लोकसभा चुनाव में दांव-पेंच का खेल तेजी से चल रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक जमीन रही लखनऊ संसदीय सीट पर नामांकन के अंतिम दिन अचानक लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.आशुतोष वर्मा ने सपा प्रत्याशी के रूप में परचा दाखिल कर दिया। उनके साथ सपा का कोई नेता नहीं था, वह कुछ समर्थकों के साथ कलेक्ट्रेट स्थित नामांकन कक्ष पहुंचे थे। फार्म ए-बी भी दाखिल किया है।
खेल में खेलः सपा से डॉ.आशुतोष ने दाखिल किया परचा, विधायक रविदास के नामांकन पत्र में थी खामियां
May 03, 2024 16:11
May 03, 2024 16:11
लोकसभा चुनाव में दांव-पेंच का खेल तेजी से चल रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक जमीन रही लखनऊ संसदीय सीट पर नामांकन के अंतिम दिन अचानक लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.आशुतोष वर्मा ने सपा प्रत्याशी के रूप में परचा दाखिल कर दिया। उनके साथ सपा का कोई नेता नहीं था, वह कुछ समर्थकों के साथ कलेक्ट्रेट स्थित नामांकन कक्ष पहुंचे थे। फार्म ए-बी भी दाखिल किया है। सूत्रों का कहना है कि सपा के अधिकृत प्रत्याशी व लखनऊ मध्य के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने दो दिन पहले जब लखनऊ संसदीय क्षेत्र से नामांकन किया तो उसमें कई खामियां रह गयी थीं। जिससे परचा खारिज होने की आशंका हो गई थी। इसकी भनक पर सपा की ओर से नया नामांकन कराया गया है। सपा पर यह आरोप लगता रहा है कि उसने देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने बहुत कमजोर प्रत्याशी दिया है। अब उसके अधिकृत प्रत्याशी रविदास मेहरोत्रा के नामांकन में खामियों का खुलासा होने के बाद सपा किसी नये आरोप में घिरती इससे पहले ही आनन-फानन में बैकअप प्लान के तहत आशुतोष वर्मा का परचा दाखिल कराया गया है।
कौन हैं डॉक्टर आशुतोष
डॉ. आशुतोष वर्मा बच्चों के डॉक्टर हैं। समाजवादी पार्टी में प्रवक्ता हैं। अखिलेश यादव की कोर टीम के सदस्य है। डॉ. आशुतोष की पत्नी डॉ. सीमा सिंह हैं। दो बेटियां हैं। डालीगंज मनकामेश्वर मंदिर के पास निवास स्थान है। वह लंबे समय से समाज सेवा कर रहे हैं। लखनऊ में इनकी छवि काफी बेहतर है। इनकी पत्नी सीमा सिंह भी निकाय चुनाव लड़ चुकी हैं। वह पिछड़ी जाति के हैं। लखनऊ में पिछड़ी जाति के मतदाताों की संख्या अच्छी खासी है।
कौन हैं रविदास मेहरोत्रा
लखनऊ मध्य से विधायक रविदास मेहरोत्रा समाजवादी पार्टी की बुनियाद के समय के नेता हैं। उन्होंने लखनऊ में पटरी दुकानदारों, सर्वहारा वर्ग का नेता माना जाता रहा है। वह लखनऊ मध्य से तीन बार विधायक होते रहे हैं। वर्ष 2012 की अखिलेश यादव सरकार में उन्हें मंत्री पद मिला था, जिसमें वह काफी विवादों में घिर गये थे। यहीं सवाल उठ रहा है कि इतना लंबा संसदीय जीवन होने के बाद भी उनके नामांकन में खामियां कैसे रह गईं।
दो नामांकन से क्या होगा
नियमों के मुताबिक एक दल से अगर दो लोग नामांकन कर देते हैं तो अंतिम में नामांकन करने वाले व्यक्ति को दलीय प्रत्याशी मान लिया जाता है। इसके लिए पार्टी के अध्यक्ष की ओर से एक पत्र निर्वाचन अधिकारी को लिखा जाता है। परन्तु अगर बाद में नामांकन करने वाला अपना परचा वापस ले लेता है तो पहले वाले को दलीय सिबंल दे दिया जाता है। नामांकन पत्रों की जांच और नाम वापसी तक यह असमंजस बना रहेगा कि लखनऊ से सपा का अधिकृत प्रत्याशी कौन है।
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