इस व्रत में केवल पुत्रों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण परिवार की सुरक्षा और कल्याण की प्रार्थना की जाती है। माताएं इस पावन दिन पर अपनी संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
जितिया व्रत 2024 : माताएं संतान की दीर्घायु के लिए करती हैं निर्जला व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व
Sep 23, 2024 13:44
Sep 23, 2024 13:44
जितिया व्रत का धार्मिक-पौराणिक महत्व
जीवित्पुत्रिका(जितिया) व्रत की जड़ें गहरे धार्मिक और पौराणिक कथाओं में समाई हैं। मान्यता के अनुसार, यह व्रत महादानवीर राजा जीमूतवाहन की कहानी से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार जीमूतवाहन एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा थे जिन्होंने अपनी प्रजा और नाग जाति की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था। जब गिद्धराज गरुड़ प्रतिदिन नागों का भक्षण कर रहे थे, तो जीमूतवाहन ने स्वयं की बलि देकर नागों की रक्षा की। उनके इस महान त्याग के प्रतीकस्वरूप ही माताएं यह व्रत करती हैं ताकि उनकी संतानें हर प्रकार के संकट से सुरक्षित रहें और दीर्घायु प्राप्त करें।
जितिया व्रत की तिथि-समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12:38 बजे शुरू होगी और इसका समापन 25 सितंबर को दोपहर 12:10 बजे होगा। उदया तिथि के आधार पर, माताएं जितिया व्रत 25 सितंबर, बुधवार को रखेंगी।
जितिया व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत केवल उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह माताओं की संतान के प्रति असीम प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस व्रत का पालन करने से विभिन्न प्रकार की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं, इस व्रत को करने से संतान की लंबी उम्र और उनकी सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत से संतान का जीवन दीर्घकाल तक सुरक्षित रहता है। गर्भरक्षण,जिन माताओं का गर्भ है, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इससे दीर्घायु और स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।
जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया व्रत की पूजा विधि विशेष रूप से महत्व रखती है और इसका पालन बहुत ही श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है। व्रत का आरंभ सूर्योदय से पहले स्नान करके होता है। महिलाएं शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं। पूजा के दौरान, जीमूतवाहन की प्रतिमा या चित्र की स्थापना की जाती है। उन्हें फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर पूजा की जाती है। माताएं दिनभर बिना अन्न और जल ग्रहण किए निर्जला उपवास रखती हैं। यह व्रत अत्यंत कठोर माना जाता है क्योंकि पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहना होता है। अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण के साथ व्रत समाप्त होता है। इस समय महिलाएं पहले पूजा करती हैं और फिर भोजन ग्रहण करती हैं।
जितिया व्रत से जुड़ी आस्था
जितिया व्रत माताओं के दिल में उनकी संतानों के लिए गहरी ममता और आस्था का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से माताएं अपनी संतानों की रक्षा और सुखद भविष्य की कामना करती हैं। यह व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि मातृत्व के प्रति निस्वार्थ प्रेम और त्याग का सजीव उदाहरण है। यह व्रत न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज और परिवार के संदर्भ में भी मातृत्व की महत्ता को प्रकट करता है। ऐसे अवसर पर, माताएं एक-दूसरे के साथ अपनी भावनाएं और अनुभव साझा करती हैं, जिससे इस व्रत का सामाजिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
जितिया व्रत का समापन
जितिया व्रत का समापन पारण के साथ होता है, जिसमें व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा के बाद भोजन ग्रहण करती हैं। पारण के समय महिलाएं विशेष रूप से पारंपरिक व्यंजन बनाती हैं और भगवान जीमूतवाहन को भोग लगाती हैं। इसके बाद ही वे अपने उपवास को तोड़ती हैं।
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