिरसियां दीक्षित निवासी मुरलीधर दीक्षित, भरवलिया निवासी मृत्युंजयय मिश्रा, विजयीछपरा निवासी शिवनाथ कुशवाहा केले के बड़े किसान हैं। देश और प्रदेश के कई बड़े शहरों में कमीशन एजेंटों के जरिये इनका केला जाता है। इन लोगों के अनुसार नवरात्र के ठीक पहले त्योहारी मांग की वजह से कारोबार का पीक सीजन होता है।
स्थानीय स्तर पर रोजगार भी दे रहा केला
केले की खेती श्रमसाध्य होती है। रोपण के लिए गड्ढे खोदने, उसमें खाद डालने, रोपण, नियमित अंतराल पर सिंचाई, फसल संरक्षा के उपाय, तैयार फलों के काटने उनकी लोडिंग,अनलोडिंग और परिवहन तक खासा रोजगार मिलता है।
फरवरी और जुलाई रोपण का उचित समय
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई-अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।
ये भी पढ़ें:-चीनी लहसुन सेहत के लिए खतरनाक : इसके आयात पर क्यों उठ रहे सवाल? नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते भारत ला रहे हैं तस्कर
ये भी पढ़ें:- मखाना की खेती से बढ़ेगी पूर्वी यूपी के किसानों की आय : योगी सरकार प्रोत्साहन के रूप में प्रति हेक्टेयर 40 हजार का अनुदान देगी
Also Read
9 Oct 2024 05:52 PM
खबर गोरखपुर से है जहां नवरात्रि दुर्गा पूजा और दशहरा पर्व को सकुशल संपन्न करने के लिए कोतवाली थाने पर एसपी सिटी अभिनव त्यागी और... और पढ़ें