राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रवक्ता कमल गौतम को भारी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा। कमल गौतम ने शाह के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि बाबा साहेब को भगवान माना जाता है और उनका यह बयान सही नहीं है...
अमित शाह के बयान पर टिप्पणी करना पड़ा भारी : जयंत चौधरी ने सभी प्रवक्ताओं को किया बर्खास्त, जल्द बनेगा नया पैनल
Dec 23, 2024 15:13
Dec 23, 2024 15:13
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के बाद लिया फैसला
बता दें कि रालोद बीजेपी का सहयोगी दल है और कमल गौतम के बयान ने पार्टी को विवाद में डाल दिया। कमल गौतम ने गृह मंत्री अमित शाह से माफी की मांग की थी और साथ ही यह भी कहा था कि मंदिरों में अत्याचार हो रहा है, लेकिन सरकार इस पर कार्रवाई नहीं कर रही है। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बीजेपी और जयंत चौधरी को ट्रोल किया जाने लगा, जिससे रालोद को सार्वजनिक रूप से फजीहत का सामना करना पड़ा। यह स्थिति पार्टी के लिए असहज हो गई और इसके बाद प्रवक्ताओं को पद से हटाने का निर्णय लिया गया।
अमित शाह ने आंबेडकर को लेकर दिया बयान
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 17 दिसंबर को राज्यसभा में संविधान पर चर्चा करते हुए डॉ. आंबेडकर का नाम लेकर कुछ विवादास्पद टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि आंबेडकर का नाम आजकल बहुत लिया जा रहा है, लेकिन यह केवल एक फैशन बन गया है। अमित शाह ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि आंबेडकर का नाम लेने से कोई फायदा नहीं है, अगर उनके प्रति वास्तविक भावनाएं नहीं हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आंबेडकर ने क्यों देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा दिया था।
आंबेडकर के इस्तीफे का बताया कारण
गृह मंत्री ने आगे कहा कि आंबेडकर ने अपनी असहमति कई मुद्दों पर जताई थी, जैसे कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ व्यवहार, सरकार की विदेश नीति और अनुच्छेद 370। उन्होंने कहा कि आंबेडकर को जो वादे किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए और इसी कारण उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दिया। शाह ने आंबेडकर के इस्तीफे की वजहों को विस्तार से बताया और इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय के रूप में प्रस्तुत किया।
नेहरू के पत्र का किया जिक्र
अमित शाह ने आंबेडकर के इस्तीफे से जुड़ा एक पत्र भी पढ़ा, जो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखा गया था। इस पत्र में नेहरू ने कहा था कि आंबेडकर और राजाजी जैसे महान व्यक्तित्वों के मंत्रिमंडल छोड़ने से सरकार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। यह टिप्पणी उस समय के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसमें आंबेडकर के योगदान और उनके इस्तीफे के कारणों पर चर्चा की गई।
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