लखनऊ में आखिरी बड़े मंगल पर उमड़ी भीड़: 400 साल पुराना है का भंडारे का इतिहास, ऐसे हुई शुरुआत

400 साल पुराना है का भंडारे का इतिहास, ऐसे हुई शुरुआत
UPT | Bade Mangal Bhandara in Lucknow

Jun 18, 2024 18:43

लखनऊ में बड़े मंगल के भंडारे का इतिहास ज्येष्ठ महीने में लगभग 400 साल पुराना है। इस भंडारे की शुरुआत अलीगंज हनुमान मंदिर से हुई थी और आज यह पूरे लखनऊ और आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाता है।

Jun 18, 2024 18:43

Short Highlights
  • राजधानी के हनुमान मंदिरों में सुबह से उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
  • शहर में जगह जगह आयोजित भंडारे में लोगों ने प्रसाद किया ग्रहण
Lucknow News:  लखनऊ में आखिरी बड़े मंगल पर हनुमान मंदिरों में जमकर भीड़ उमड़ी। हनुमान सेतु, हनुमंत धाम, अलीगंज स्थित प्राचीन और नया हनुमान मंदिर, हजरतगंज स्थित हनुमान मंदिर, विकासनगर में पंचमुखी हनुमान मंदिर, छाछी कुआं हनुमान मंदिर सहित अन्य जगहों पर देर रात से भक्तों की भीड़ उमड़ना शुरू हो गया। देर शाम तक मंदिरों में पवनसुत की जयकारों की गूंज सुनाई दी। वहीं आखिरी बड़ा मंगल होने के कारण जगह जगह भंडारे का आयोजन भी किया गया, जिसमें लोगों की भीड़ उमड़ी। लोगों ने जमकर प्रसाद का आनंद लिया। बड़े मंगल के भंडारे का इतिहास ज्येष्ठ महीने में लगभग 400 साल पुराना है। इस भंडारे की शुरुआत अलीगंज हनुमान मंदिर से हुई थी और आज यह पूरे लखनऊ और आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाता है। पहले भंडारे में गुड़ और धनिया का प्रसाद बांटा जाता था, लेकिन अब समय के साथ यह बदल गया है और लोगों को पूरी-सब्जी प्रसाद के रूप में परोसी जाती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मान्यताएं
  • नवाबों के शासन में आलिया बेगम ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान हनुमान से प्रार्थना की थी। मन्नत पूरी होने पर उन्होंने भंडारे का आयोजन किया, जो धीरे-धीरे एक परंपरा बन गई।
  • लखनऊ में एक बार महामारी का प्रकोप हुआ था। लोग इससे बचने के लिए हनुमान जी की पूजा करने लगे। उनकी मन्नत पूरी होने पर, उन्होंने भंडारे का आयोजन शुरू किया। इससे प्रेरित होकर और लोगों ने भी भंडारे की परंपरा को आगे बढ़ाया।
  • एक व्यापारी का केसर का व्यापार नहीं चल रहा था, उसने अलीगंज हनुमान मंदिर में मन्नत मांगी। मन्नत पूरी होने पर उसने भंडारा आयोजित किया। इस प्रकार भंडारे की परंपरा और भी मजबूत हो गई।
  • भंडारे की परंपरा अलीगंज हनुमान मंदिर से शुरू हुई थी। सबसे पहले मंदिर के मुख्य द्वार पर पानी और शरबत का वितरण किया जाता था। समय के साथ, प्रसाद का स्वरूप बदलता गया और अब पूरी-सब्जी का भंडारा प्रमुख हो गया है।
क्या कहते हैं लखनऊ अलीगंज के पुजारी
पुजारी जगदंबा प्रसाद पिछले 35 वर्षों से अलीगंज हनुमान मंदिर में सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले हनुमान जी को बेसन के लड्डू और गुड़-धनिया का भोग लगता था। अब समय के साथ, पूरी-सब्जी का प्रसाद सबसे अधिक बांटा जा रहा है। पहले सिर्फ इसी मंदिर में भंडारा होता था, लेकिन अब यह पूरे लखनऊ में फैल चुका है।

ऐतिहासिक साक्ष्य और प्रमाण
गीता प्रेस गोरखपुर की 'कल्याण हनुमान अंक' में लखनऊ के भंडारे का उल्लेख मिलता है। इसके पेज नंबर 424 और 425 पर यह विवरण मिलता है कि कब, कैसे और किसने भंडारे की शुरुआत की। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन ने भी अपनी पुस्तक 'लखनऊ नाम' में इस भंडारे की शुरुआत की कहानी को विस्तार से बताया है। इसमें अलीगंज महावीर मंदिर में भंडारे की शुरुआत के पीछे की वजहों का भी जिक्र है।

समय के साथ बदला स्वरूप
आज भी अलीगंज हनुमान मंदिर में हर मंगलवार को बड़े मंगल का भंडारा आयोजित किया जाता है। इस भंडारे में हर जाति, धर्म और वर्ग के लोग हिस्सा लेते हैं। यहां भंडारे का खर्च लगभग चार से पांच लाख रुपये तक आता है। मंदिर के पास प्रसाद की दुकान चलाने वाले अंजुल गुप्ता बताते हैं कि बड़े मंगल के दिन सबसे अधिक भीड़ होती है और सबसे बड़ा भंडारा आयोजित होता है। लखनऊ में बड़े मंगल का भंडारा एक पुरानी परंपरा है, जो आज भी जीवित है। इसने समय के साथ अपने रूप में परिवर्तन किया है, लेकिन इसकी मूल भावना और आस्था आज भी वही है। यह भंडारा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि सामुदायिक भावना और समर्पण का प्रतीक भी है। 

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