'शमामा', जिसे जड़ी-बूटियों और गरम मसालों का संगम माना जाता है। खास बात यह है कि शमामा न केवल ठंड से बचाने में मदद करता है बल्कि सर्दी-जुकाम जैसे मौसमी रोगों को भी दूर करने का गुण...
सर्दियों में बढ़ी कन्नौज के 'शमामा' इत्र की मांग : जड़ी-बूटी और खास मसालों से बनती ये खुशबू, 56 देशों में है मांग
Jan 07, 2025 14:49
Jan 07, 2025 14:49
जड़ी-बूटियों और मसालों से तैयार होती है खास खुशबू
शमामा को बनाने में 35 प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियां और मसाले इस्तेमाल होते हैं। इनमें जायफल, जावित्री, दालचीनी, केसर, नागरमोथा, जटामासी, काली मिर्च, कपूर कचरी, सुगंधमंथरी और बालछड़ जैसी सामग्री शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियां मुख्यत उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दक्षिण भारत और विदर्भ क्षेत्र से लाई जाती हैं। यह इत्र पारंपरिक "पुरातन आसवन विधि" से बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब एक महीने का समय लगता है। जिससे इसकी गुणवत्ता और अनूठी खुशबू सुनिश्चित होती है।
ठंड में राहत देने वाला इत्र
शमामा की तासीर गर्म होती है। जिससे यह ठंड के मौसम में बेहद उपयोगी साबित होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. सलीम बताते हैं कि शमामा की खुशबू ठंड के एहसास को कम करती है और सर्दी-जुकाम जैसे मौसमी रोगों को दूर करने में मदद करती है। साथ ही यह मानसिक तनाव (एंजाइटी) और नींद न आने की समस्या को दूर करने में भी सहायक है। कई खाड़ी देशों में इसे सेक्सवर्धक औषधि के रूप में भी खाया जाता है।
इतिहास में शमामा का महत्व
इत्र निर्माता रंजन बाजपेयी बताते हैं कि शमामा का इतिहास चार हजार साल पुराना है। इसे पहली बार कन्नौज में ही तैयार किया गया था। तब इसे औषधीय गुणों के कारण इस्तेमाल किया जाता था। धीरे-धीरे इसकी अनूठी खुशबू और औषधीय लाभों ने इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाई। आज यह इत्र कई प्रकार की ग्रेडिंग के साथ उपलब्ध है, जैसे कि शमामा रूह-960, शमामा अतर-916 और शमामा गुलबदन-920 हैं।
56 देशों में निर्यात
शमामा की सबसे अधिक मांग खाड़ी देशों में है। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 2 लाख से 2.5 लाख रुपये प्रति किलो तक है। इसे तैयार करने में लगने वाले लंबे समय और जड़ी-बूटियों की दुर्लभता के कारण इसकी कीमत ऊंची होती है। आज यह इत्र न केवल व्यक्तिगत उपयोग के लिए, बल्कि पान मसाले, तंबाकू उत्पादों और आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग किया जाता है।
आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व
कन्नौज के इत्र उद्योग का केंद्रबिंदु बना शमामा आज न केवल शहर की पहचान है, बल्कि यहां के हजारों परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत भी है। हर साल करोड़ों रुपये का शमामा निर्यात किया जाता है। जिससे यह भारत के इत्र उद्योग को वैश्विक स्तर पर मजबूती प्रदान करता है। शमामा इत्र की बढ़ती मांग न केवल इसकी औषधीय और सांस्कृतिक विशेषताओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक जरूरतों का मेल कितना प्रभावी हो सकता है। ठंड के मौसम में यह इत्र जहां सर्दी से राहत देता है, वहीं इसकी सुगंध लोगों को प्राकृतिक और प्राचीन विरासत से जोड़ती है।
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