गोरखपुर में सम्मेलन का चौथा दिन : प्रो. पांडेय ने कहा-भारतीय संस्कृति में ही मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन

प्रो. पांडेय ने कहा-भारतीय संस्कृति में ही मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन
UPT | समसामयिक विषयों पर सम्मेलन

Sep 18, 2024 15:44

युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं पुण्यतिथि और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित सम्मेलन के चौथे दिन "संस्कृत और भारतीय संस्कृति" विषय पर एक महत्वपूर्ण चर्चा आयोजित की गई। इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने अपने विचार रखे।

Sep 18, 2024 15:44

Gorakhpur News : काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने कहा कि यूनान, रोम, मिस्र, यूरोप समेत दुनिया के किसी भी देश के धर्मग्रंथ या इतिहास में जीवन पद्धति का उल्लेख नहीं है। जबकि संस्कृत से प्रस्फुटित वेदों, पुराणों से बनी भारतीय संस्कृति में ही मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन है। भारतीय संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है जिसमें परिवार, समाज, राष्ट्र और यहां तक कि दुश्मनों के प्रति मर्यादा बताई गई है। अमर्यादित आचरण तभी होता है जब हम अपनी संस्कृति से विमुख होते हैं। मर्यादित आचरण का भान कराने वाली हमारी संस्कृति संस्कृतमूलक है और हमें अपनी भारतीय संस्कृति और संस्कृत पर गर्व होना चाहिए। 

प्रो. पांडेय युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं पुण्यतिथि और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित समसामयिक विषयों पर सम्मेलनों की श्रृंखला के चौथे दिन बुधवार को 'संस्कृत और भारतीय संस्कृति' विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत को पढ़ने और समझने वाला व्यक्ति कभी भारतीय संस्कृति को नहीं छोड़ सकता। क्योंकि, संस्कृत का गहरा प्रभाव है और संस्कृत से बनी भारतीय संस्कृति मन को पवित्र करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति विकास और ज्ञान के सम्मिलित रूप को लेकर आगे बढ़ती है। यहां ज्ञान और विज्ञान एक साथ चले हैं। अध्यात्म और धर्म भारतीय संस्कृति के मूल अंग हैं।

भारतीय संस्कृति ही मार्गदर्शक
प्रो. पांडेय ने कहा कि संस्कृति को समझने के लिए हमें प्रकृति और विकृति को भी समझना पड़ेगा। उदाहरण के लिए भूख लगना प्रकृति है। भूख लगने पर जब समूह में लोगों का भोजन कोई एक ही छीन ले तो यह विकृति होगी जबकि सबके साथ मिल बांटकर खाना या फिर खुद भूखे रहकर अन्य जरूरतमंद लोगों को खिला देना संस्कृति कही जाएगी। यही भाव भारतीय संस्कृति का है। उन्होंने कहा कि आज जब पूरा विश्व अर्थवाद और बाजारवाद की चपेट में है, दूसरों का अधिग्रहण न करने का ज्ञान देने वाली भारतीय संस्कृति ही मार्गदर्शक नजर आती है। इसलिए आज पूरी दुनिया भारतीय संस्कृति का अनुपालन करने के लिए लालायित है। 

संस्कृति ने ही भारत को स्थायी गुलामी से बचाया 
प्रो. पांडेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों के कारण ही भारत को कोई भी स्थाई रूप से गुलाम नहीं बना सका। भारतीयों को उनकी संस्कृति से दूर करने के लिए विदेशी आक्रमणकारियों ने सबसे पहले संस्कृत ज्ञान परंपरा को मिटाने का प्रयास किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति इसका उदाहरण है, क्योंकि वह जानता था कि जब तक भारतीयों के घरों में संस्कृत है, तब तक भारत को हमेशा के लिए गुलाम नहीं बनाया जा सकता।

एकाकार रूप में हैं संस्कृत और भारतीय संस्कृति : डॉ. लक्ष्मी मिश्रा 
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर एवं समन्वयक डॉ. लक्ष्मी मिश्रा ने सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि भारतीय सभ्यता एवं ज्ञान में संस्कृत और संस्कृति को कभी अलग करके नहीं देखा जा सकता। हमारे सभी वेद, वेदांग एवं पुराण, दर्शन एवं सभी वैदिक विद्याएं संस्कृत में ही लिखी गई हैं। ये वैदिक विद्याएं हमें संस्कृति प्रदान करती हैं। इसलिए संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति की जननी है। संस्कृति का सीधा संबंध संस्कार से है। संस्कृति को जानना अर्थात संस्कृति से जुड़ना और यदि संस्कृति से जुड़ना है तो हमें संस्कृत को आत्मसात करना ही होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत सृजित भारतीय संस्कृति मुख्यतः आध्यात्मिकता पर केंद्रित है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने भी इसी आध्यात्मिक संस्कृति को जन-जन से जोड़ने का व्यापक अभियान चलाया। डॉ. मिश्रा ने कहा कि संस्कृत और भारतीय संस्कृत के पोषण में गोरक्षपीठ और इसके श्रीमहंतों का महनीय योगदान रहा है। यह संस्कृत और संस्कृति की ध्वजवाहक पीठ है। उन्होंने कहा कि भारत में जब संस्कृत को त्रिभाषा से पृथक किया जा रहा था तब इस पीठ की अगुवाई में इस कृत्य का मुखर विरोध किया गया। संस्कृत और संस्कृति के उन्नयन में इस पीठ के महंत दिग्विजयनाथ जी, महंत अवेद्यनाथ जी और वर्तमान में योगी आदित्यनाथ जी की भूमिका अनिर्वचनीय है। 

संस्कृत से प्रस्फुटित हुई है भारतीय संस्कृति : प्रो. कमलचंद्र 
सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के पूर्व आचार्य प्रो. कमलचचंद्र योगी ने कहा कि आज एक बार फिर पूरा विश्व भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की महत्ता को स्वीकार कर रहा है। यह आध्यात्मिक संस्कृति, संस्कृत से ही प्रस्फुटित हुई है। संस्कृत और भारतीय संस्कृति को कभी विलग नहीं किया जा सकता है। संस्कृत ने न सिर्फ अध्यात्म बल्कि जीवन के भौतिक पक्ष का भी मार्गदर्शन करने वाले ज्ञान का प्रादुर्भाव किया है। आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टिकोण से यदि भारतीय संस्कृति दुनिया में बहुमूल्य है तो इसका श्रेय भी संस्कृत को जाता है। उन्होंने कहा कि जब पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण का दौर शुरू हुआ तो गोरक्षपीठ ने संस्कृत और भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का बीड़ा उठाया। 

सवाई, आगरा से आए ब्रह्मचारी दासलाल ने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है। भारतीय संस्कृति, संस्कृत पर ही आश्रित है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एक माला के रूप में है जिसमे वेद, वेदांग, पुराण आदि मनके हैं तो इन मनकों को माला में पिरोने वाली संस्कृत धागे की भूमिका में है।  सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह संचालन माधवेंद्र राज, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी ने किया। 

इस अवसर पर उपस्थित रहे
इस अवसर पर दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महंत सुरेशदास, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी डॉ. विलासनाथ, कटक उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ, अयोध्या से आए महंत राममिलनदास, काशी से पधारे महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा, नीमच मध्य प्रदेश से आए योगी लालनाथ, देवीपाटन शक्तिपीठ, तुलसीपुर के महंत मिथलेशनाथ, जबलपुर से आए महंत नरसिंह दास, कालीबाड़ी के महंत रविन्द्रदास, दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. ओमप्रकाश सिंह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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